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## Fourth Uddeshak [221]
If a corpse needs to be kept overnight, the monks of the Sangha should stay awake all night. To prevent any ghost or spirit from entering the corpse, they should tie both thumbs of the hands and feet with a rope, cover the mouth with a mukhavastra (muhpatti), and pierce the middle part of the finger. This is because ghosts and spirits do not enter a wounded body.
While carrying the corpse, the feet should be placed forward. While performing the parthan (funeral rites), the muhpatti, rajoharan, and cholapattak are three essential tools. The commentary elaborates on these details.
The Vyavahar Uddeshak 7 describes the method of performing the parthan for a monk who dies while traveling. Here, the description is for a monk who dies in the upashraya.
**Regarding the monk who engages in conflict:**
30. If a monk engages in conflict and does not pacify it, he is not allowed to go out for food and drink from the houses of householders. He is not allowed to go out from the upashraya to the study ground or the preaching ground. He is not allowed to travel from village to village. He is not allowed to move from one gana to another or to stay for the rainy season.
However, if he approaches his learned and knowledgeable Acharya and Upadhyaya, he can be criticized, made to perform pratikramna, be condemned, be reprimanded, be freed from sin, be purified from the fruits of sin, be committed to not committing the sin again, and accept the appropriate tapas form of atonement.
If the atonement is given according to the scriptures, he should accept it. But if it is not given according to the scriptures, he should not accept it. If he does not accept the atonement even when it is given according to the scriptures, he should be expelled from the gana.
________________ चोथा उद्देशक] [221 यदि शव को रात्रि में रखना पड़े तो संघ के साधु रात्रि भर जागरण करते हैं, शव में कोई भूत-प्रेत प्रविष्ट न हो जाय इसके लिए हाथ और पैर के दोनों अंगुष्ठों को डोरी से बांध देते हैं, मुखवस्त्र (मुहपत्ति) से मुख को ढक देते हैं और अंगुली के मध्य भाग का छेदन कर देते हैं, क्योंकि क्षतदेह में भूत-प्रेतादि प्रवेश नहीं करते हैं। शव को ले जाते समय आगे की तरफ पांव करना, परठते समय मुहपत्ति, रजोहरण, चोलपट्टक ये तीन उपकरण अवश्य रखना, इत्यादि बातों का भाष्य में विस्तार से वर्णन किया गया है / व्यव. उद्दे. 7 में विहार करते हुए मार्ग में कालधर्मप्राप्त भिक्षु के शरीर को परठने की विधि का वर्णन किया गया है और यहां उपाश्रय में काल करने वाले भिक्षु के शरीर को परठने का वर्णन है / कलह करनेवाले भिक्षु से सम्बन्धित विधि-निषेध 30. भिक्खू य अहिगरणं कट्ट तं अहिगरणं अविओसवेत्ता, नो से कप्पइ गाहावइकुलं भत्ताए वा पाणाए वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा, नो से कप्पइ बहिया वियारभूमि वा विहारभूमि वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा, नो से कप्पइ गामाणुगामं दुइज्जित्तए, गणाप्रो वा गणं संकमित्तए, वासावासं वा वत्थए। जत्थेव अप्पणो आयरिय-उवज्झायं पासेज्जा बहुस्सुय-बभागमं, कप्पइ से तस्संतिए पालोइत्तए, पडिक्कमित्तए, निन्दित्तए, गरिहित्तयए, विउट्टित्तए, विसोहित्तए, अकरणाए अब्भुट्टित्तए, अहारिहं तवोक्कम्मं पायच्छित्तं पडिवज्जित्तए / से य सुएण पविए आइयत्वे सिया, से य सुरण नो पविए नो पाइयव्वे सिया। से य सुएण पट्ठविज्जमाणे नो आइयइ, से निज्जूहियब्वे सिया। 30. यदि कोई भिक्ष कलह करके उसे उपशान्त न करे तोउसे गृहस्थों के घरों में भक्त-पान के लिए निष्क्रमण-प्रवेश करना नहीं कल्पता है। उसे उपाश्रय से बाहर स्वाध्यायभूमि में या उच्चार-प्रस्रवणभूमि में जाना-बाना नहीं कल्पता है। उसे ग्रामानुग्राम विहार करना नहीं कल्पता है / उसे एक गण से गणान्तर में संक्रमण करना और वर्षावास रहना नहीं कल्पता है। किन्तु जहां अपने बहुश्रुत और बागमज्ञ प्राचार्य और उपाध्याय हों उनके समीप आलोचना करे, प्रतिक्रमण करे, निन्दा करे, गर्दा करे, पाप से निवृत्त हो, पाप-फल से शुद्ध हो, पुनः पापकर्म न करने के लिए प्रतिज्ञाबद्ध हो और यथायोग्य तप रूप प्रायश्चित्त स्वीकार करे। वह प्रायश्चित्त यदि श्रुतानुसार दिया जाए तो उसे ग्रहण करना चाहिए किन्तु श्रुतानुसार न दिया जाए तो उसे ग्रहण नहीं करना चाहिये। यदि श्रुतानुसार प्रायश्चित्त दिये जाने पर भी जो स्वीकार न करे तो उसे गण से निकाल देना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org