________________ वर्ग 3: तृतीय अध्ययन] तए णं से देवे सोमिलेणं माणरिसिणा अणाढाइज्जमाणे जामेव दिसि पाउम्भूए तामेव जाव पडिगए। तए णं से सोमिले कल्लं जाव जलन्ते वागलवथनियत्थे कढिणसंकाइयं गहाय गहियभण्डोवगरणे कट्ठमुद्दाए मुहं बन्धइ, 2 त्ता उत्तराभिमुहे संपत्थिए / [19] तदनन्तर मध्य रात्रि के समय सोमिल ब्रह्मषि के समक्ष एक देव प्रकट हुा / उस देव ने सोमिल ब्रह्मर्षि से इस प्रकार कहा---'प्रजित सोमिल ब्राह्मण ! तेरी यह प्रव्रज्या दुष्प्रवज्या है।' उस देव ने दूसरी और तीसरी बार भी ऐसा ही कहा / किन्तु सोमिल ब्राह्मण ने उस देव की बात का प्रादर नहीं किया-उसके कथन पर ध्यान नहीं दिया यावत् मौन ही रहा / इसके बाद उस सोमिल ब्रह्मर्षि द्वारा अनाहत (उपेक्षा किया गया) वह देव जिस दिशा से प्राया था, वापिस उसी दिशा में लौट गया। तत्पश्चात् कल (दूसरे दिन) यावत् सूर्य के प्रकाशित होने पर वल्कल वस्त्रधारी सोमिल ने कावड़, भाण्डोपकरण प्रादि लेकर काष्ठमुद्रा से मुख को बांधा। बांधकर उत्तराभिमुख हो उत्तर दिशा की ओर प्रस्थान कर दिया। 20. तए णं से सोमिले बिइयदिवसम्म पच्छावरहकालसमयंसि जेणेव सत्तिवण्णे तेणेव उवागए / सत्तिवण्णस्स अहे कढिणसंकाइयं ठवेइ, 2 ता वेई बढइ / जहा असोगवरपायवे जाव अग्गि हुणइ, कट्ठमुद्दाए मुहं बन्धइ, तुसिणीए संचिट्ठइ। तए गं तस्स सोमिलस्स पुन्वरत्तावरत्तकालसमयंसि एगे देवे अन्तियं पाउन्भूए / तए णं से देवे अंतलिक्खपडिवन्ने जहा असोगवरपायवे जाव पडिगए। तए णं से सोमिले कल्लं जाव जलन्ते वागलवत्थनियत्थे कढिणसंकाइयं गेहइ, 2 ता कट्ठमुद्दाए मुहं बन्धह, 2 ता उत्तरदिसाए उत्तराभिमुहे संपत्थिए। [20] इसके बाद दूसरे दिन अपराह्न काल के अंतिम प्रहर में सोमिल ब्रह्मर्षि जहाँ सप्तपर्ण वृक्ष था, वहाँ आये। उस सप्तपर्ण वृक्ष के नीचे कावड़ को रखा (कावड़ रखकर) वेदिका--बैठने के स्थान को साफ किया, इत्यादि जैसे पूर्व में अशोक वृक्ष के नीचे कृत्य किए थे, वे सभी यहाँ भी किए, यावत् अग्नि में आहुति दी और काष्ठमुद्रा से अपना मुख बांधकर बैठ गये / तब मध्यरात्रि में सोमिल ब्राषि के समक्ष पुनः देव प्रगट हुआ और आकाश में स्थित होकर अशोक वृक्ष के नीचे जिस प्रकार पहले कहा था कि तुम्हारी प्रव्रज्या दुष्प्रव्रज्या है, उसी प्रकार फिर कहा / परन्तु सोमिल ने उस देव की बात पर कुछ ध्यान नहीं दिया। अनसुनी करके मौन ही रहा यावत् वह देव पुनः वापिस लौट गया। इसके बाद (तीसरे दिन) वल्कल वस्त्रधारी सोमिल ने सूर्य के प्रकाशित होने पर अपने कावड़ उपकरण आदि लिए / काष्ठमुद्रा से मुख को बांधा और मुख बांधकर उत्तर की ओर मुख करके उत्तर दिशा में चल दिया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org