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________________ वर्ग 3 : तृतीय अध्ययन] [61 उन्होंने पूर्वोक्त सब विधि की। किन्तु तब पश्चिम दिशा की पूजा की। कहा-'हे पश्चिम दिशा के लोकपाल वरुण महाराज ! परलोक-साधना में प्रवृत्त मुझ सोमिल ब्रह्मषि की रक्षा करें' इत्यादि तथा पश्चिम दिशा का अवलोकन किया और वेदिका आदि बनाई, तथा उसके बाद स्वयं आहार किया, यहाँ तक का कथन पूर्ववत् जानना चाहिए। ___ इसके बाद उन सोमिल ब्रह्मर्षि ने चतुर्थ बेला तप अंगीकार किया। इस चौथे बेले की पारणा के दिन पूर्ववत् सारी विधि की। विशेष यह है कि इस बार उत्तर दिशा की पूजा की, और इस प्रकार प्रार्थना की—'हे उत्तर दिशा के लोकपाल वैश्रमण महाराज! परलोकसाधना में प्रवृत्त मुझ सोमिल ब्रह्मर्षि की रक्षा करें' इत्यादि यावत् उत्तर दिशा का अवलोकन किया आदि ! इस प्रकार पूर्व दिशा के वर्णन के समान सभी चारों दिशाओं का वर्णन यावत् आहार किया तक का वृत्तान्त पूर्ववत् जानना चाहिए। सोमिल का नया संकल्प 18. तए गं तस्स सोमिलमाहणरिसिस्स अन्नया कयाइ पुन्वरत्तावरत्तकालसमयसि अणिच्चजागरियं जागरमाणस्स अयमेयारवे अज्झथिए [जाव] समुप्पज्जित्था-"एवं खलु अहं वाणारसीए नयरीए सोमिले नाम माहणरिसी अच्चन्तमाहणकुलप्पसूए / तए णं मए क्याई चिण्णाई [जाव] जूवा निक्खित्ता / तए णं मम वाणारसीए [जाव] पुप्फारामा य [जाव] रोविया / तए णं मए सुबहुं लोह [जाव] घडावेत्ता [जाव] जेट्टपुत्तं ठवेत्ता जाव जेट्टपुत्तं प्रापुच्छित्ता सुबहु लोह [जाव] गहाय मुण्डे [जाव] पन्वइए / पच्वइए वि य गं समाणे छटुंछट्टणं [जाव] विहरामि / तं सेयं खलु ममं इयाणि कल्लं जाव जलन्ते बहवे तावसे दिट्ठाभ य पुश्वसंगइए य परियायसंगइए यापुच्छित्ता आसमसंसियाणि य बहूई सत्तसयाई अणुमाणइत्ता वागलवत्थनियस्थस्स किढिणसंकाइयगहियसभण्डोवगरणस्स कट्ठमुद्दाए मुहं बन्धित्ता उत्तरदिसाए उत्तराभिमुहस्स महपत्थाणं पत्थावेत्तए" एवं संपेहेइ, 2 ता कल्लं जाव जलन्ते बहवे तावसे य विद्वाभट्ठय पुत्वसंगइए य, तं चेव जाव, कटुमुद्दाए मुहं बन्धइ, 2 ता अयमेयारूवं अभिग्गहं अभिगिहा-"जत्थेव णं अम्हं जलंसि वा एवं थलंसि वा दुग्गंसि वा निन्नसि वा पक्वतंसि वा विसमसि वा गड्डाए वा दरीए वा पक्खलिज्ज बा पडिज्ज वा, नो खलु मे कप्पइ पच्चुट्टित्तए" त्ति अयमेयारूवं अभिग्गहं अभिगिण्हइ। . अभिगिण्हित्ता उत्तराए दिसाए उत्तराभिमुहमहपत्थाणं पत्थिए से सोमिले माहणरिसी पच्छावरण्हकालसमयंसि जेणेव असोगवरपायवे तेणेव उवागए, असोगवरपायवस्स अहे किढिणसंकाइयं ठवेइ, 2 तावेई बड्डइ, 2 ता उवलेवणसंमज्जणं करेइ, 2 ता दमकलसहत्थगए जेणेव गङ्गा महाणई, जहा सिवो जाव गङ्गाओ महाणईओ पच्चुत्तरइ, त्ता जेणेव असोगवरपायवे तेणेव उवागच्छद, 2 त्ता दन्भेहि य कुसे हि य वालुयाए य वेई रएइ, २त्ता सरगं करेइ, २त्ता जाव बलिवइस्सदेवं करेइ, २त्ता कट्ठमुद्दाए मुहं बन्धइ, 2 ता तुसिणीए संचिट्ठइ। [18] इसके बाद किसी समय मध्यरात्रि में अनित्य जागरण करते हुए उन सोमिल ब्रह्मर्षि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003487
Book TitleAgam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages178
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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