________________ [पुष्पिका र श्रावक धर्म को अंगीकार करके वापिस लौट गया। इसके बाद किसी एक दिन पार्श्व अर्हत् वाराणसी नगरी और प्राम्रशाल वन चैत्य से बाहर निकले / निकलकर जनपदों में विहार करने लगे। तदनन्तर वह सोमिल ब्राह्मण किसी समय असाधु दर्शन---महाव्रतधारी साधुनों का दर्शन न करने के कारण एवं निर्ग्रन्थ श्रमणों की पर्युपासना नहीं करने से-उनके उपदेश श्रवण का संयोग न मिलने से एवं मिथ्यात्व पर्यायों के प्रवर्धमान होने (बढ़ने) से तथा सम्यक्त्व पर्यायों के परिहीयमान होने (घटने) से मिथ्यात्व भाव को प्राप्त (मिथ्यादृष्टि, श्रद्धाविहीन) हो गया / सोमिल का गृहत्याग का विचार 15. तए णं तस्स सोमिलस्स माहणस्स अन्नया कयाइ पुठवरत्तावरत्तकालसमयंसि कुडम्बजागरियं जागरमाणस्स अयमेयारवे अज्मस्थिए [जाव]समुप्पज्जित्था-"एवं खलु अहं वाणारसीए नयरीए सोमिले नामं माहणे अच्चन्तमाहणकुलप्पसूए। तए णं मए वयाई चिण्णाई, आया य अहीया, दारा आहूया, पुत्ता जणिया, इड्ढोप्रो समाणोयानो, पसुबन्धा' कया, जन्ना जेट्ठा, दक्षिणा दिन्ना, अतिही पूइया, प्रागी हूया, जूवा निक्खित्ता / तं सेयं खलु ममं इयाणि कल्लं [जाव] पाउपभायाए रयणीए फुल्लुप्पलकमलकोमलुम्मिलिमि प्रहापण्डुरे पमाए रत्तासोग गाकिसुयसुयमुहगुजद्धरामबन्धुजीवगपारावयचलण-नयणपरहुयसुरत लोयग-जासुमिणकुसुम-जलियजलण-तपणिज्जकलस-हिङगुलयनिगररूवाइरेगरेहन्तसस्सिरीए दिवायरे अहक्कमेण उदिए तस्स विणकरकरपरंपरावयापारमि अन्धयारे बालातवकुंकुमेण खइयव जीवलोए लोयणविसमाणुआसविगसन्तविसबसिमि लोए, कमलागरसण्डवोहए उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरास्सिमि दिणयरे तेयसा जलन्ते वाणारसीए नयरीए बहिया बहवे अम्बारामा रोवावितए एवं माउलिङ्गा बिल्ला कविट्ठा चिञ्चा पुप्फारामा रोवावित्तए" एवं संपेहेइ, 2 ता कल्लं [जाव] जलन्ते वाणारसीए नयरीए बहिया अम्बारामे जाव पुप्फाराम य रोवावेइ / तए णं बहवे अम्बरामा य जाच पुप्फारामा य अणुपुटवेणं सारक्खिज्जमाणा संगोविज्जमाणा संवद्धिज्जमाणा आरामा जाया किण्हा किण्होभासा [जाव] रम्मा महामेह-निकुरम्बभूया पत्तिया पुल्फिया फलिया हरियगरेरिज्जमाणा सिरोए अईव 2 उवसोभेमाणा 2 चिट्ठन्ति / [15] इसके बाद किसी एक समय मध्यरात्रि में अपनी कौटुम्बिक स्थिति पर विचार करते हुए उस सोमिल ब्राह्मण को यह और इस प्रकार का प्रान्तरिक यावत् मानसिक संकल्प उत्पन्न हुआ-मैं वाराणसी नगरी का रहने वाला और अत्यन्त शुद्ध ब्राह्मण कुल में उत्पन्न हुआ हूँ। मैंने व्रतों (कुलागत विधि-विधानों) को अंगीकार किया, वेदाध्ययन किया, पत्नी को ल त्रवाह किया, कुलपरंपरा को वृद्धि के लिए पुत्रादि संतान को जन्म दिया, समृद्धियों का संग्रह कियाअर्थोपार्जन किया, पशुबंध किया--गाय भैंसों का पालन किया, (या पशुबध किया), यज्ञ किए, दक्षिणा दी, अतिथिपूजा-सत्कार किया, अग्नि में हवन किया-पाहुति दी, यूप स्थापित किये, 1. पाठान्तर-'पसुवधा / -मुनि श्री घासीलालजी / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org