SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 88
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वर्ग 3 : तृतीय अध्ययन] [55 [13] भगवान् ने प्रत्युत्तर में बताया-गौतम ! उस काल और उस समय में वाराणसी नाम की नगरी थी / उस वाराणसी नगरी में सोमिल नामक माहण (ब्राह्मण) निवास करता था / वह धन-धान्य प्रादि से संपन्न-समद्ध यावत अपरिभत था / ऋग्वेद, यजर्वेद, सामवेद इन चार वेदों, पांचवें इतिहास, छठे निघण्टु नामक कोश का तथा सांगोपांग (अंग-उपागों सहित) रहस्य सहित वेदों का सारक (स्मरण कराने वाला पाठक) वारक (अशुद्ध पाठ बोलने से रोकने वाला) घारक (वेदादि को नहीं भूलने वाला, धारण करने वाला) पारक (वेदादि शास्त्रों का पारगामी) वेदों के षट्-अंगों में, एवं षष्ठितंत्र (सांख्य शास्त्र) में विशारद-प्रवीण था / गणितशास्त्र, शिक्षा, कल्प, व्याकरण, छन्दशास्त्र, निरुक्तशास्त्र, ज्योतिषशास्त्र, तथा दूसरे बहुत से ब्राह्मण और परिव्राजको सम्बन्धी नीति और दर्शनशास्त्र आदि में अत्यन्त निष्णात था। पुरुषादानीय अर्हत् पार्श्व प्रभु पधारे / परिषद् निकली और पर्युपासना करने लगी। 14. तए णं तस्स सोमिलस्स माहणस्स इमीसे कहाए लटुस्स समाणस्स इमे एयारवे अज्झस्थिए–“एवं पासे अरहा पुरिसादाणीए पुव्वाणुपुर्दिव [जाव] अम्बसालवणे विहरइ / तं गच्छामि गं पासस्स अरहनो अन्तिए पाउउमवामि, इमाई च णं एयारूवाइं अट्ठाई हेऊई" जहा पण्णत्तीए। सोमिलो निग्गओ खण्डियविहूणो [जाव] एवं क्यासी-"जत्ता ते भंते ? जवणिज्जं च ते ?" पुच्छा। "सरिसक्या मासा कुलस्था? एगे भवं?" [जाव] संबुद्ध / सावगधम्म पडिवज्जित्ता पडिगए। तए णं पासे णं अरहा अन्नया कयाइ वाणारसीओ नयरीओ अम्बसालवणाओ चेइयाओ पडिनिक्खमइ, 2 सा बहिया जणवयविहारं। तए णं से सोमिले माहणे अन्नया कयाइ असाहुदसणेण य अपज्जुवाप्तणयाए य मिच्छत्तपज्जवेहि परियडमाणेहि 2 सम्मत्तपज्जवेहि परिहायमाणेहि 2 मिच्छत्तं च पडिवन्ने। [14] तदनन्तर उस सोमिल ब्राह्मण को यह संवाद सुनकर इस प्रकार का प्रांतरिक विचार उत्पन्न हुआ-पुरुषादानीय अर्हत् पार्श्व प्रभु पूर्वानुपूर्वी के क्रम से गमन करते हुए यावत् प्राम्रशालवन में विराज रहे हैं / अत एव मैं जाऊं और अर्हत् पावप्रभु के सामने उपस्थित होऊं एवं उनसे यह तथा इस प्रकार के अर्थ हेतु, प्रश्न, कारण और व्याख्या पूर्छ / तत्पश्चात् शिष्यों को साथ लिए बिना ही सोमिल अपने घर से निकला और भगवान् की सेवा में पहुंचकर उसने इस प्रकार पूछा-- भगवन् ! आपकी यात्रा चल रही है ? यापनीय है ? अव्याबाध है ? और आपका प्रासूक विहार हो रहा है ? अापके लिए सरिसव (सरसों) मास (माषउड़द) कुलत्थ (कुलथी धान्य) भक्ष्य है या अभक्ष्य हैं ? आप एक हैं ? (आप दो हैं ? आप अनेक है? आप अक्षय हैं ? प्राप अव्यय हैं ? आप नित्य हैं ? अाप अवस्थित हैं ? प्रभु ने उसे यथोचित उत्तर' दिया) यावत् सोमिल 1. एतद् विषयक प्रश्न और उनके उत्तर ज्ञाताधर्मकथांग, पंचम अध्ययन-शैलक पृ. 174-178 (श्री आगम प्रकाशन समिति ब्यावर) में देखिए / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003487
Book TitleAgam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages178
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy