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________________ वर्ग 1: प्रथम अध्ययन] [27 बात का ध्यान दिलाती रही। पद्मावती द्वारा वार-बार इसी बात को दुहराने पर कूणिक राजा ने एक दिन वेहल्ल कुमार को बुलाया और सेचनक गंधहस्ती तथा अठारह लड़ का हार मांगा। वेहल्लकुमार का मनोमंथन 24. तए णं से वेहल्ले कमारे कूणियं रायं एवं वयासी-"एवं खलु सामी, सेणिएणं रन्ना जीवन्तेणं चेव सेयणए गन्धहत्थी अट्ठारसर्वके यहारे दिन्ने / तं जइ गं सामी, तुम्भे ममं रज्जस्स य [जाव] जणवयस्स य अद्ध दलयह, तो णं अहं तुम्भ सेयणगं गन्धहत्थि अट्ठारसर्वकं च हारं दलयामि। तए णं से कूणिए राया वेहल्लस्स कुमारस्स एयमट्ठनो आढाइ, नो परिजाणइ, अभिक्खणं 2 सेयणगं गन्धहत्थि अट्ठारसर्वकं च हारं जायइ / तए णं तस्स वेहल्लस्स कुमारस्स कणिएणं रन्ना अभिक्खणं 2 सेयणगं गन्धहत्थि अट्ठारसवंक च हारं (जायमाणस्स समाणस्स अयमेयारूवे अज्झथिए 4 समुप्पज्जित्था) “एवं खलु प्रक्खिविउकामे णं, मिहिउकामे णं, उद्दालेउकामे णं ममं कूणिए राया सेयणगं गन्धहत्थि प्रहारसर्वकं च हारं ! तं [जाव] ममं कूणिए राया (नो जाणइ) ताव (सेयं मे) सेयणगं गंधहत्थि अट्ठारसवंकं च हारं गहाय अन्तेउरपरियालसंपरिवुडस्स सभण्डमत्तोवगरणमायाए चम्पाओ नयरीमो पडिनिक्खमित्ता वेसालीए नयरीए अज्जगं चेडयं रायं उपसंपज्जित्ताणं विहरित्तए" एवं संपेहेइ, 2 कूणियस्स रन्नो अन्तराणि यछिदाणि य मम्माणि य रहस्साणि य विवराणि य पडिजागरमाणे 2 विहरइ। ___ तए णं से वेहल्ले कुमारे अन्नया कयाइ कणियस्स रन्नो अन्तरं जाणइ, सेयणगं गंधहत्थि अट्ठारसवंक च हारं महाय अन्तेउरपरियालसंपरिघुड़े सभण्डमत्तोवगरणमायाए चम्पायो नयरीओ पडिनिक्खमइ, 2 ता जेणेव बेसाली नयरी, तेणेव उवागच्छइ, वेसालीए नयरीए अज्जगं चेडयं उपसंपज्जित्ताणं विहरह। [24] तब वेहल्ल कुमार ने कणिक राजा को उत्तर दिया-स्वामिन् ! श्रेणिक राजा ने अपने जीवनकाल में ही मुझे यह सेचनक गंधहस्ती और अठारह लड़ों का हार दिया था / यदि स्वामिन् ! आप राज्य यावत् जनपद का आधा भाग मुझे दें तो मैं सेचनक गंधहस्ती और अठारह लड़ों का हार दूंगा।' कूणिक राजा ने वेहल्ल कुमार के इस उत्तर को स्वीकार नहीं किया। उस पर ध्यान नहीं दिया और बार-बार सेचनक गंधहस्ती एवं अठारह लड़ों के हार को देने का आग्रह किया। तब कणिक राजा के वारंवार सेचनक गंधहस्ती और अठारह लड़ों के हार को मांगने पर वेहल्ल कुमार के मन में विचार आया कि वह उनको झपटना चाहता है, लेना चाहता है, छीनना चाहता है / इसलिए जब तक कूणिक राजा मेरे सेचनक गंधहस्ती और अठारह लड़ों के हार को झपट न सके, ले न सके और छीन न सके, उससे पहले ही सेचनक गंधहस्ती और हार को लेकर अन्तःपूर परिवार और गहस्थी की साधन-सामग्री के साथ चंपनगरी से निकलकर-भागकर वैशाली नगरी में आर्यक (नाना) चेटक का आश्रय लेकर रहूँ। उसने ऐसा विचार किया। विचार करके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003487
Book TitleAgam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages178
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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