________________ 28] [निरयावलिकासूत्र कणिक राजा की असावधानी, मौका, अन्तरंग बातों-रहस्यों की जानकारी की प्रतीक्षा करते हुए समय यापन करने लगा। तत्पश्चात् किसी दिन वेहल्ल-कुमार ने कणिक राजा को अनुपस्थिति को जाना और सेचनक गंधहस्ती, अठारह लड़ों का हार तथा अन्तःपुर परिवार सहित गृहस्थी के उपकरण-साधनों को लेकर चंपानगरी से भाग निकला / निकलकर जहाँ वैशाली नगरी थी वहाँ पाया और अपने नाना चेटक का आश्रय लेकर वैशाली नगरी में निवास करने लगा। कूणिक राजा की प्रतिक्रिया 25. तए ण से कणिए राया इमीसे कहाए लद्धढे समाणे “एवं खलु वेहल्ले कुमारे मम असंविदिएणं सेयणगं गन्धहत्थि अट्ठारसर्वकं च हारं गहाय अन्तेउरपरियालसंपरिघुडे [जाव ] अज्जगं चेडयं रायं उपसंपज्जित्ताणं विहरइ / तं सेयं खलु सेयणगं गन्धहत्थि अट्ठारसवंकं च हारं पाणे उंदूयं पेसित्तए संपेहेइ, 2 ता दूयं सद्दावेइ, 2 ता एवं वयासी-“गच्छह गं तुम, देवाणुप्पिया, वेसालि नरि / तत्थ णं तुमं ममं अज्जं चेडगं रायं करयल० बद्धावेत्ता एवं क्याही-'एवं खल, सामी, कणिए राया विनवेइ-एस णं वेहल्ले कुमारे कणियस्स रनो संविदिएणं सेयणगं गंधहस्थि प्रहारसर्वक च हारं गहाय हव्यमागए / तए गं तुम्भे सामी, कूणियं रायं अणुगिण्हमाणा सेयणगं गंधहत्थि अट्ठारसवंकं च हारं कूणियस्स रनो पच्चप्पिणह, वेहल्लं कुमारं च पेसेह।" तए णं से दूए कूणिएणं करयल० [जाव] पडिसुणित्ता जेणेव सए गिहे तेणेव उवागच्छइ, २त्ता जहा चित्तो [जाव] पायरासेहि नाइविकिठेहि अन्तरावासेहिं बसमाणे 2 जेणेव चम्पा नयरी तेणेव उवागच्छइ / उवागच्छित्ता चम्पाए नयरोए मझमझेणं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता जेणेव चेडगस्स रश्नो गिहे जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला तेणेव उवागच्छइ / उवागच्छित्ता तुरए निगिण्हइ / निगिहित्ता रहं ठवेइ / ठबित्ता रहाओ पच्चोरुहइ / तं महत्थं जाव पाहुडं गिण्हइ / गिहित्ता जेणेव अम्भन्तरिया उवट्ठाणसाला, जेणेव चेडए राया तेणेव उवागच्छइ / उवागच्छित्ता चेडगं रायं करयलपरिग्गहियं जाय कटु जएणं विजएणं बद्धावेइ, बद्धावेत्ता एवं क्यासी—''एवं खलु, सामी, कूणिए राया विनवेइ---'एस णं वेहल्ले कुमारे, तहेव भाणियब्वं [जाव] वेहल्लं कुमार पेसेह।" [25] तत्पश्चात् कणिक राजा ने यह समाचार ज्ञात किया कि 'मुझे बिना बताए ही वेहल्ल कमार सेचनक गधहस्ती और अठारह लडों का हार तथा अन्त:पर परिवार सहित गहस्थी के उपकरणसाधनों को लेकर यावत् पार्यक चेटक राजा के आश्रय में निवास कर रहा है / तब उसने सेचनक गंधहस्ती और अठारह लड़ों के हार को लौटाने के लिए दूत भेजना उचित है, ऐसा विचार किया और विचार करके दूत को बुलाया / बुलाकर उससे कहा-'देवानुप्रिय ! तुम वैशाली नगरी जानो। वहाँ तुम आर्यक चेटकराज को दोनों हाथ जोड़ कर यावत् जय-विजय शब्दों से बधाकर इस प्रकार निवेदन करना-'स्वामिन् ! कूणिक राजा विनति करते हैं कि बेहल्लकुमार, कणिक राजा को बिना बताए ही सेचनक गंधहस्ती और अठारह लड़ों के हार को लेकर यहाँ आ गये हैं। इसलिए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org