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________________ 26] [निरयावलिकासूत्र दंत-मूसलों पर बैठाता, किसी को सूड में लेकर झुलाता, किसी को दांतों के बीच लेता, किसी को फूहारों से नहलाता और किसी-किसी को अनेक प्रकार की क्रीडामों से क्रीडित करता-खेलाता था / तब चम्पानगरी के शृगाटकों, त्रिकों, चतुष्कों, चत्वरों, महापथों और पथों में बहुत से लोग आपस में एक दूसरे से इस प्रकार कहते, बोलते, बतलाते और प्ररूपित करते किदेवानुप्रियो ! अन्तःपुर परिवार को साथ लेकर वेहल्लकमार सेचनक गंधहस्ती के द्वारा अनेक प्रकार की क्रीडाएँ करता है / वास्तव में वेहल्ल कुमार ही राजलक्ष्मी का सुन्दर फल अनुभव कर रहा है / कूणिक राजा राजश्री का उपभोग नहीं करता। पदमावती को ईा तए णं तीसे पउमावईए देवीए इमीसे कहाए लट्ठाए समाणीए अयमेयारूवे [जाव] समुप्पज्जित्था-"एवं खलु वेहल्ले कुमारे सेयणएणं गन्धहत्थिणा [जाव] अणेगेहि कोलावणएहि कोलावेइ / तं एस णं वेहल्ले कुमारे रज्जसिरिफलं पच्चणुभवमाणे विहरइ, नो कूणिए राया। तं कि णं अम्हं रज्जेण वा [जाव] जणवएण वा, जइ णं अम्हं सेयणगे गन्धहत्थी नस्थि ! तं सेयं खलु ममं कूणियं रायं एयम? विन्नवित्तए" त्ति कटु एवं संपेहेइ, 2 ता जेणेव कूणिए राया, तेणेव उवागच्छइ, 2 त्ता करयल० [जाव] परिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अञ्जलिं कटु जएणं विजएणं वद्धावेत्ति, वद्धाबित्ता एवं बयासी-"एवं खलु सामी, वेहल्ले कुमारे सेयणएण गन्धहत्थिणा जाव अणेगेहि कोलावणएहि कोलावेइ। तं किं णं अम्हं रज्जेण वा जाव जणवएण वा, जइ णं अम्हं सेयणए गन्धहत्थी नत्थि?। तए णं से कुणिए राया पउमावईए एयमट्ठनो आढाइ, नो परियाणाइ, तुसिणीए संचिट्ठह / तए णं सा पउमावई देवी अभिक्खणं 2 कूणियं रायं एयम8 विन्नवेइ। तए णं से कूणिए राया पउमावईए देवीए अभिक्खणं 2 एयम8 विन्नविज्जमाणे अन्नया कयाइ कुमारं सद्दावेइ, 2 ता सेयणगं गन्धहत्थि अट्ठारसर्वकं च हारं जायई। [23] तब (कणिक की पत्नी) पद्मावती देवी को इस प्रकार के प्रजाजनों के कथन को सुनकर यह संकल्प यावत् विचार समुत्पन्न हुआ—'निश्चय ही वेहल्ल कुमार सेचनक गंधहस्ती के द्वारा यावत् अनेक प्रकार की क्रीडाएँ करता है / अतएव यह वेहल्लकुमार ही सचमुच में राजश्री का फल भोग रहा है, कूणिक राजा नहीं। तो हमारा यह राज्य यावत् जनपद किस काम का यदि हमारे पास सेचनक गंधहस्ती न हो ! इसलिए मुझे कूणिक राजा से इस विषय में निवेदन करना चाहिये।' पद्मावती ने इस प्रकार का विचार किया और विचार कर जहाँ कूणिक राजा था, वहाँ आई और आकर दोनों हाथ जोड़, मुकुलित दस नखों पूर्वक शिर पर आवर्त करके, मस्तक पर अंजलि करके जय-विजय शब्दों से उसे बधाया और फिर इस प्रकार निवेदन किया-'स्वामिन् ! वेहल्ल कुमार सेचनक गंधहस्ती से यावत् भांति-भांति की क्रीडाएँ करता है / तो हमारा राज्य यावत् जनपद किस काम का यदि हमारे पास सेचनक गंधहस्ती नहीं है / / कृणिक राजा ने पद्मावती के इस कथन का आदर नहीं किया / उसे सुना नहीं--अनसुना कर दिया। उस पर ध्यान नहीं दिया और चुपचाप ही रहा / तब वह पद्मावती देवी बार-बार इस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003487
Book TitleAgam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages178
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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