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________________ वर्ग 1 : प्रथम अध्ययन] |25 . तत्पश्चात् वह कूणिक कुमार इस महान् मनोगत मानसिक दुःख से अतीव दुःखी होकर (इस दुःसह दुख को विस्मृत करने के लिए) किसी समय अन्तःपुर परिवार को लेकर धन-सपत्ति प्रादि गार्हस्थिक उपकरणों के साथ राजगह से निकला और जहा चपागनरी थी, वहां पाया। अर्थात् उसने राजगह नगर का परित्याग कर दिया और चम्पानगरी को अपनी राजधानी बनाया / वहा परम्परागत भागो को भागते हुए कुछ समय के बाद शोक-सताप से रहित हो गया अथवा उसका शोक कम हो गया। तत्पश्चात् उस कुणिक राजा ने किसी दिन काल आदि दस राजकुमारों को बुलाया--- प्रामत्रित किया और राज्य, राष्ट्र बल-सेना, वाहन-रथ आदि, कोश, धन संपत्ति, धान्य-भंडार, अंत:पुर और जनपद-देश के ग्यारह भाग किये ! भाग करके वे सभी स्वयं अपनी-अपनी राजश्री का भोग करते हुए प्रजा का पालन करते हुए समय व्यतीत करने लगे। कुमार वेहल्ल को क्रीड़ा - 22. तत्थ णं चम्पाए नगरोए सेणियस्स रन्नो पुत्ते चेल्लणाए देवीए अत्तए कुणियस्स रन्नो सहोयरे कणीयसे भाया वेहल्ले नाम कुमारे होत्था-सोमाले [जाब] सुरुवे / तए णं तस्स वेहल्लस्स कुमारस्स सेणिएणं रन्ना जीवन्तएणं चेव सेयणए गन्धहत्थी अट्ठारसवंके हारे पुन्वदिन्ने / तए णं से वेहल्ले कुमारे सेयणएणं गन्धहत्थिणा अन्ते उरपरियालसंपरिधुडे चम्पं नरि मज्झमझेणं निग्गच्छइ, २त्ता अभिक्खणं 2 गङ्ग महाणई मज्जणय ओयरइ / तए णं सेयणए गन्धहत्थी देवीओ सोण्डाए गिण्हइ, 2 ता अण्पेगइयाओ पुढे ठवेइ, अप्पेगइयाओ खन्धे ठवेइ, एवं कुम्भे ठवेइ, सीसे ठवेइ, दन्तमुसले ठवेद, अप्पेगइयाओ सोण्डागयाओ अन्दोलावेद, अप्पेगइयानो दन्तन्तरेसु नीइ, अप्पेगइयाओ सोभरेणं म्हाणेइ, अप्पेगइयाओ अणेगेहि कोलावणेहि कोलावेइ / तए णं चम्पाए नयरीए सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर-महापह-पहेसु बहुजणो अन्नमन्नस्स एषमाइक्खइ, जाव एवं भासेइ एवं पन्नवेइ एवं परूवेइ–'एवं खलु, देवाणुप्पिया, वेहल्ले कुमारे सेयणएण गन्धहत्थिणा अन्तेउर० [.] तं चैव जाव, अणेगेहि कोलावणएहि कोलावेइ / तं एस णं वेहल्ले कुमारे रज्जसिरिफलं पच्चणुभवमाणे विहरइ, नो कुणिए राया' / [22] उस चम्पानगरी में श्रेणिक राजा का पुत्र, चेलना देवी का अंगज कणिक राजा का कनिष्ठ सहोदर भ्राता बेहल्ल नामक राजकुमार था / वह सुकुमार यावत रूप-सौन्दर्यशाली था / ___ अपने जीवित रहते श्रेणिक राजा ने पहले ही वेहल्लकुमार को सेचनक नामक गंधहस्ती और अठारह लड़ों का हार दिया था / वह बेहल्लकुमार अन्तपुर:परिवार के साथ सेचनक गधहस्ती पर आरूढ होकर, अनेकों बार चम्पानगरी के बीचोंबीच होकर निकलता और निकल कर स्नान करने के लिए गंगा महानदी में उतरता / उस समय वह से चनक गधहस्ती रानियों को सूड से पकड़ता, पकड़ कर किसी को पीठ पर बिठलाता, कसी को कंध पर बैठाता, किसी को गंडस्थल पर रखता, किसी को मस्तक पर बैठाता, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003487
Book TitleAgam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages178
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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