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________________ वर्ग 1: प्रथम अध्ययन] [21 तब-तब श्रेणिक राजा उस बालक के पास पाता, उसे हाथों में लेता और उसी प्रकार चूसता यावत् वेदना शान्त हो जाने से वह चुप हो जाता था। तत्पश्चात् उस बालक के माता-पिता ने तीसरे दिन चन्द्र सूर्य दर्शन का संस्कार किया, यावत् ग्यारह दिन के बाद बारहवें दिन इस प्रकार का गुण-निष्पन्न नामकरण किया-क्योंकि हमारे इस बालक की एकान्त उकरड़े में फेंके जाने से अंगुली का ऊपरी भाग मुर्गे की चोंच से छिल गया था इसलिए हमारे इस बालक का नाम 'कूणिक' हो / इस प्रकार उस बालक के माता-पिता ने उसका 'कुणिक' यह नामकरण किया। तत्पश्चात् उस बालक का जन्मोत्सव आदि मनाया गया। यावत् (वह बड़ा होकर) मेधकुमार के समान राजप्रासाद में ग्रामोद-प्रमोदपूर्वक समय व्यतीत करने लगा। (पाठ कन्याओं के माथ उसका पाणिग्रहण हुअा और) माता-पिता ने पाठ-पाठ वस्तुएँ प्रीतिदान (दहेज) में प्रदान की। कूणिक का कुविचार तए णं तस्स कणियस्स कुमारस्स अन्नया पुटवरत्ता० [जाव] समुप्पज्जित्था-"एवं खलु अहं सेणियस्स रम्रो वाधारणं नो संचाएमि सयमेव रज्जसिरिं करेमाणे पालेमाणे विहरित्तए, त सेयं खलु मम सेणियं रायं नियलबन्धणं करेता अप्पाणं महया महया रायाभिसेएणं अमिसिञ्चावितए" त्ति कटु एवं संपेहेइ, 2 त्ता सेणियस्स रन्नो अन्तराणि य छिड्डाणि य विरहाणि य पडिजागरमाणे विहरइ। तए णं से कूणिए कुमारे सेणियस्स रन्नो अन्तरं वा [जाव] मम्मं वा अलभमाणं अन्नया कयाइ कालाईए दस कुमारे नियघरे सद्दावेइ, 2 ता एवं वयासी–एवं खलु देवाणुप्पिया, अम्हे सेणियस्स रन्नो वाघाएणं नो संचाएमो सयमेव रज्जसिरि करेमाणा पालेमाणा विहरित्तए, तं सेयं खलु देवाणुपिया! अम्हं सेणियं रायं नियलबघणं करेत्ता रज्जंच रट्टं च बलं च वाहणं च कोसं च कोट्ठागारं च जणवयं च एक्कारसभाए विरिञ्चित्ता सयमेय रज्जसिरि करेमाणाणं पालेमाणाणं [जाव] विहरित्तए"। [18] तत्पश्चात् उस कुमार कुणिक को किसी समय मध्यरात्रि में यावत् ऐसा विचार पाया कि श्रेणिक राजा के विघ्न के कारण मैं स्वयं राज्यशासन और राज्यवैभव का उपभोग नहीं कर पाता हूँ, अतएव श्रेणिक राजा को बेड़ी में डाल देना (कारागार में बन्द कर देना) और महान् राज्याभिषेक से अपना अभिषेक कर लेना मेरे लिए श्रेयस्कर-लाभदायक होगा।' उसने इस प्रकार का संकल्प किया और संकल्प करके श्रेणिक राजा के अन्तर (अवसर—मौका) छिद्र (दोष) और विरह (एकान्त) की ताक के रहता हुमा समय-यापन करने लगा। तत्पश्चात् श्रेणिक राजा के अवसरों यावत् मर्मों को जान न सकने के कारण अर्थात् अवसर न पाकर कूणिक कुमार ने एक दिन काल आदि दस राजकुमारों को (अपने भाइयों को) अपने घर आमंत्रित किया और आमंत्रित करके उनको अपने विचार बताए-हे देवानुप्रियो ! श्रेणिक राजा के कारण हम स्वयं राजश्री का उपभोग और राज्य का पालन नहीं कर पा रहे हैं। इसलिए हे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003487
Book TitleAgam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages178
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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