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________________ 20] [निरयावलिकासूत्र दूमिया यावि होत्था, अभिक्खणं अभिक्खणं पूयं च सोणियं च अभिनिस्सवइ / तए णं से दारए वेयणाभिभूए समाणे महया महया सद्देणं पारसइ / तए णं सेणिए राया तस्स दारगस्स प्रारसियसह सोच्चा निसम्म जेणेव से दारए तेणेव उवागच्छइ, 2 त्ता तं दारगं करयलपुडेणं गिण्हइ, 2 ता सं अगङ्गलियं आसयंसि पक्खिवइ, 2 ता पूयं च सोणियं च प्रासएणं प्रामुसेइ / तए णं से दारए निव्वुए निवेयणे तुसिणीए संचिट्ठइ / ताहे वि य णं से दारए वेयणाए अभिभूए समाणे महया महया सद्देणं आरसइ, ताहे वि य णं सेणिए राया जेणेव से दारए तेणेव उवागच्छइ, 2 ता तं दारगं करयलपुडेणं गिण्हह तं चेव [जाब] निव्वेयणे तुसिणीए संचिट्ठइ। तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो तइए दिवसे चन्दसूरदरिसणियं करेन्ति, [जाव] संपत्ते बारसाहे दिवसे अयमेयारूवं गुणणिप्फन्नं नामधेज्जं करेन्ति-"जहा णं अम्हं इमस्स दारगस्स एगन्ते उक्कुरुडियाए उज्झिज्जमाणस्स अंगुलिया कुक्कुडपिच्छएणं दूमिया, तं होउ णं अम्हं इमस्स दारगस्स नामधेज्ज कणिए / " तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो नामधेज्जं करेंति 'फणिय' त्ति / तए गं तस्स कूणियस्स आणुपुब्वेणं ठिइडियं च, जहा मेहस्स [जाव] उप्पि पासायवरगए विहरइ / अटुनो दाओ। [18] तत्पश्चात् उस दास चेटी ने चेलना देवी की इस प्राज्ञा को सुनकर दोनों हाथ जोड़ यावत् चेलना देवी की इस प्राज्ञा को विनयपूर्वक स्वीकार किया। स्वीकार करके उस बालक को हथेलियों में लिया / लेकर वह अशोक-बाटिका में गई और उस बालक को एकान्त में उकरडे पर फेंक दिया / उस बालक के एकान्त के उकरड़े पर फेंके जाने पर वह अशोक वाटिका प्रकाश से व्याप्त हो गई। इस समाचार को सुनकर राजा श्रेणिक अशोक-वाटिका में गया। वहाँ उस बालक को एकान्त में उकरडे पर पड़ा हुआ देखकर क्रोधित हो उठा यावत् रुष्ट, कुपित और चंडिकावत् रौद्र होकर दांतों को मिसमिसाते हुए उस बालक को उसने हथेलियों में ले लिया और जहाँ चेलना देवी थी, वहाँ आया / प्राकर चेलना देवी को भले-बुरे शब्दों से फटकारा, परुष वचनों से अपमानित किया और धमकाया। फिर इस प्रकार कहा–'तुमने क्यों मेरे पुत्र को एकान्त-उकरड़े पर फिकवाया ?' इस तरह कहकर चेलना देवी को भली-बुरी सौगंध-- शपथ दिलाई और कहा-- देवानुप्रिये ! इस बालक की देखरेख करती हुई इसका पालन-पोषण करो और संवर्धन करो। तब चेलना देवी ने श्रेणिक राजा के इस आदेश को सनकर लज्जित, प्रताडित और अपराधिनी-सी हो कर दोनों हाथ जोड़कर श्रेणिक राजा के आदेश को विनयपूर्वक स्वीकार किया और अनुक्रम से उस बालक की देखरेख, लालन-पालन करती हुई वधित करने लगी। एकान्त उकरड़े पर फेंके जाने के कारण उस बालक की अंगुली का आगे का भाग मुर्गे की चोंच से छिल गया था और उससे वार-वार पीव और खन बहता रहता था। इस कारण वह बालक वेदना से चीख-चीख कर रोता था। उस बालक के रोने को सुन और समझकर श्रेणिक राजा बालक के पास पाता और उसे गोदी में लेता। लेकर उस अंगुली को मुख में लेता और उस पीव और खून को मुख से चूस लेता (और थूक देता)! ऐसा करने से वह बालक शांति का अनुभव कर चुपशांत हो जाता / इस प्रकार जब-जब भी वह बालक वेदना के कारण जोर-जोर से रोने लगता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003487
Book TitleAgam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages178
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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