________________ 18] [निरयावलिकासूत्र करके) लिटाया। लिटाकर श्रेणिक राजा की उदरावली पर उस पा रक्त-मांस को फैला दिया--रख दिया और फिर वस्तिपुटक को लपेट दिया। वह ऐसा प्रतीत होने लगा जैसे रक्त-धारा बह रही हो / और फिर ऊपर के माले में चेलना देवी को अवलोकन करने के आसन से बैठाया। अर्थात् ऐसे स्थान पर बिठलाया जहाँ से वह दश्य को देख सके। बैठाकर चलना देवी के ठीक नीचे सामने की ओर श्रेणिक राजा को शैया पर चित लिटा दिया। कतरनी से श्रेणिक राजा की उदरावली का मांस काटा, काटकर उसे एक बर्तन में रखा / तब श्रेणिक राजा ने झूठ-मूठ मूच्छित होने का दिखावा किया और उसके बाद कुछ समय के अनन्तर आपस में बातचीत करने में लीन हो गए। तत्पश्चात् अभयकुमार ने श्रेणिक राजा की उदरावली के मांस-खण्डों को लिया, लेकर जहाँ चेलना देवी थी, वहाँ पाया और पाकर चेलना देवी के सामने रख दिया। तब चेलना देवी ने श्रेणिक राजा के उस उदरावली के मांस के लोथड़े से यावत् अपना दोहद पूर्ण किया। दोहद पूर्ण होने पर चेलना देवी का दोहद संपन्न, सम्मानित और निवृत्त हो गया अर्थात् उसकी इच्छा पूर्ण हो गई / तब वह उस गर्भ का सुखपूर्वक वहन करने लगी। चेलना देवी का विचार 15. तए णं तीसे चेल्लणाए देवीए अन्नया कयाइ पुटवरत्तावरत्तकालसमयंसि अयमेयारूवे [जाव] समुप्पज्जित्था-"जइ ताव इमेणं दारएणं गभगएणं चेव पिउणो उयरवलिमंसाणि खाइयाणि, तं सेयं खलु मए एयं गम्भं साडित्तए वा पाडित्तए वा गालित्तए वा विद्ध सित्तए का", एवं संपेहेइ; 2 त्ता तं गम्भं बहूहिं गन्मसाडणेहि य गडभपाडणेहि य गभगालणेहि य गम्भविद्धसणेहि य इच्छइ तं गम्भं साडित्तए वा पाडिसए वा गालित्तए वा विद्ध सित्तए वा, नो चेव णं से गम्भे सडइ वा पडइ वा गलइ वा विद्धसइ वा। तए णं सा चेल्लणा देवी तं गन्मं जाहे नो संचाएइ बहूहि गम्भसाडएहि य जाव गब्भविद्धसणेहि य साडित्तए वा [जाव] विद्ध सित्तए वा, ताहे सन्ता तन्ता परितन्ता निविण्णा समाणी अकामिया अवसवसा अट्टवसदृदुहट्टा तं गन्मं परिवहइ। [15] कुछ समय व्यतीत होने पर एक बार चेलना देवी को मध्य रात्रि में जागते हुए इस प्रकार का यह यावत् विचार उत्पन्न हुआ-'इस बालक ने गर्भ में रहते ही पिता की उदरावलि का मांस खाया है, अतएव इस गर्भ को नष्ट कर देना, गिरा देना, गला देना एवं विध्वस्त कर देना ही मेरे लिए श्रेयस्कर होगा (क्योंकि जन्म लेने और बड़ा होने पर न जाने यह पिता का या कुल का क्या अनिष्ट करेगा !) उसने ऐसा निश्चय किया। निश्चय करके बहुत सी गर्भ को नष्ट करने वाली गिराने वाली, गलाने वाली और विध्वस्त करने वाली औषधियों से उस गर्भ को नष्ट करना, गिराना, गलाना और विध्वस्त करना चाहा, किन्तु वह गर्भ न नष्ट हुअा, न गिरा, न गला और न विध्वस्त ही हुअा। तदनन्तर जब चेलना देवी उस गर्भ को बहुत सी गर्भ नष्ट करने वाली यावत् विध्वस्त करने वाली औषधियों से नष्ट करने यावत् विध्वस्त करने में समर्थ सफल नहीं हुई तब श्रान्त, क्लान्त, खिन्न और उदास होकर अनिच्छापूर्वक विवशता से दुस्सह आत ध्यान से ग्रस्त हो उस गर्भ को परिवहन-धारण करने लगी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org