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________________ 10] [निरयावलिकासूत्र तिहिं दन्तिसहस्सेहि [जाव] कूणिएणं रन्ना सद्धि रहमुसलं संगाम संगामेमाणिणे हयमहियपवरवीरघाइयणिवडियचिन्धज्मयपडागे निरालोयानो दिसाम्रो करेमाणे चेडगस्स रनो सपषखं सपडिदिसि रहेण पडिरहं हब्वमागए / तए णं से चेडए राया कालं कुमारं एज्जमाणं पासइ, 2 ता प्रासुरुते जाव] मिसिमिसेमाणे धणु परामुसइ, २त्ता उसुपरामुसह, २त्ता वसाहं ठाणं ठाइ, 2 त्ता आययकण्णाययं उसुकरेइ, 2 त्ता कालं कुमारं एगाहच्चं कूडाहच्चं जीवियानो ववरोवेइ / तं कालगए णं काली ! काले कुमारे, नो चेव णं तुमं कालं कुमारं जीवमाणं पासिहिसि" / / 6. तत्पश्चात् श्रमण भगवान ने यावत् उस काली देवी और विशाल जनपरिषद् को धर्मदेशना सुनाई / यहाँ औपपातिक सूत्र के अनुसार धर्मदेशना का कथन करना चाहिए।' यावत् श्रमणोपासक और श्रमणोपासिका आज्ञा के आराधक होते हैं। इसके बाद श्रमण भगवान महावीर से धर्मश्रवण कर और उसे हृदय में अवधारित कर काली रानी ने हर्षित, संतुष्ट यावत् विकसितहृदय होकर श्रमण भगवान् को तीन वार वंदना नमस्कार करके इस प्रकार निवेदन किया-भदन्त ! मेरा पुत्र काल कुमार तीन हजार हाथियों यावत् रथमूसल संग्राम में प्रवृत्त हुआ है / तो हे भगवन् ! क्या वह विजयी होगा अथवा विजयी नहीं होगा ? यावत् क्या मैं काल कुमार को जीवित देख सकूगी ? . प्रत्युत्तर में 'हे काली !' इस प्रकार से संबोधित कर श्रमण भगवान् ने काली देवी से कहाकाली ! तुम्हारा पुत्र काल कुमार, जो तीन हजार हाथियों यावत् कुणिक राजा के साथ रथमूसल संग्राम में जूझते हुए वीरवरों को पाहत, मर्दित, घातित करते हुए और उनकी संकेतसूचक ध्वजापताकाओं को भूमिसात करते हुए-गिराते हुए, दिशा विदिशाओं को पालोकशून्य करते हुए रथ से रथ को अड़ाते हुए चेटक राजा के सामने आया। तब चेटक राजा ने कुमार काल को आते हए देखा, देखकर क्रोधाभिभूत हो यावत् मिसमिसाते हए धनुष को उठाया। उठाकर बाण को हाथ में लिया, लेकर धनुष पर बाण चढ़ाया, चढ़ाकर उसे कान तक खींचा और खींचकर एक ही वार में प्राहत करके, रक्तरंजित करके निष्प्राण कर दिया / अतएव हे काली ! वह काल कुमार कालकवलित-मरण को प्राप्त हो गया है। अब तुम काल कुमार को जीवित नहीं देख सकती हो। विवेचन-महापुरुषों का यह उपदेश और नीति है कि प्रिय एवं सत्य भाषा का प्रयोग करना चाहिए। तब भगवान् ने ऐसा अनिष्ट और अप्रिय उत्तर क्यों दिया? इसका समाधान यह है कि भगवान् सर्वज्ञ सर्वदर्शी थे। उस समय जो कुछ हो रहा या हो चुका था, उसको न तो वे बदल सकते थे और न छिपा सकते थे / अतएव भगवान् ने वही स्पष्ट किया जो हो रहा था। भगवान् ने तो युद्ध का जो परिणाम कालकुमार के लिए हुआ, उसी को स्पष्ट करने के लिए प्रज्ञापनी भाषा में काली देवी को बतलाया कि अब तुम्हारा पुत्र कालगत हो गया है. अतः तुम उसे जीवित नहीं देख सकोगी। साथ ही भगवान् ने यह भी देखा कि पुत्र-वियोग ही काली रानी के वैराग्य का कारण बनेगा। 1. औपपा. पृ. 108 (आगमप्रकाशनसमिति, ब्यावर) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003487
Book TitleAgam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages178
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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