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________________ वर्ग 1: प्रथम अध्ययन] तथारूप श्रमण भगवन्तों का नामश्रवण ही महान् फलप्रद है तो उनके समीप पहुँच कर वन्दननमस्कार करने के फल के विषय में तो कहना ही क्या है ? यावत् उनके पास से श्रुत-विपुल श्रत के अर्थ को ग्रहण करने की महिमा तो अपार है। अतएव मैं श्रमण भगवान् के समीप जाऊँ, यावत् उनकी पर्युपासना करूँ और उनसे पूर्वोल्लिखित प्रश्न पूछ। काली रानी ने इस प्रकार का विचार किया। विचार करके उसने कौटुम्बिक पुरुषों सेवकों को बुलाया। उन्हें बुलाकर यह आज्ञा दी–'देवानुप्रियो ! शीघ्र ही धार्मिक कार्यों में प्रयोग किये जाने वाले श्रेष्ठ रथ को जोत कर लाओ।' कौटुम्बिक पुरुषों ने जुते हुए रथ को उपस्थित किया / यावत् आज्ञानुरूप कार्य किये जाने की सूचना दी। तत्पश्चात् स्नान की हुई एवं बलिकर्म कर चुकी काली देवी यावत् महामूल्यवान् किन्तु अल्प-थोड़े से या थोड़े भार वाले आभूषणों से विभूषित हो अनेक कुब्जा दासियों यावत् महत्तरकवृन्द (अन्तःपुर रक्षिकाओं) को साथ लेकर अन्तःपुर से निकली। निकल कर अपने परिजनों एवं परिवार से परिवेष्टित होकर चम्पा नगरी के बीचों-बीच होकर निकली और निकल कर जहाँ पूर्णभद्र चैत्य था, वहाँ पहुँची। वहाँ पहुँच कर तीर्थंकरों के छत्रादि अतिशयों-प्रातिहार्यों के दृष्टिगत होते ही धार्मिक श्रेष्ठ रथ को रोका। रथ को रोक कर उस धार्मिक प्रवर रथ से नीचे उतरी और उतर कर बहुत-सी कुब्जा प्रादि दासियों यावत् महत्तरकवृन्द के साथ जहाँ श्रमण भगवान् महावीर विराजमान थे, वहाँ पहुँची / फिर तीन बार पादक्षिण प्रदक्षिणा करके वन्दना-नमस्कार किया और वहीं बैठ कर सपरिवार भगवान् की देशना सुनने के लिए उत्सुक होकर नमस्कार करती हुई, अञ्जलि करके विनयपूर्वक सन्मुख पर्युपासना करने लगी। विवेचन-उक्त गद्यांशों में सन्तान के प्रति मातृहृदय की मनोभावनाओं का चित्रण किया गया है। माता का हृदय सन्तान के लिए किचित मात्र अनिष्ट की प्राशंका होने पर चिन्तित-विकल हो उठता है। जब वह विकलता शमित न हो तो अनिष्ट के निवारण के लिए वह मनौती करती है / आप्तजनों की सेवा में पहुँचती है और उस कल्पित अनिष्ट के निवारण के किसी न किसी उपाय को जानने के लिए उत्सक रहती है। काली रानी भी इसी भावना को मन में संजोये हुए भगवान् के समवसरण में उपस्थित भगवान् को देशना : काली की जिज्ञासा का समाधान 9. तए णं समणे भगवं [जाव] कालीए देवीए तोसे य महइमहालियाए परिसाए धम्मकहा भाणियन्या [जाव] समणोवासए वा समणोवासिया वा विहरमाणा आणाए आराहए भवइ / तए णं सा काली देवी समणस्स भगवओ महावीरस्स अन्तियं धम्म सोच्चा निसम्म हट्ठ [जाव] हियया समणं भगवं तिक्खुत्तो, एवं वयासी-"एवं खलु, भन्ते ! मम पुत्ते काले कुमारे तिहिं दन्तिसहस्सेहिं [जाव] रहमुसलं संगामं ओयाए / से गं भंते ! कि जइस्सइ ? नो जइस्सइ, [जाव] काले णं कुमारे अहं जीवमाणं पासिज्जा? "काली" इ समणे भगवं कालि देवि एवं वयासी “एवं खलु, काली तव पुत्ते काले कुमारे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003487
Book TitleAgam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages178
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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