________________ रूप लिया जब स्वर्ग और नरक का चिन्तन उनके लिये आवश्यक हो गया। बौद्ध विज्ञों ने कथाओं के माध्यम से स्वर्ग, नरक और प्रेत योनि का वर्णन बहुत ही रोचक ढंग से प्रस्तुत किया है। अभिधम्मत्थसंग्रह में सत्त्वों की दृष्टि से कामावचर, रूपावचर और अरूपावचर इन तीन भूमियों के रूप में विभाजन किया है। तावतिस, याम, तुसित, निम्मानरति, परिनिम्नितवसवत्ति नाम के देवनिकायों का समावेश कामावचार भूमि में मिलता है। रूपावचार भूमि में सोलह देवनिकायों का समावेश है, जिनके नाम इस प्रकार हैं-१. ब्रह्मपारिसज्ज 2. ब्रह्मपुरोहित 3. महाब्रह्म 4. परिताभ 5. अप्पमाणाभ 6. प्राभस्सर 7. परित्तसुभा 8. अप्पमाणसुभा 9. सुभकिम्हा 10. वेहष्फला 11. असजसत्ता 12. अविहा 13. अतप्पा 14. सुदस्सा 15. सुदस्सी 16. अकनिट्ठा / अरूपावचार भूमि में उत्तरोत्तर अधिक अधिक सुख वाली चार भूमि हैं-१. पाकासानंचायतन 2. वित्राणञ्चायतन 3. अकिंचंबायतन 4. नेबसमाना सञायतन / / बौद्धों ने देवलोकों के अतिरिक्त प्रेत योनि भी मानी है। पेतवत्थु५१ ग्रन्थ में उनकी दिलचस्प कथाएं भी हैं। दीघनिकाय के प्राटानाटिय सूत्त में लिखा है-चगलखोर, खनी, लुब्ध, तस्कर, दगाबाज आदि व्यक्ति प्रेतयोनि में जन्म ग्रहण करते हैं। प्रत पूर्व जन्म के मकान की दीवार के पीछे चौक में मार्ग में आकर खड़े होते हैं जहाँ पर भोज की व्यवस्था होती है। यदि लोग उनका स्मरण करके भी उन्हें भोग नहीं चढ़ाते हैं तो वे बहुत ही दुःखी होते हैं और जो उन्हें भोग देते हैं, उन्हें वे आशीर्वाद प्रदान करते हैं। प्रेतों के शरीर में सदा जलन होती रहती है। वे सदा भ्रमणशील होते हैं। इनके अतिरिक्त पाली ग्रन्थों में खुप्पिपास, कालङ्कजक उतूपजीवी आदि प्रेत जातियों का भी उल्लेख है। वैदिक साहित्य में स्वर्ग वेदों में देव-देवियों का वर्णन मिलता है। ऋग्वेद आदि के अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि मानव ने प्राकृतिक वैभव को निहार कर उसमें देव और देवियों की कल्पना की। उषा को देवताओं की माता कहा है।५3 उसके बाद उषा को धे की पुत्री भी मानी है। "अदिति और दक्ष को भी देवताओं के माता-पिता माना गया है। तो कहीं पर सोम को अग्नि सूर्य इन्द्र विष्ण द्य और पृथ्वी का जनक कहा है। देवताओं में परस्पर पितापुत्र का सम्बन्ध भी बताया गया है। देव उत्पन्न होते हैं। देवता अमर भी हैं, अमरता उनका स्वाभाविक धर्म भी है, यह उन्होंने स्वीकार नहीं किया है। देव सोम का पान करके अमर बनते हैं। यह भी बताया गया हैअग्नि और सविता उन्हें अमरत्व प्रदान करती हैं। देवता नीतिसम्पन्न हैं, बे प्रामाणिक और चरित्रनिष्ठ व्यक्तियों की रक्षा करते हैं, अपने भक्तों पर अनुग्रह करते हैं। शक्ति सौन्दर्य और तेज के वे अधिपति हैं। इस प्रकार ऋगवेद में देवताओं का एक निश्चित क्रम निरूपित नहीं है। सभी देवों का निवास घ लोक में ही माना गया है। वैदिक ऋषियों ने लोक को तीन भागों में विभक्त किया है। द्यो, वरुण, सूर्य, मित्र, विष्णु, दक्ष प्रभति देव द्यु लोक में रहते हैं। इन्द्र, मरुत, रुद्र, पर्जन्य, प्रापः आदि देव अन्तरिक्ष में निवास करते हैं। अग्नि सोम बहस्पति प्रादि देवों का निवास पृथिवी है। 51. पेतवत्थु 1-5 52. Buddhist Conception of Spirits, p. 24 53. देवानां माता -ऋग्वेद 1-113-19 55. देवानां पितरं --ऋग्वेद 2-26-3 54. ऋग्वेद 1-30-22 [ 19 ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org