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________________ 132] [दृढ़प्रतिज्ञ : सम्बद्ध अंश बनाना, वस्त्रों को रंगना, सोना, 19. विलेपन विधि-शरीर पर लेप करने की विधि, 20. शैया बनाने और शयन करने की विधि, 21. मात्रिक छन्दों को बनाना और पहचानना, 22. पहेलियाँ बनाना, 23. मागधिक-मागधी भाषा में गाथा आदि बनाना, 24. निद्रायिका-नींद में सुलाने की कला, 25. प्राकृत भाषा में माथा आदि बनाना, 26. गीति-छन्द बनाना, 27. श्लोक (अनुष्टुप छन्द) बनाना, 28. हिरण्ययक्ति–चाँदी बनाना और चाँदी शुद्ध करना, 26. स्वर्णयुक्ति-स्वर्ण बनाना और स्वर्ण शुद्ध करना, 30. आभूषण-अलंकार बनाना, 31. तरुणीप्रतिकर्म-स्त्रियों का शृंगार, प्रसाधन करना, 32. स्त्रियों के शुभाशुभ लक्षणों को जानना, 33. पुरुष के लक्षण जानना, 34. अश्व के लक्षण जानना, 35. हाथी के लक्षण जानना, 36. मुर्गों के लक्षण जानना, 37. छत्र के लक्षण जानना, 38. चक्र के लक्षण जानना, 36. दंड-लक्षण जानना, 40. असि (तलवार) लक्षण जानना, 41. मणि-लक्षण जानना, 42. काकणी (रत्न विशेष) लक्षण जानना, 43. वास्तुविद्या--गृह, गृहभूमि के गुण दोषों को जानना, 44. नया नगर बसाने की कला, 45. स्कन्धावार-सेना के पड़ाय की रचना करने की कला, नापने-तोलने के साधनों को जानना, 47. प्रति चार-शत्र सेना के सामने अपनी सेना का संचालन, 48. व्यूह रचना–मोर्चा जमाना, 46. चक्रव्यूह-चक्र के आकार की मोर्चाबन्दी करना, 50. गरुड़व्यूह-गरुड़ के प्राकार की व्यूह रचना करना, 51. शकटव्यूह रचना, 52. सामान्य युद्ध रचना, 53, नियुद्ध-मल्ल युद्ध करना, 54. युद्ध-युद्ध-शत्रु सेना की स्थिति के अनुसार युद्ध विधि बदलने की कला, घमासान युद्ध करना, 55. अट्ठियुद्ध-लकड़ी से युद्ध करना, 56. मुष्ठियुद्ध करना, 57. बाहुयुद्ध करना, 58. लतायुद्ध करना, 56. इक्ष्वस्त्र--नागबाण आदि विशिष्ट वाणों के प्रक्षेपण की विधि, 60. तलवार चलाने की कला, ६१.धनुर्वेद-धनुषवाण सम्बन्धी कौशल, 62. चाँदी का पाक बनाना, 63. सोने का पाक बनाना, 64. मणियों के निर्माण की कला, अथवा मणियों की भस्म आदि औषध बनाना, 65. धातु पाक-औषध के लिए अभ्रक प्रादि की भस्म बनान खेल-रस्सी पर खेल, तमाशे, क्रीड़ा करने को कला, 67, वृत्त खेल-क्रीड़ा विशेष, 68. नालिका खेल-जुमा विशेष, 66. पत्र को छेदने की कला, 70. पर्वतीय भूमि की छेदने-काटने की कला, 71. मूच्छित को होश में लाने और अमूच्छित को मृत तुल्य करने की कला, 72. काक, घूक आदि पक्षियों की बोली और उसके शुभ-अशुभ शकुन का ज्ञान / 3. तए गं से कलायरिए तं दढपइन्नं दारगं लेहाइयाओ गणियप्यहाणाओ सउणरुयपज्जयसाणाओ बावरि कलाओ सुत्तमो य अत्थओ य गन्थओ य करणो य सिक्खावेत्ता सेहावेत्ता अम्मापिऊणं उवणेहिइ। [3] तत्पश्चात् कलाचार्य गणित, लेखन आदि से लेकर शकुनिरुत पर्यन्त बहत्तर कालानों को सूत्र (मूल पाठ) अर्थ-व्याख्या एवं प्रयोग से सिखला कर, सिद्ध कराकर दृढ़प्रतिज्ञ बालक को मातापिता के पास ले जाएंगे। 4. तए णं तस्स दढपइनस्स दारगस्स अम्मापियरो तं कलायरियं विउलेणं असणपाणखाइमसाइमेणं वत्थगंधमल्लालंकारेणं सक्कारिस्सन्ति समाणिस्सन्ति / संमाणित्ता विउलं जीवियारिहं पोइवाणं बलइस्सन्ति / दलइत्ता पडिविसज्जेहिन्ति / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003487
Book TitleAgam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages178
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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