________________ परिशिष्ट 2 दृढप्रतिज्ञ : (सम्बद्ध अंश) 1. तए णं तं वढपइन्नं दारगं अम्मापियरो साइरेगअट्ठवासजायगं जाणित्ता सोमणंसि तिहिकरणनक्खत्तमुहत्तंसि व्हागं कयबलिकम्मं कयकोउयमंगलपायच्छित्तं सव्वालंकारविभूसियं करेत्ता महया इडिसक्कारसमुदएणं कलायरियस्स उवणेहिन्ति / [1] तत्पश्चात् दृढप्रतिज्ञ बालक को कुछ अधिक आठ वर्ष का होने पर माता-पिता शुभ तिथि, करण, नक्षत्र और मुहूर्त में स्नान, बलिकर्म, कौतुक-मंगल-प्रायश्चित्त कराके और अलंकारों से विभूषित कर ऋद्धि-वैभव, सरकार, समारोहपूर्वक कलाशिक्षण के लिए कलाचार्य के पास ले जाएंगे। 2. तए णं से कलायरिए तं दढपइन्नं दारगं लेहाइयाओ गणियप्पहाणाओ सउणरुयपज्जवसाणाओ बावतरि कलाओ सुत्तओ अत्थानो पसिक्खावेहिइ य सेहावेहिइ य / तं जहा-लेहं गणियं रूवं नटें गोयं वाइयं सरगयं पोक्खरगयं समतालं जयं जणवायं पासगं अट्ठावयं पोरेकच्चं दगमट्टियं अन्नविहिं पाणविहिं वत्थविहिं विलेवणविहिं सयणविहिं अज्जं पहेलियं मागहियं गाहं गोइयं सिलोगं हिरण्णजुत्ति सुवण्णजुत्ति चुण्णजुत्ति प्राभरणविहि तरुणीपडिकम्म इस्थिलकखणं पुरिसलक्खणं गयलक्खणं गोणलक्षणं कुक्कुडलक्खणं छत्तलखणं दण्डलक्खणं असिलक्खणं मणिलक्खणं कागणिलक्खणं वत्थुविज्ज नगरमाणं खन्धवारं चारं पडिचारं हं पडिवूहं चक्कवूहं सगडवूहं जुद्ध नियुद्ध जुद्धाइजुद्ध अटिजुद्ध मुट्ठिजुद्ध बाहुजुद्ध लयाजुद्ध ईसस्थ छरुप्पवायं धणुष्वेयं हिरण्णपागं सुवण्णपागं सुत्तखेड्डं वट्टखेड्डं नालिखाखेड्डं पत्तच्छेज्जं कडगच्छेज्ज सज्जीवं निज्जीवं सउणरुयमिति / [2] तब कलाचार्य उस दृढ़प्रतिज्ञ बालक को गणित जिनमें प्रधान है, ऐसी लेख (लिपि) आदि शकुनिरुत (पक्षियों की स्वर ध्वनि-बोली) पर्यन्त बहत्तर कलाओं को सूत्र (मूल) से, अर्थ से (विस्तार से व्याख्या करके), ग्रन्थ से (पठन-पाठन) तथा प्रयोग से सिद्ध करायेंगे, अभ्यास कराएंगे। गणित से शकुनिरुत पर्यन्त बहत्तर कलानों के नाम इस प्रकार हैं-१. गणित, 2. लेखन 3. रूप सजाने की कला, 4. नाटक अथवा नत्य करने की कला, 5. संगीत, 6. वाद्य बजाना, (ऋषभ, गंधार आदि संगीत स्वरों का ज्ञान), 8. बाद्य सुधारना, 6. गीत और वाद्यों के सुर-ताल की समानता का ज्ञान, 10 चूत–जुमा खेलना, 11. वार्तालाप और वाद-विवाद करने की प्रक्रिया का ज्ञान, 12. पांसों से खेलना, 13. चौपड़ खेलना, 14. तत्काल काव्य-कविता की रचना करना, 15. जल और मिट्टी को मिलाकर वस्तु निर्माण करना, अथवा जल और मिट्टी के गुणों की परीक्षा करना, 16. अन्न उत्पन्न करने अथवा भोजन बनाने की कला, 17. नया पानी उत्पन्न करना अथवा ओषधि आदि के संयोग-संस्कार से पानी को शुद्ध करना, स्वादिष्ट पेय पदार्थों को बनाना, 18. नवीन वस्त्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org