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________________ बात को स्वीकार नहीं करते और वैधनिक बात का उच्छेद नहीं करते। 4. वज्जी वृद्ध व गुरुजनों का सत्कार-सम्मान करते हैं। 5. वज्जी कुल-स्त्रियों और कुल-कुमारियों के साथ न तो बलात्कार करते हैं और न बलपूर्वक विवाह करते हैं। 6. वज्जी अपनी मर्यादानों का उल्लंघन नहीं करते / 7. वज्जी अर्हतों के नियमों का पालन करते हैं, इसलिये अर्हत उनके वहाँ पर प्राते रहते हैं। ये सात नियम जब तक वज्जियों में हैं और रहेंगे, तब तक कोई भी शक्ति उन्हें पराजित नहीं कर सकती।३. प्रधान अमात्य 'वस्सकार' ने आकर अजातशत्रु से कहा-और कोई उपाय नहीं है, जब तक उनमें भेद नहीं पड़ता, तब तक उनको कोई भी शक्ति हानि नहीं पहुंचा सकती / वस्सकार के संकेत से अजातशत्रु ने राजसभा में 'वस्सकार' को इस आरोप से अमात्य पद से पृथक कर दिया कि यह वज्जियों का पक्ष लेता है। वस्सकार को पृथक् करने की सूचना वज्जियों को प्राप्त हुई। कुछ अनुभवियों ने कहा-उसे अपने यहाँ स्थान न दिया जाये। कुछ लोगों ने कहा-नहीं, वह मगधों का शत्रु है, इसलिये वह हमारे लिये बहुत ही उपयोगी है। उन्होंने 'वस्सकार' को अपने पास बुलाया और उसे 'अमात्य' पद दे दिया। वस्सकार ने अपने बुद्धि बल से वज्जियों पर अपना प्रभाव जमाया। जब बज्जी गण एकत्रित होते, तब किसी एक को वस्सकार अपने पास बुलाता और उसके कान में पूछता—क्या तुम खेत जोतते हो? वह उत्तर देता-हाँ, जोतता है। महामात्य का दूसरा प्रश्न होतादो बैल से जोतते हो या एक बैल से? दूसरे लिच्छवी उस व्यक्ति से पूछते-बतायो, महामात्य ने तुम्हें एकान्त में ले जाकर क्या कहा? वह सारी बात कह देता। पर वे कहते- तुम सत्य को छिपा रहे हो। वह कहता-यदि तुम्हें मुझ पर विश्वास नहीं है तो मैं क्या कहूँ ? इस प्रकार एक-दूसरे में अविश्वास की भावना पैदा की गई और एक दिन उन सभी में इतना मनोमालिन्य हो गया कि एक लिच्छवीं दूसरे लिच्छवी से बोलना भी पसन्द नहीं करता / सन्निपात भेरी बजाई गई, किन्तु कोई भी नहीं पाया। 'वस्सकार' ने अजातशत्रु को प्रच्छन्न रूप से सूचना भेज दी। उसने ससैन्य आक्रमण किया / भेरी बजायी गयी पर कोई भी तैयार नहीं हया। प्रजातशत्रु ने नगर में प्रवेश किया और वैशाली का सर्वनाश कर दिया। जैन और बौद्ध दोनों ही परम्पराओं ने मगधविजय और वैशाली के नष्ट होने के विवरण प्रस्तुत किए हैं। जैन दृष्टि से चेटक अट्ठारह गणदेशों का नायक था। बौद्ध परम्परा उसे केवल प्रतिपक्षी ही मानती है। जैन दृष्टि कणिक के पास तेतीस करोड़ सेना थी तो चेटक के पास सत्तावन करोड़ सेना थी। दोनो ही युद्धों में एक करोड़ प्रस्सी लाख मानवों का संहार हमा। बौद्ध दृष्टि से युद्ध का निमित्त रत्नराशि है। जैन परम्परा ने जैसे चेटक का प्रहार अमोघ बताया है वैसे ही बौद्ध ग्रन्थों की दृष्टि से वज्जी लोगों के प्रहार अचूक थे। नगर की रक्षा का मूल आधार जैन दृष्टि से स्तूप को माना है तो बौद्ध दृष्टि से पारस्परिक एकता, मुरुजनों का सम्मान प्रादि बताया गया है। जितना व्यवस्थित वर्णन जैन परम्परा में है उतना बौद्ध परम्परा में नहीं हो पाया है। वैशाली की पराजय में दोनों ही परम्पराओं में छद्म भाव का उपयोग हुआ है। वैशाली का युद्ध कितने समय तक चला ? इस सम्बन्ध में जैन दृष्टि से एक पक्ष तक तो प्रत्यक्ष युद्ध हुआ और कुछ समय प्राकार-भंग में लगा। बौद्ध दृष्टि से गोन वर्ष तक वैशाली में रहा और लिच्छिवियों में भेद उत्पन्न करता रहा। डा. राधाकुमुद मुखर्जी के अभिमतानुसार युद्ध की अवधि कम से कम सोलह वर्ष तक की है / 32 30. दीघनिकाय, महापरिनिम्बाणसुत, 2 / 3 (16) 31. दीघनिकाय अट्ठकथा, खण्ड 1, पृष्ठ 523 32. हिन्दू सभ्यता, पृष्ठ 189 - राधाकुमुदमुखर्जी [15] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003487
Book TitleAgam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages178
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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