________________ की रक्षा करना मेरा कर्तव्य है / यदि कूणिक हार और हाथी के बदले आधा राज्य दे तो हम हार और हाथी लौटा सकते हैं / कूणिक को यह संदेश प्राप्त हुआ तो उसे अत्यन्त क्रोध आया। बह अपने दसों भाइयों को सेना को लेकर वैशाली पहुंचा। कूणिक की सेना में तेतीस सहस्र हस्ती, तेतीस सहस्र अश्व, तेतीस सहस्र रथ और तेतीस करोड़ पदाति थे / राजा चेटक ने नौ मल्लकी, नौ लिच्छवी, इन अदारह काशी-कौशल राजाओं को बुलाकर उन से परामर्श किया। सभी ने कहा-शरणागत की रक्षा करना क्षत्रियों का कर्तव्य है। वे सभी युद्ध के मैदान में पाए / चेटक की सेना में सत्तावन सहस्र हाथी, सत्तावन सहस्र अश्व, सत्तावन सहस्र रथ और सत्तावन करोड़ पदाति सैनिक थे। राजा चेटक भगवान महावीर का परम उपासक था। उसने श्रावक के द्वादश व्रत ग्रहण किए थे। उसने एक विशेष नियम भी ले रखा था कि मैं एक दिन में एक ही बार बाण चलाऊँगा। उसका बाण कभी भी निष्फल नहीं जाता था।२६ प्रथम दिन अजातशत्रु कणिक की ओर से कालकुमार सेनापति होकर सामने आया। उसने गरुड़ व्यूह की रचना की। भयंकर युद्ध हमा। राजा चेटक ने अमोघ बाण का प्रयोग किया और कालकूमार जमीन पर लुढ़क पड़ा। इसी तरह एक-एक कर दस भाई सेनापति बन कर पाए और वे सभी राजा चेटक के अचूक बाण से मरकर नरक में उत्पन्न में हुए। उस समय भगवान महावीर चम्पा नगरी में थे। उनकी माताओं को ज्ञात हा कि हमारे पुत्र युद्ध के मैदान में मर चुके हैं, अतः वे सभी आहती दीक्षा ग्रहण कर लेती हैं / भगवती सूत्र में उसके पश्चात रथमूसल संग्राम और महाशिला कंटक संग्राम का उल्लेख है। ये दोनों संग्राम आधुनिक विश्व युद्ध की तरह घोर विनाशकर्ता थे। बौद्ध साहित्य वैशालीनाश का प्रसंग बौद्ध साहित्य में भी यह प्रकरण कुछ भिन्न प्रकार से उल्लिखित है-गंगातट के एक पट्टन के सन्निकट पर्वत में रत्नों की खान थी। 27 अजातशत्रु और लिच्छवियों में यह समझौता हुआ था कि आधे-आधे रत्न परस्पर ले लेंगे। अजातशत्रु ढीला था। आज या कल करते हुए वह समय पर नहीं पहुँचता। लिच्छवी सभी रत्न लेकर चले जाते / अनेक बार ऐसा होने से उसे बहुत ही क्रोध आया पर गणतन्त्र के साथ युद्ध कैसे किया जाय ? उनके बाण निष्फल नहीं जाते।८ यह सोचकर वह हर बार युद्ध का विचार स्थगित करता रहा, पर जब वह अत्यधिक परेशान हो गया तब उसने मन ही मन निश्चय किया कि मैं यज्जियों का अवश्य विनाश करूंगा। उसने अपने महामन्त्री 'वस्सकार' को बुलाकर तथागत बुद्ध के पास भेजा।२० वज्जी-लिच्छवी-चिन्तनीय तथागत बुद्ध ने कहा-बज्जियों में सात बातें हैं 1. सन्निपात-बहल हैं अर्थात वे अधिवेशन में सभी उपस्थित रहते हैं। 2. उनमें एकमत है। जब सन्निपात भेरी बजती है तब वे चाहे जिस स्थिति में हों, सभी एक हो जाते हैं। 3. वज्जी अप्रज्ञप्त (अवैधानिक) 26. चेटकराजस्य तु प्रतिपन्नं व्रतत्वेन दिनमध्ये एकमेव शरं मुञ्चति अमोघबाणश्च / -~-निरयावलिका सटीक, पत्र 6-1 27. बुद्धचर्या (पृष्ठ 484) के अनुसार-पर्वत के पास बहुमूल्य सुगन्ध वाला माल उतरता था। 28. (क) दीघनिकाय अट्ठ कथा (सुमंगल विलासिनी) खण्ड 2, पृ. 526 (ख) Dr. B. C Law : Budhoghosa, Page III (घ) हिन्दू सभ्यता, पृष्ठ 118 29. दीघनिकाय, महापरिनिव्वाणसुत्त, 223 (16) [ 14 ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org