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________________ कहा-पिता को मुक्त कर दो। संवाददाताओं ने राजा के हाथ में बिम्बिसार की मृत्यु का पत्र थमा दिया / पिता की मत्यु का संवाद पढ़ते ही वह आँसू बहाने लगा और दौड़कर मां के पास पहुंचा। मां से पूछा-माँ ! क्या मेरे पिता का भी मेरे प्रति प्रेम था ? माँ ने अंमुली चुसने की बात कही। पिता के प्रेम की बात को सुनकर वह अधिक शोकाकुल हो गया और मन ही मन दुःखी होने लगा। कणिक का दोहद, अंगुली में व्रण, कारागृह आदि प्रसंगों का वर्णन जैन और बौद्ध दोनों ही परम्परानों में प्राप्त है। परम्परा में भेद होने के कारण कुछ निमित्त पृथक हैं। जैन परम्परा की घटना 'निरयावलिका' की है और बौद्ध परम्परा में यह घटना 'अट्ठकथाओं में आई है। पं. दलसुख मालवाणिया निरयावलिका की रचना वि. सं. के पूर्व की मानते है और अट्ठकथाओं का रचनाकाल वि. की पांचवीं शती है / 23 - जैन परम्परा के साहित्य में भी कूणिक की क्रूरता का चित्रण है किन्तु बौद्ध परम्परा जैसा नहीं / बौद्ध परम्परा में अजातशत्रु अपने पिता के पैरों को छिलवाता है और उसमें नमक भरवाकर अग्नि से सेक करदाता है / यह है उसका दानवीय रूप / जैन परम्परा में श्रेणिक को कूणिक के द्वारा कारागृह में डालने की बात तो कही है पर पिता को अमानवीय तरीके से क्षुधा से पीड़ित कर मारने की बात नहीं कही। जैन दष्टि से श्रेणिक ने स्वयं ही मृत्यु को वरण किया है तो बौद्धपरम्परा में श्रेणिक अपने पुत्र अजातशत्रु द्वारा मरवाया गया।" महाशिला कंटक संग्राम पिता की मृत्यु के पश्चात् कूणिक राज्य का संचालन करने लगा। उसका सहोदर लघुभ्राता वेहल्ल कुमार था। सम्राट् श्रेणिक ने अपने पुत्र वेहल्ल कुमार को सेचनक हाथी और अट्ठारहसरा हार दिया था, जिसका मूल्य श्रेणिक के पूरे राज्य के बराबर था।५ प्रस्तुत प्रागम में हार और हाथी का प्रसंग बेहल्लकुमार के साथ बताया गया है जबकि भगवतीसूत्र की टीका, निरयावलिया की टीका, भरतेश्वरबाहुबली वृत्ति प्रभूति ग्रन्थों में हल्ल और वेहल्ल इन दोनों के साथ इस घटना को जोड़ा गया है। अनुत्तरोपपातिक में वेहल्ल और बेहायस को चेलना का पुत्र बताया गया है और हल्ल को धारिणी का पुत्र / निरयावलिका वत्ति और भगवती वृत्ति में हल्ल और वेहल्ल को चेलना का पुत्र लिखा है। प्रागममर्मज्ञों को इस सम्बन्ध में स्पष्टीकरण करने की आवश्यकता है। कुणिक ने अपना राज्य ग्यारह भागों में बांटा था।:कालकुमार, सुकाल कुमार आदि भाइयों को राज्य का हिस्सा दिया था पर हल्ल, वेहल्ल को नहीं। वेहल्लकुमार सेचनक हस्ती पर आरूढ़ होकर अपने अन्त:पुर के साथ गंगा नदी के तट पर जलक्रीड़ा के लिए ता है। उसकी प्रानन्दक्रीड़ा को निहार कर कणिक की पत्नी पद्मावती के मन में हार-हाथी प्राप्त करने की भावना जागृत हुई। उसने पुनः पुनः कुणिक को कहा कि हार-हाथी भाई से प्राप्त करो। कृणिक ने तब वेहल्ल को बुलाकर कहा-मुझे हार-हाथी दे दो। उसने कहा-मुझे ये दोनों पिता ने दिए हैं। वेहल्ल कुमार को लगा-कणिक मुझसे हार-हाथी छीन लेगा अतः वह कूणिक के भय से अपनी वस्तुओं को लेकर अपने नाना चेटक के पास वैशाली पहुंच गया। कणिक को जब ज्ञात हुआ तो उसने दूत को भेजा। चेटक ने कहा-शरणागत 22. प्रागमयुग का जैनदर्शन, सन्मतिज्ञानपीठ आगरा 1966, पृ. 29 --पं. दलसुख मालवणिया 23. प्राचार्य बुद्धघोष-महाबोधिकसभा, सारनाथ, वाराणसी, 1956 24. धर्मकथानुयोग : एक समीक्षात्मक अध्ययन-~-प्रस्तावना-पृष्ठ 117 (ले. देवेन्द्र मुनि शास्त्री) 25. आवश्यकचूणि, उत्तराद्ध, पत्र 167 [ 13 ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003487
Book TitleAgam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages178
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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