SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 159
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 126] [महाबल जानकर माता-पिता ने आठ प्रासादावतंसकों का निर्माण कराया। वे प्रासाद अपनी ऊंचाई से आकाश को स्पर्श करते थे इत्यादि जैसा राजप्रश्नीय सूत्र में प्रासादों का वर्णन किया गया है तदनुरूप अतीव मनोहर थे, इत्यादि वर्णन जानना चाहिए। उन प्रासादावतंसकों के ठोक मध्य भाग में एक विशाल भवन का निर्माण कराया / उसमें सैकड़ों खंभे लगे थे, प्रेक्षागृह मंडप बना था। वह अतीव मनोहर था इत्यादि उसका भी वर्णन राजप्रश्नीय सूत्र के अनुसार करना चाहिए। 22. तए णं तं महब्बलं कुमारं अम्मापियरो अन्नया कयावि सोभणंसि तिहि-करण-दिवसनक्खत्त-मुहुत्तंसि व्हायं कयबलिकम्मं कयकोउयमङ्गलपायच्छित्तं सव्वालकारविभूसियं पमक्खणग-व्हाणगोय-वाइय-पसाहणढङ्गतिलककङ्कण अविहयवहुउवणीयं मङ्गलसुजम्पिएहि य वरकोउयमङ्गलोक्यारकयसन्तिकम्मं सरिसयाणं सरित्तयाणं सरिव्ययाणं सरिसलावण्ण-रूव-जोवण-गुणोववेयाणं विणीयाणं कयकोउय-मङ्गलपायच्छित्ताणं सरिसरहितो रायकुलेहितो आणिल्लियाणं अट्टण्हं रायवरकन्ना एगविवसेणं पाणि गिण्हाविसु / [22] तत्पश्चात् माता-पिता ने किसी समय शुभ तिथि, करण, दिन, नक्षत्र भोर मुहूर्त में महाबल कुमार को स्नान, बलिकर्म और कौतुक मांगलिक प्रायश्चित्त कराकर सर्व अलंकारों से विभूषित किया / उबटन, स्नान, गीत, वाद्य, प्रसाधन, तिलक प्रादि करके कंकण आदि पहनाए, सौभाग्यवती नारियों ने मंगलगान किया, उत्तम कौतुक, मंगलोपचार और शांतिकर्म किए गए। समान, समान त्वचा, समान वय, समान लावण्य, रूप एवं यौवन गुणसे युक्त विनीत, समान राजकुलों से लाई हुई पाठ उत्तम राजकन्याओं से उसका एक ही दिन में पाणिग्रहण करवाया। 23. तए णं तस्स महाबलस्स कुमारस्स अम्मापियरो अयमेयाख्वं पीइदाणं दलयन्ति / तं जहा-अट्ठ हिरण कोडीमो, अट्ट सुवण्णकोडोडओ, अट्ठ मउडे मउडप्पवरे, अट्ठ कुण्डलजुए कुण्डलजुयप्पवरे, अट्ट हारे हारप्पवरे, अट्ठ प्रद्धहारे अद्धहारप्पवरे, अट्ठ एगावलीओ एगावलिप्पवरामओ, एवं अट्ठ मुत्तावलीओ, एवं कणगावलोप्रो एवं रयणावलीओ, अट्ठ कडगजोए कडगजोयप्पवरे, एवं तुडियजोए, प्रट्ट खोमजुयलाई खोमजुयलप्पवराई एवं वडगजुयलाइं, एवं पट्टजुयलाई, एवं दुगुल्लजुयलाई, अट्टसिरीओ, अट्ठ हिरोओ, एवं धिईओ, कित्तीओ, बुद्धीओ, लच्छीओ, अट्ठ नन्दाई, अट्ठ भद्दाई, अट्ठ तले तलप्पवरे, सम्वरयणामए, णियगवरभवणकेऊ, अट्ट झए प्रयप्पवरे, अट्ठ वए अयप्पवरे दसगोसाहस्सिएणं वएणं, अट्ठ नाडगाई नाडगष्पवराई बत्तोसबद्धणं नाडएणं, अट्ठ आसे आसप्पयरे, सम्वरयणामए सिरिघरपडिरूवए, अट्ट हत्थी हस्थिप्पवरे, सव्वरयणामए सिरिघरपडिरूदए, अट्ठ जाणाई जाणप्पवराई, अट्ठ जुगाई जुगप्पवराई, एवं सिवियाओ, एवं सन्दमाणीओ, एवं गिल्लोश्रो, थिल्लोप्रो, अट्ठ वियरजाणाई वियडजाणप्पवराई, अट्ठ रहे पारिजाणिए, अट्ठ रहे संगामिए, अट्ठ मासे आसप्पवरे, अढ हत्थी हत्थिप्पवरे, अट्ठ गामे गामप्पवरे, दसकुलसाहस्सिएणं मामेणं, अट्ट दासे दासप्पवरे, एवं चेव दासीओ, एवं किङ्करे, एवं कञ्चुइज्जे, एवं वरिसधरे, एवं महत्तरए, अट्ठ सोवण्णिए ओलम्बणदोवे, अट्ठ 1-2. राजप्रश्नीय सूत्र 50 (आगम प्रकाशन समिति, व्यावर) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003487
Book TitleAgam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages178
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy