________________ परिशिष्ट] [125 दिन व्यतीत होने पर जाम संबन्धी प्रशचि नित्ति का कार्य करके बारहवें दिन विपुल अशन, पान, खाद्य स्वाद्य पदार्थ बनवाए और शिव राजा के समान यावत् मित्रों तथा क्षत्रियों आदि को आमंत्रित किया। तत्पश्चात् स्नान एवं बलि-कर्म किए हुए बल राजा ने भोजन आदि द्वारा उनका सत्कार सम्मान किया। फिर उन्हीं मित्रों, जाति बंधुओं यावत् राजन्यों और क्षत्रियों के समक्ष पितामह, पिता, प्रपितामह आदि से चली आ रही कुलपरंपरा के अनुसार कुलानुरूप, कुलोचित, कुल संतान (परंपरा) की वृद्धि करने वाला इस प्रकार का यह गुण-युक्त और गुण-निष्पन्न नामकरण किया-- क्योंकि हमारा यह बालक बल राजा का पुत्र और प्रभावती देवी का आत्मज है, अतएव हमारे इस बालक का नाम 'महाबल' हो। तब उस बालक के माता-पिता ने उसका 'महाबल' यह नामकरण किया। 20. तए णं से महम्बले दारए पञ्चधाईपरिग्गहिए, तं जहा-खीरधाईए, एवं जहा बढपइन्ने, माव निवायनिवाघायंसि सुहं सुहेणं परिवड्ढइ / तए णं तस्स महबलस्स दारगस्स सम्मापियरो अणपुटवणं टिइडियं वा चंदसूरदंसावणियं वा जागरियं वा नामकरणं वा परंगामणं वा पयचंकमणं वा जेमामणं वा पिण्डवचणं वा पज्जपावणं वा कण्णवेहणं वा संवच्छरपडिलेहणं वा चोलोयणगं वा उवणयणं वा अन्नाणि य बहूणि गम्भाधाणअम्मणमाइयाइं कोउमाई करेन्ति / [20] तत्पश्चात् वह महाबल बालक क्षीरधात्री आदि पांच धाय माताओं द्वारा दृढ़प्रतिज्ञ कुमार के समान पालन किया जाता हुआ निर्वात और निर्याघात स्थान में रहे हुए चंपक वृक्ष के समान सुखपूर्वक परिवधित होने-बढ़ने लगा। इसके बाद उस महादल बालक के माता-पिता ने अनुक्रम से स्थितिपतिका-जन्म दिवस से लेकर चन्द्र-सूर्य दर्शन, जागरण, नामकरण, परंगामण घुटनों चलना, पदचंक्रमण-~-पैरों से चलना, अन्नप्राशन, पिडवर्धन (भोजन की मात्रा बढ़ाना, संभाषण करना, कर्णवेधन, वर्षगांठ, चोलोपनयन (सिरमुडन) उपनयन आदि बहुत से गर्भाधान से लेकर जन्ममहोत्सव आदि तक के कौतुक (संस्कार) किए। 21. तए णं तं महब्बलं कुमारं अम्मापियरो साइरेगढवासमं जाणित्ता सोभणसि तिहि-करणमक्खस-मुहत्तंसि, एवं जहा बढप्पइन्नो, जाव अलंभोगसमत्थे जाए यादि होत्था। तए णं तं महम्बलं कुमारं उम्मुक्कबालभावं जाव अलंभोगसमरणं वियाणित्ता अम्मापियरो प्रह पासायडिसए करेन्ति, मसग्गयमूसिए पहसिए इव, वण्णमओ जहा रायपसेणइज्जे, जाब पडिकवे / तेसिं गं पासायडिसगाणं बहुमजसदेसमागे एस्थ णं महेगं मवणं करेन्ति अणेगखम्मसयसंनिविठं, वण्णमो जहा रायपसेणइज्जे, पेच्छाघरमण्डवंसि जाव पडिस्वे। [21] तत्पश्चात् माता-पिता ने उस महाबल कुमार को कुछ अधिक आठ वर्ष का हुआ जानकर शुभ तिथि, करण, नक्षत्र और मूहूर्त में दृढ़-प्रतिज्ञ कुमार के समान कलाचार्य के पास कलाध्ययन के लिए भेजा यावत् वह भोग भोगने में समर्थ हो गया। इसके बाद उस महाबल कुमार को बाल्यावस्था को पार कर यावत् भोग भोगने के योग्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org