________________ वर्ग 5 : प्रथम अध्ययन] [107 . (11) तब उस उत्तम प्रासाद पर रहे हुए निषधकुमार को उस जन-कोलाहल आदि को सुनकर कौतूहल हुया और वह भी जमालि के समान ऋद्धि वैभव के साथ प्रासाद से निकला यावत् भगवान् के समवसरण में धर्म श्रवण कर और उसे हृदयंगम करके उसने भगवान् को वंदना-नमस्कार किया। वंदन-नमस्कार करके इस प्रकार के उदगार व्यक्त किए-भदन्त ! मैं निर्ग्रन्थ-प्रवचन पर श्रद्धा करता हूँ इत्यादि / चित्त सारथी के समान यावत् उसने श्रावकधर्म अंगीकार किया और श्रावकधर्म अंगीकार करके वापिस लौट गया। वरदत्त अनगार को जिज्ञासा : अरिष्टनेमि का समाधान 12. तेणं कालेणं तेणं समएणं अरहा अरिटुनेमिस्स अन्तेवासी वरदत्त नाम अणगारे उराले जाव विहरइ। तए णं से वरदत्ते अणगारे निसढं पासइ, 2 ता जायसढे जाव पज्जुवासमाणे एवं वयासी-"अहो णं, मंते, निसढे कुमारे इठे इटरूवे कन्ते कन्तरूवे, एवं पिए पियरूवे मणुन्नए, मणामे मणामरूवे सोमे सोमरूवे पियवंसणे सुरुवे / निसढेणं भंते ! कुमारेण प्रयमेयारूवे माणुस्सइडी किण्णा लद्धा, किण्णा पत्ता?" पुच्छा जहा सूरियामस्स / एवं खलु वरदत्ता ! तेणं कालेणं तेणं समयेणं इहेब अम्बुद्दीवे दोवे भारहे वासे रोहीडए नामं नयरे होत्था, रिद्ध....."। मेहवणे उज्जाणे / माणिदत्तस्स जक्खस्स जक्खाययणे / तत्थ गं रोहीडए नयरे महब्बले नामं राया। पउमावई नामं देवी अन्नया कयाइ तंसि तारिसगंसि सयणिज्जंसि सीहं सुमिणे.......", एवं जम्मणं भाणियव्वं जहा महाबलस्स, नवरं वीरङ्गयो नाम, बत्तीसप्रो दाओ, बत्तीसाए रायवरकन्नगाण पाणि जाव ओगिज्जमाणे 2 पाउसवरिसारत्तसरयहेमन्तगिम्हवसन्ते छप्पि उऊ जहाविभवे समाणे इठे सद्दफरिसरसरूवगंधे पञ्चविहे माणुस्सगे कामभोए भुञ्जमाणे विहरइ / तेणं कालेणं तेणं समएणं सिद्धस्था नाम आयरिया जाइसंपन्ना जहा केसी, नवरं बहुस्सुया बहुपरिवारा जेणेव रोहीडए नयरे, जेणेव मेहवण्णे उज्जाणे, जेणेव माणिवत्तस्स जक्खस्स उक्खाययणे, तेणेव उवागए अहापडिरूवं जाव विहरइ / परिसा निग्गया। [12] उस काल और समय में अर्हत् अरिष्टनेमि के प्रधान शिष्य वरदत्त नामक अनगार विचरण कर रहे थे। उन वरदत्त अनगार ने निषधकुमार को देखा / देखकर जिज्ञासा हुई यावत् अरिष्टनेमि भगवान् को पर्युपासना करते हुए इस प्रकार निवेदन किया-अहो भगवन् ! यह निषध कुमार इष्ट, इष्ट रूप वाला, कमनीय, कमनीय रूप से सम्पन्न एवं प्रिय, प्रिय रूप बाला, मनोज्ञ, मनोज्ञ रूप वाला, मणाम, मणाम रूपवाला, सौम्य, सौम्य रूपवाला, प्रियदर्शन और सुन्दर है ! भदन्त ! इस निषध कुमार को इस प्रकार की यह मानवीय ऋद्धि कैसे उपलब्ध हुई, कैसे प्राप्त हुई ? इत्यादि सूर्याभदेव के विषय में गौतम स्वामी की तरह (वरदत्त मुनि ने) प्रश्न किया। अर्हत् अरिष्टनेमि ने वरदत्त अनगार का समाधान करते हुए कहा-पायुष्मन् वरदत्त ! उस काल और उस समय में इसी जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में रोहीतक नाम का नगर था। वह धन धान्य से समद्ध था इत्यादि / वहाँ मेघवन नाम का उद्यान था और मणिदत्त यक्ष का यक्षायतन था। उस रोहीतक नगर के राजा का नाम महाबल था और रानी का नाम पदमावतो था। किसो एक रात Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org