________________ 106] [वह्निवशा कृष्ण वासुदेव का दर्शनार्थ गमन 10. तए गं तीसे सामुदाणियाए भेरीए महया 2 सद्देण तालियाए समाणीए समुद्दविजयपामोक्खा दसारा, देवीओ माणियवाओ, जाव अणङ्गसेणापामोक्खा अणेगा गणियासहस्सा भन्ने य बहवे राईसर जाव सस्थवाहप्पभिईओ व्हाया जाय पायच्छित्ता सवालंकारविभूसिया जहाविभवइड्डीसक्कारसमुदएणं अप्पेगइया हयगया गयगया पायचारविहारेणं वन्दावन्दएहि पुरिसवागुरापरिक्खित्ता जेणेव कण्हे वासुदेवे, तेणेव उवागच्छंति, २त्ता करयल कण्हं वासुदेवं जएण विजएणं वद्धावेन्ति / तए णं से कण्हे वासुदेवे कोडुम्बियपुरिसे एवं वयासी-"खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! आभिसेक्कं हस्थिरयणं कप्पेह हयगयरहपवर०" जाव पच्चप्पिणन्ति / ___तए णं से कण्हे वासुदेवे मज्जणघरे जाव दुरुढे, अट्ट मङ्गलगा, जहा कूणिए, सेयवरचामरेहि उद्ध ब्वमाणेहि 2 समुद्दविजयपामोक्खेहि दहि दसारेहिं जाव सत्यवाहपभिईहिं सद्धि संपरिबुडे सन्धिड्डीए जाव रवेणं बारवई नरि मज्झमझेणं,..."सेसं जहा कूणिओ जाव पज्जुवासइ / [10] उस सामुदानिक भेरी को जोर-जोर से बजाए जाने पर समुद्रविजय आदि दसार, देवियाँ यावत् अनंगसेना आदि अनेक सहस्र गणिकाएँ तथा अन्य बहुत से राजा, ईश्वर यावत् सार्थवाह प्रति स्नान कर यावत प्रायश्चित्त-मंगलविधान कर सर्व अलंकारों से विभूषित हो यथोचित अपने-अपने वैभव ऋद्धि सत्कार एवं अभ्युदय के साथ कोई घोड़े पर आरूढ होकर, कोई हाथी पर आरूढ़ होकर और कोई पैदल ही जनसमुदाय को साथ लेकर जहाँ कृष्ण वासुदेव थे, वहाँ उपस्थित हए। उन्होंने दोनों हाथ जोड़ कर यावत कृष्ण वासदेव का जय-विजय शब्दों से अभिनन्दन किया। तदनन्तर कृष्ण वासुदेव ने कौटुम्बिक पुरुषों को यह प्राज्ञा दी-देवानुप्रियो ! शीघ्र ही आभिषेक्य हस्तिरत्न को विभूषित करो और अश्व, गज, रथ एवं पदातियों से युक्त चतुरंगिणी सेना को सुसज्जित करो, यावत् मेरी यह आज्ञा वापिस लौटायो। ___ तत्पश्चात् कृष्ण वासुदेव ने स्नानगृह में प्रवेश किया। यावत् स्नान करके, वस्त्रालंकार से विभूषित होकर वे आरूढ़ हुए। प्रस्थान करने पर उनके आगे-आगे आठ मांगलिक द्रव्य चले और कूणिक राजा के समान उत्तम श्रेष्ठ चामरों से विजाते हुए समुद्रविजय आदि दस दसारों यावत् सार्थवाह आदि के साथ समस्त ऋद्धि यावत् वाद्यघोषों के साथ द्वारवती नगरी के मध्य भाग में से निकले इत्यादि वर्णन समझ लेना चाहिए। यावत् पर्युपासना करने लगे यहाँ तक का शेष समस्त वर्णन कूणिक के समान जानना चाहिए।' निषध कुमार का दर्शनार्थ गमन 11. तए णं तस्स निसहस्स कुमारस्स उप्पि पासायवरगयस्स तं मया जणसह च.."जहा जमाली, जाव धम्म सोच्चा निसम्म बन्दइ, नमसइ, २त्ता एवं वयासो-"सद्दहामि गं, भंते, निग्गन्थं पाययणं, जहा चित्तो, जाव सावगधम्म पडिवज्जइ, 2 त्ता पडिगए। 1. देखिए औपपातिकसूत्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org