________________ वर्ग 5 प्रथम अध्ययन] [105 अधिपतित्व, नेतृत्व, स्वामित्व, भट्टित्व, महत्तरकत्व प्राज्ञश्वर्यत्व और सेनापतित्व करते हुए उनका पालन करते हुए, उन पर प्रशासन करते हुए विचरते थे। उसी द्वारका नगरी में बलदेव नामक राजा (श्रीकृष्ण वासुदेव के ज्येष्ठ भ्राता) थे। वे महान् थे यावत् राज्य का प्रशासन करते हुए रहते थे। उन बलदेव राजा को रेवती नाम की देवी-पत्नी थी, जो सुकुमाल थी यावत् भोगोपभोग भोगती हई विचरण करती थी। किसी समय रेवती देवी ने अपने शयनागार में औपपातिक सूत्र में वर्णित विशिष्ट प्रकार को शय्या पर सोते हुए यावत् स्वप्न में सिंह को देखा / स्वप्न देखकर वह जागृत हुई। यहाँ स्वप्नदर्शन आदि का कथन करना चाहिए / अर्थात् स्वप्न देख कर वह अपने पति के पास गई / उन्हें स्वप्न देखने का वृत्तान्त कहा। पति बलदेव ने स्वप्न के फल का निर्देश किया। प्रातःकाल स्वप्नपाठकों को आमन्त्रित किया गया। उन्होंने स्वप्नफल कथन की पुष्टि की। यथासमय बालक का जन्म हुआ। वह जब आठ वर्ष का हो गया तो महाबल के समान उसने बहत्तर कलाओं का अध्ययन किया। विवाह के समय उसे पचास वस्तुएँ दहेज में दी गई। एक ही दिन पचास उत्तम राजकन्याओं के साथ ग्रहण हग्रा इत्यादि / विशेषता यह है कि उस बालक का नाम निषध था यावत वह आमोदप्रमोद के साथ प्रासाद में रहकर प्रानन्दपूर्वक समय व्यतीत करने लगा। अर्हत अरिष्टनेमि का आगमन 9. तेणं कालेणं तेणं समएणं अरहा अरिद्वनेमी आइगरे दस धणूइं...."वण्णओ जाव समोसरिए / परिसा निग्गया। तए णं से कण्हे वासुदेवे इमोसे कहाए लद्धठे समाणे हट्टतुळे कोडुम्बियपुरिसे सद्दावेइ 2 ता एवं वयासी-"खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया, समाए सुहम्माए सामुदाणियं भेरि तालेहि"। तए णं से कोडुम्बियपुरिसे जाव पडिसुणित्ता जेणेव सभाए सुहम्माए सामुदाणिया भेरी, तेणेव उवागच्छइ, 2 ता सामुदाणियं भेरि महया 2 सद्देणं तालेइ / [6] उस काल और उस समय में अर्हत् अरिष्टनेमि प्रभु पधारे। वे धर्म की आदि करने वाले थे, इत्यादि वर्णन भगवान् महावीर के वर्णन के समान यहाँ करना चाहिए / विशेषता यह है कि अर्हत् अरिष्टनेमि दस धनुष की अवगाहना- शरीर की ऊंचाई वाले थे। धर्मदेशना श्रवण करने के लिए परिषद् निकली। तत्पचात् कृष्ण वासुदेव ने यह संवाद सुनकर हर्षित एवं संतुष्ट होकर कौटुम्बिक पुरुषों (सेवकों) को बुलाया और बुलाकर उनसे इस प्रकार कहा-देवानुप्रियो ! शीघ्र ही सुधर्मा सभा में जाकर सामुदानिक (जिसके बजने पर जनसमूह एकत्रित हो जाए, ऐसी) भेरी को बजाओ। तब वे कौटुम्बिक पुरुष यावत् कृष्ण वासुदेव की आज्ञा स्वीकार करके जहां सुधर्मा सभा में सामुदानिक भेरी थी वहाँ पाए और आकर उस सामुदानिक भेरी को जोर से बजाया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org