________________ 82] [कल्पिका संचाएमि रटुकडेणं सद्धि जाव भुजमाणी विहरित्तए। तं धन्नाओ णं ताओ अम्मयाओ [जाव] जीवियफले जानो णं वझाओ प्रवियाउरीओ जाणुकोप्परमायाओ सुरभिसुगन्धगन्धियाओ विउलाई माणुस्सगाई भोगभोगाइं भञ्जमाणीओ विहरन्ति / अहं णं प्रधन्ना अपुष्णा अकयपुण्णा नो संचाएमि रटकूडेणं सद्धि विउलाई जाव विहरित्तए' / [48] ऐसी अवस्था में किसी समय रात को पिछले प्रहर में अपनी और अपने कुटुम्ब की स्थिति पर विचार करते हुए उस सोमा ब्राह्मणी को इस प्रकार का विचार उत्पन्न होगा- 'मैं इन बहुत से प्रभागे, दुःखदायी एक साथ थोड़े-थोड़े दिनों के बाद उत्पन्न हुए छोटे-बड़े और नवजात बहुत से दारक-दारिकाओं यावत् बच्चे-बच्चियों में से कोई सिर की ओर पैर करके सोने यावत् पेशाब आदि करने से, उनके मल-मूत्र-वमन आदि से लिपटी रहने के कारण अत्यन्त दुर्गन्धमयी होने से राष्ट्रकूट के साथ भोगों का अनुभव नहीं कर पा रही हूँ। वे माताएँ धन्य हैं यावत् उन्होंने मनुष्यजन्म और जीवन का सफल पाया है, जो बंध्या हैं, प्रजननशीला नहीं होने से जान-कपर की माता होकर सुरभि सुगंध से सुवासित होकर विपुल मनुष्य संबन्धी भोगोपभोगों को भोगती हुई समय बिताती हैं। लेकिन मैं ऐसी अधन्य, पुण्यहीन, निर्भागी हूँ कि राष्ट्रकूट के साथ विपुल भोगों को नहीं भोग पाती हूँ। सुव्रता आर्या का आगमन 49. तेणं कालेणं तेणं समयेणं सुय्ययाओ नाम प्रज्जाओ इरियासमियाओ जाव बहुपरिवाराओ पुग्वाणुपुर्दिय....."जेणेव विभेले संनिवेसे.....अहापडिरूवं उग्गहं जाव विहरन्ति / तए णं तासि सुब्बयाणं अज्जाणं एगे संघाडए विभेले संनिवेसे उच्चनीयमजिसमाई कुलाई घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए प्रडमाणे रटुकूडस्स गिहं अणुपविठे। तए णं सा सोमा माहणी ताओ अज्जाओ एज्जमाणीओ पासइ, 2 सा हटु० खिप्पामेव आसणाम्रो अरुभुठेह, 2 ता सत्तट्ठ पयाई प्रणुगच्छद, 2 ता वन्दइ, नमसइ, 2 ता विउलेणं असण 4 पडिलाभेत्ता एवं क्यासी एवं खलु अहं अज्जासो! रटुकडेणं सद्धि विउलाई जाव संवच्छरे 2 जुगलं पयामि, सोलसहि संवच्छरेहि बत्तीसं दारगरूवे पयाया। तए णं अहं तेहिं बहूहि दारएहि य जाव डिम्मियाहि य अप्पेगइएहि उत्ताणसेज्जएहिं जाव मुत्तमाहिं दुज्जाएहि जाव नो संचाएमि......"विहरित्तए / तं इच्छामि णं अहं अज्जाओ ! तुम्हं अन्तिए धम्म निसामेत्तए"। तए णं तानो प्रज्जाओ सोमाए माहणीए विचित्तं [जाव] केवलिपन्नत्तं धम्म परिकहेन्ति / [46] सोमा ने जब ऐसा विचार किया कि उस काल और उसी समय ईर्या प्रादि समितिओं से युक्त यावत् बहुत सी साध्वियों के साथ सुव्रता नाम की आर्याएँ पूर्वानुपूर्वी क्रम से गमन करती हुई उस विभेल सन्निवेश में पाएँगी और अनगारोचित अवग्रह लेकर स्थित होंगी। तदनन्तर उन सुव्रता प्रार्याओं का एक संघाड़ा (समुदाय) विभेल सन्निवेश के उच्च, सामान्य और मध्यम परिवारों में ग्रहसमुदानी भिक्षा के लिए घूमता हुआ राष्ट्रकूट के घर में प्रवेश करेगा। तब वह सोमा ब्राह्मणी उन आर्याओं को आते देखकर हर्षित और संतुष्ट होगी / संतुष्ट होकर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org