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________________ वर्ग 3 : चतुर्थ अध्ययन] [81 सोमा द्वारा बहुसंतान-प्रसव 47. तए णं सा सोमा माहणी रटुकडेणं सद्धि विउलाइं भोगभोगाइं भुञ्जमाणी संवच्छरे 2 जुयलगं पयायमाणी, सोलसेहिं संवच्छरेहि बत्तोसं दारगरूवे पयाइ। तए णं सोमा माहणी तेहि बाहिं दारगेहि य वारियाहि य कुमारेहि य कुमारियाहि य डिम्भएहि य डिम्भियाहि य अप्पेगइएहि उत्ताणसेज्जएहि य अप्पेगइएहि थणियाएहि य, अप्पेगइएहि पोहगपाहि, अप्पेगइएहि परंगणएहि, अप्पेगइएहि परक्कममाहि, अप्पेगहएहिं पक्खोलणएहि अप्पेगइएहि थणं मग्गमाणेहि, अप्पेगइएहि खीरं भग्गमाणेहि अप्पेगइएहि खेल्लणयं मग्गमाहिं, अप्पेगइएहिं खज्जगं मग्गमाणेहि अप्पेगइएहि कर मग्गमाहि, पाणियं मग्गमाणेहि हसमाहिं रूसमाहि अक्कोसमाहिं अक्कुस्समाणेहि हणमाहिं विष्पलायमाणेहि अणुगम्ममाणेहि रोवमाहि कन्दमाणेहि विलवमाहि कूधमाहिं उक्कूवमाणेहि निद्धायमाणेहि पलंवमाहि वहमाणेहि देसमाणेहि वममाणेहि छेरमाणेहि मुत्तमाहि मुत्तपुरीसघमियसुलित्तोवलित्ता मइलवसणपुच्चड़ा जाय असुइबीभच्छा परमदुग्गन्धा नो संचाएह रटकूडेणं सद्धि विउलाई भोगभोगाई भञ्जमाणी विहरित्तए / [47] तत्पश्चात् सोमा ब्राह्मणी राष्ट्रकूट के साथ विपुल भोगों को भोगती हुई प्रत्येक वर्ष एक युगल संतान को जन्म देकर सोलह वर्ष में बत्तीस बालकों का प्रसव करेगी / तब वह सोमा ब्राह्मणी उन बहुत से दारक-दारिकाओं, कुमार-कुमारिकाओं और बच्चे-बच्चियों में से किसी के उत्तान (उन्मुख-सिर की ओर पैर करके) शयन करने से--सोने से, किसी के चीखने-चिल्लाने से, किसी को जन्म-धूंटी आदि दवाई पिलाने से, किसी के घुटने-घुटने चलने से, किसी के पैरों खड़े होने में प्रवृत्त होने से, किसी के चलते-चलते गिर जाने से, किसी के स्तन को टटोलने से, किसी के दूध मांगने से, किसी के खिलौना मांगने से, किसी के खाजा आदि मिठाई मांगने से, किसी के कूर (भात) मांगने से, इसी प्रकार किसी के पानी मांगने से, किसी के हँसने से, रूठ जाने से, गुस्सा करने से—कटु वचन कहने से, झगड़ने से, आपस में मारपीट करने से, मारकर भाग जाने से, किंसी के उसका पीछा करने से, किसी के रोने से, किसी के प्राक्रंदन करने से, विलाप करने से, छीना-झपटी करने से, किसी के कराहने से, किसी के ऊंघने से, किसी के प्रलाप करने से, किसी के पेशाब आदि करने से, किसी के उलटी-के कर देने से, किसी के छेरने (चिरकने) से, किसी के मूतने से, सदैव उन बच्चों के मल-मूत्र वमन से लिपटे शरीर वाली तथा मैले कुचैले कपड़ों से कांतिहीन यावत् अशुचि से सनी हुई होने से, देखने में बीभत्स और अत्यन्त दुर्गन्धित होने के कारण राष्ट्रकूट के साथ विपुल कामभोगों को भोगने में समर्थ नहीं हो सकेगी। सोमा का विचार 48. तए णं तोसे सोमाए माहणीए अन्नया कयाइ पुन्धरत्तावरत्तकालसमयंसि कुडुम्बजागरियं जागरमाणीए अयमेयारूवे जाव समुप्पज्जित्था-'एवं खलु अहं इमेहि बहिं दारगेहि य [जाव] डिम्मियाहि य अप्पेगइएहि उत्ताणसेज्जएहि य [जाव] अप्पेगइएहि मुत्तमाणेहि दुज्जाएहि दुज्जम्मपहि हविप्पहयभग्गेहिं एगप्पहारपडिएहि जाणं मुत्तपुरीसमियसुलित्तोवलित्ता जाव परमदुनिभगन्धा नो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003487
Book TitleAgam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages178
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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