________________ महावीर के नेतृत्व में आर्हती दीक्षा ग्रहण की थी। ज्ञाताधर्मकथा' 3 में श्रेणिक की एक रानी घारिणी का भी उल्लेख है। दशाश्र तस्कन्ध'४ में महारानी चेलना का वर्णन है जिसका रूप अद्भुत और अनूठा था। जिसके दिव्य रूप को निहार कर भगवान महावीर की श्रमणियाँ ठगी-सी रह गई और वे निदान करने को तत्पर हो गईं। निशीथचूणि'" में श्रेणिक की एक रानी का नाम प्रपतगन्धा प्राप्त होता है पर यह नाम बहुत ही कम प्रसिद्ध है। बौद्ध साहित्य में महारानियां बौद्ध साहित्य विनयपिटक में राजा श्रेणिक को पांच सौ रानियों का उल्लेख है। कहा जाता है कि बिम्बिसार श्रेणिक को एक बार भगन्दर का भयंकर रोग हमा, राजा उस रोग से अत्यधिक व्यथित हो गया। जीवक को मार भत्य ने राजा को ऐसा लेप लगाया जिससे राजा रोगमुक्त हो गया। राजा की प्रसन्नसा का कोई पार नहीं रहा / राजा ने अपनी पांच सौ रानियों को बढ़िया वस्त्राभूषणों से अलंकृत करवाया और पांच सौ ही रानियों के वस्त्राभूषण उतरवाकर जीवक को उपहारस्वरूप दे दिये / विज्ञों का यह भी मंतव्य है कि वे पांच सौ महिलायें राजा की ही रानियाँ हों, यह निश्चित नहीं कहा जा सकता / जातक के अनुसार राजा प्रसेनजित की भगिनी कोशला देवी का पाणिग्रहण राजा बिम्बिसार के साथ हमा था और प्रसेनजित ने एक लाख कार्षापण की आय वाला एक गांव दहेज के रूप में दिया था।' अट्ठकथा के अनुसार राजा श्रेणिक का विवाह मद्रदेश की राजकन्या खेमा के साथ हुआ था। राजकुमारी को अपने रूप पर अत्यन्त घमण्ड था। यह तथागत बुद्ध से प्रतिबुद्ध हो कर बुद्धशासन में प्रवजित हुई थी। थेरीगाथा के अनुसार उज्जयिनी की पदमावती गणिका भी श्रेणिक की पत्नी थी। अमितायुकन सूत्र के अमिमतानुसार वैदेही वासवी बिम्बिसार की रानी थी और शीलवा, जयसेना भी उनकी रानियाँ थीं।२. उपर्युक्त विवेचन से यह स्पष्ट है कि जैन साहित्य में श्रेणिक की रानियों के जो नाम उपलब्ध हैं, वे नाम बौद्ध साहित्य में प्राप्त नहीं हैं और जो नाम बौद्ध साहित्य में हैं वे जैन साहित्य में नहीं मिलते हैं। संभव है परम्परा की दृष्टि से यह भेद हुआ हो / जैन साहित्य में श्रेणिक के पुत्र जैन साहित्य में सम्राट् श्रेणिक के छत्तीस पुत्रों का उल्लेख मिलता है। उन छत्तीस पुत्रों में राज्य का उत्तराधिकारी राजकुमार कुणिक था। इनके नामों की सूची इस प्रकार है-(१) जाली (2) मयाली (3) 13. ज्ञाताधर्म कथासूत्र अ. 1 सू. 8 (पत्र 14-1) 14. दशाशु तस्कन्ध, दसवीं दशा 15. निशीथचणि सभाष्य, भा. 1, पृष्ठ 17 16. महावग्ग 8-1-15 17. (क) जातक, 2-403 (ख) Dictionary of Pali Proper Names, Vol. II, p. 286 (ग) संयुक्त निकाय, अट्ठकथा 18. थेरीगाथा-अट्ठकथा, 139-143 19. थेरीगाथा, 31-32 20. Dictionary of Pali Proper Names, Vol. JII, P. 286 [10] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org