SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 10
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ के राज्यकाल का निरूपण हुआ है। सम्राट् श्रेणिक का जैन और बौद्ध दोनों ही परम्परामों में क्रमश: 'श्रेणिक भिभिसार' और 'श्रेणिक बिंबिसार' इस प्रकार संयुक्त नाम मुख्य रूप से मिलते हैं। जैन दृष्टि से श्रेणियों की स्थापना करने से उनका श्रेणिक नाम पड़ा। बौद्ध दृष्टि से पिता के द्वारा अट्ठारह श्रेणियों का स्वामी बनाये जाने के कारण वह अंगिक बिंबिसार के रूप में विश्रत हुआ। जैन और बौद्ध दोनों ही परम्परामों में श्रेणियों की संख्या अट्ठारह ही मानी गई है।' श्रेणियों के नाम भी परस्पर मिलते-जुलते हैं। जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति में नवनारू, नव-कारू,' श्रेणियों के अट्ठारह भेदों का विस्तार से निरूपण है। किन्तु बौद्धसाहित्य में श्रेणियों के नाम इस प्रकार व्यवस्थित प्राप्त नहीं हैं / 'महावस्तु' में श्रेणियों के तीस नाम मिलते हैं, उनमें से बहुत से नाम 'जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति में उल्लिखित नामों से मिलते-जुलते हैं। डॉ. आर. सी मजूमदार ने विविध ग्रन्थों के आधार से सत्ताईस श्रेणियों के नाम दिये हैं, पर वे निश्चय नहीं कर पाये कि अद्वारह श्रेणियों के नाम कौन से हैं।'० सम्भव है उन्होंने जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति का अवलोकन न किया हो। यदि वे अवलोकन कर लेते तो इस प्रकार उनके अन्तर्मानस में शंका उबुद्ध नहीं होती। कितने ही विज्ञों का यह भी अभिमत है कि राजा श्रेणिक के पास बहुत बड़ी सेना थी और वे सेनिय गोत्र के थे इसलिये उनका नाम श्रेणिक पड़ा।" जैन साहित्य में राजा श्रेणिक की महारानियाँ जैन साहित्य के अनुसार राजा श्रेणिक की पच्चीस रानियां थीं, उनके नाम इस प्रकार हैंअन्तकृद्दशांग 2 में (1) नन्दा (2) नंदमती (3) नन्दोत्तरा (4) नन्दिसेणिया (5) मरुया (6) सुमरिया (7) महामरुता (5) मरुदेवा (9) भद्रा (10) सुभद्रा (11) सुजाता (12) सुमना (13) भूतदत्ता (14) काली (15) सुकाली (16) महाकाली (17) कृष्णा (18) सुकृष्णा (19) महाकृष्णा (20) वीरकृष्णा (21) रामकृष्णा (22) पितुसेनकृष्णा और (23) महासेनकृष्णा / इन तेईस रानियों ने सम्राट् श्रेणिक के निधन के पश्चात् भगवान् 4. श्रेणी: कायति श्रेणिको मगधेश्वरः / -अभिधानचिन्तामणिः, स्वोषज्ञवत्तिः, मर्त्य काण्ड, श्लोक 376, 5. स पित्राष्टादशसु श्रेणिस्ववतारितः, अतोऽस्य श्रव्यो बिम्बिसार इति ख्यातः // -विनयपिटक, गिलगिट मांसकृष्ट / 6. जम्बूद्वीपपण्णत्ति, वक्ष. 3; जातक, मूगपक्ख जातक, भा. 6 / 7-8. कुंभार, पट्टइल्ला, सुवण्णकारा, सूबकारा य / . गंधव्वा, कासवग्गा, मालाकारा, कच्छकरा // 1 // तंबोलिया य एए नवप्पयारा य नारुपा भणिया / अह ण णवप्पयारे कारुपवण्ण पवक्खामि // 2 // चम्मयरु, जंतपीलग, मंछिप, छिपाय, कसारे य / सीवग, गुपार, भिल्लग, धीवर वण्णइ अट्ठदस // 3 // . -जम्बद्वीपप्रज्ञप्ति 9. महावस्तु भाग 3, पृष्ठ 113 तथा 442-443 10. Corporate Life in Ancient India, Vol. II. P. 18 11. Dictionary of Pali Proper Names, Vol. II, pp. 286-1284. 12. अन्तकृद्दशांग, वर्ग 7, अ. 1 सू. 13; वर्ग 8 अ. 1-10 [9] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003487
Book TitleAgam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages178
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy