________________ वर्ग 3 : चतुर्थ अध्ययन] . उस काल और उस समय में सौधर्म कल्प के बहपुत्रिक विमान की सुधर्मा सभा में बहुपुत्रिका नाम की देवी बहुपुत्रिक सिंहासन पर चार हजार सामानिक देवियों तथा चार हजार महत्तरिका देवियों के साथ सूर्याभ देव के समान नानाविध दिव्य भोगों को भोगती हुई विचरण कर रही थी। उस समय उसने अपने विपुल अवधिज्ञान से इस केवलकल्प (सम्पूर्ण) जम्बूद्वीप नामक द्वीप को देखा और राजगृह नगर में समवसृत भगवान् महावीर स्वामी को देखा। उनको देखकर सूर्याभ देव के समान (सिंहासन से उठकर कुछ कदम जाकर यावत्) नमस्कार करके अपने उत्तम सिंहासन पर पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठ गई। फिर सूर्याभ देव के समान उसने अपने प्राभियोगिक देवों को बुलाया और उन्हें सुस्वरा घंटा बजाने की आज्ञा दी। उन्होंने सुस्वरा घंटा बजाकर सभी देव-देवियों को भगवान के दर्शनार्थ चलने को सूचना दी। तत्पश्चात् पुनः आभियोगिक देवों को बुलाया और भगवान के दर्शनार्थ जाने योग्य विमान की विकुर्वणा करने की प्राज्ञा दी। आज्ञानुसार उन आभियोगिक देवों ने यान-विमान की विकुर्वणा की। सूर्याभ देव के यान-विमान के समान इस विमान का वर्णन करना चाहिए।' किन्तु वह यान-विमान एक हजार योजन विस्तीर्ण था। सूर्याभ देव के समान वह अपनी समस्त ऋद्धि-वैभव के साथ यावत् उत्तर दिशा के निर्याणमार्ग से निकलकर एक हजार योजन ऊंचे वैक्रिय शरीर को बनाकर भगवान् के समवसरण में उपस्थित हुई। भगवान् ने धर्मदेशना दी। धर्मदेशना की समाप्ति के पश्चात् उस बहुपुत्रिका देवी ने अपनी दाहिनी भुजा पसारी-फैलाई / भुजा पसारकर एक सौ आठ देवकुमारों की और बायीं भुजा फैलाकर एक सौ पाठ देवकुमारिकाओं को विकुर्वणा की। इसके बाद बहुत से दारक-दारिकाओं (बड़ी उम्र के बच्चे-बच्चियों) तथा डिम्भक-डिम्भिकाओं (छोटी उम्र के बालक-बालिकाओं) की विकुर्वणा की तथा सूर्याभ देव के समान नाट्य-विधियों को दिखाकर (भगवान् को नमस्कार करके) वापिस लौट गई। गौतम को जिज्ञासा 30. "मंते" त्ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वन्दइ नमसइ / कूडागारसाला / “बहुपुत्तियाए णं भंते ! देवीए सा दिवा देविड्डी'..."पुच्छा, "जाव अभिसमन्नागया?" "एवं खलु गोयमा!" तेणं कालेणं तेणं समएणं वाणारसी नाम नयरी, अम्बसालवणे चेइए। तत्थ तं वाणारसीए नयरीए भद्दे नाम सस्थवाहे होत्था अड्ढे [जाव] अपरिभूए / तस्स णं मद्दस्त सुभद्दा नाम भारिया सुउमाला वसा अवियाउरी जाणुकोप्परमाया याथि होत्था। [30] उसके चले जाने के बाद गौतम स्वामी ने भगवान महावीर को वंदन-नमस्कार किया और 'भदन्त !' इस प्रकार सम्बोधन कर प्रश्न किया-भगवन् ! उस बहुपुत्रिका देवी की वह दिव्य देव ऋद्धि, द्युति और देवानुभाव कहाँ गया ? कहाँ समा गया? 1. सूर्याभ देव के यान-विमान का वर्णन राजप्रश्नीयसूत्र (भागम-प्रकाशन समिति ब्यावर) पृष्ठ 26-36 पर देखिये। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org