________________ चतुर्थ अध्ययन : बहुपुत्रिका देवी 28. उपखेवओ-जइ गं भंते ! समण भगवया जाव पुफियाणं तच्चस्स प्रज्झयणस्स जाव प्रयमढ़े पन्नत्ते, चउत्थरस णं भंते ! अज्झयणस्स पुफियाणं समजेणं भगवया जाव संपत्तेणं के अट्ठे पन्नते? एवं खलु जम्बू! [28] जम्बूस्वामी ने सुधर्मा स्वामी से पूछा--भगवन् ! यदि श्रमण यावत् निर्वाणप्राप्त भगवान् महावीर ने पुष्पिका के तृतीय अध्ययन का यह भाव निरूपण किया है तो भदन्त ! उन मुक्तिप्राप्त भगवान् ने पुष्पिका के चतुर्थ अध्ययन का क्या अर्थ प्रतिपादन किया है ? उत्तर में आर्य सुधर्मा स्वामी ने कहा-जम्बू ! वह इस प्रकार है--- बहुपुत्रिका देवी ___29. तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं नयरे / गुणसिलए चेहए / सेणिए राया। सामी समोसढेपरिसा निग्गया। तेणं कालेणं तेणं समएणं बहुपुत्तिया देवी सोहम्मे कप्पे बहुपुत्तिए विमाणे समाए सुहम्माए बहुपुत्तियंसि सोहासणंसि चहि सामाणियसाहस्सोहि चहि महत्तरियाहिं, जहा सूरियाभे, [जाव] भुञ्जमाणी विहरइ, इमं च णं केवलकप्पं जम्बुद्दीवं दीवं विउलेणं ओहिणा आमोएमाणी 2 पासइ, 2 त्ता समणं भगवं महावीरं, जहा सूरियामो, [जाव] नमंसित्ता सीहासणवरंसि पुरस्थाभिमुहा संनिसण्णा। आभियोगा जहा सूरियामस्स, सूसरा घण्टा, आमियोगियं देवं सद्दावेइ / जाणविमाणं जोयणसहस्सविस्थिणं / जाणविमाणवष्णओ। [जाव] उत्तरिल्लेणं निज्जाणभग्गेण जोयणसाहस्सिएहि विगहेहि प्रागया, जहा सूरियाभे / धम्मकहा समत्ता। तए णं सा बहुपुत्तिया देवी वाहिणं भयं पसारेइ, 2 ता देवकुमाराणं अदुसयं देवकुमारियाण य वामाओ भुयायो अट्ठसयं / तयाणन्तरं च गं बहवे वारगा य दारियानो य डिम्मए य डिम्भियाओ य विउव्यइ / नट्टविहिं जहा सूरियामो, उवदंसित्ता पडिगया। [26] उस काल और उस समय में राजगह नामक नगर था / गुणशिलक चैत्य था / उस नगर का राजा श्रेणिक था। स्वामी (श्रमण भगवान् महावीर) का पदार्पण हुआ / उनकी धर्मदेशना श्रवण करने के लिए परिषद् निकली। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org