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________________ वर्ग 3 : तृतीय अध्ययन] [25] तत्पश्चात् सोमिल ने बहुत से चतुर्थभक्त (उपवास) षष्ठभक्त (बेला), अष्टमभक्त (तेला) यावत् अर्धमासक्षपण, मासक्षपण रूप विचित्र तपःकर्म से अपनी आत्मा को भावित करते हुए–संस्कृत करते हुए श्रमणोपासक पर्याय का पालन किया। अंत में अर्धमासिक संलेखना द्वारा प्रात्मा को आराधना कर और तीस भोजनों का अनशन द्वारा त्याग कर किन्त पूर्वत उस पापस्थान (दुष्प्रव्रज्यारूप कृत प्रमाद) की आलोचना और प्रतिक्रमण न करके सम्यक्त्व की विराधना के कारण कालमास में (मरण के समय) काल (मरण) किया। शुक्रावतंसक विमान की उपपातसभा में स्थित देवशैया पर यावत् अंगुल के असंख्यातवें भाग की जघन्य अवगाहना से शुक्रमहाग्रह देव के रूप में जन्म लिया / / तत्पश्चात् वह शुक्र महाग्रह देव तत्काल उत्पन्न होकर यावत् भाषा-मनःपर्याप्ति आदि पांचों पर्याप्तियों से पर्याप्त भाव को प्राप्त हुआ। 26. एवं खलु गोयमा ! सुक्केणं सा दिव्वा [जाव] अभिसमन्नागए / एवं पलिनोवमं ठिई। "सुक्के णं भन्ते ! महागहे तओ देवलोगाओ आउक्खएण 3 कहिं गच्छिहिइ ?" "गोयमा ! महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ।" [26] अन्त में अपने कथन का उपसंहार करते हुए भगवान् महावीर स्वामी ने कहा-हे गौतम ! इस प्रकार से उस शुक्र महाग्रह देव ने वह दिव्य देवऋद्धि, द्युति यावत् दिव्य प्रभाव प्राप्त किया है। उसकी वहाँ एक पल्योपम की स्थिति है / गौतम स्वामी ने पुनः पूछा-भदन्त ! वह शुक्रमहाग्रह देव आयु, भव और स्थिति का क्षय होने के अनन्तर उस देवलोक से च्यवन कर कहां जाएगा ? कहाँ उत्पन्न होगा? भगवान् ने कहा-गौतम ! वह शुक्रमहाग्रहदेव आयुक्षय भवक्षय और स्थितिक्षय के अनन्तर महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर सिद्ध होगा। यावत् सर्व दुःखों का अन्त करेगा। 27. निक्खेवओ-तं एवं खलु जम्बू ! समणेणं जाव संपत्तेणं पुफियाणं तच्चस्स अज्मयणस्स अयमठे पण्णते ति बेमि / [27] सुधर्मास्वामी ने तीसरे अध्ययन का प्राशय कहने के बाद जम्बूस्वामी से कहाआयुष्मन् जम्बू ! इस प्रकार श्रमण यावत् मुक्तिप्राप्त महावीर ने पुष्पिका के तृतीय अध्ययन में इस भाव का निरूपण किया है / ऐसा मैं कहता हूँ। // तृतीय अध्ययन समाप्त / / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003487
Book TitleAgam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages178
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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