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________________ [जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र कितने नक्षत्र ऐसे हैं, जो चन्द्रमा के दक्षिण में भी नक्षत्र-विमानों को चीरकर भी योग करते हैं ? कितने नक्षत्र ऐसे हैं, जो सदा नक्षत्र-विमानों को चीरकर चन्द्रमा से योग करते हैं ? गौतम ! इन अट्ठाईस नक्षत्रों में जो नक्षत्र सदा चन्द्र के दक्षिण में अवस्थित होते हुए योग करते हैं, वे छह हैं-१. मृगशिर, 2. प्रार्द्रा, 3. पुष्य, 4. अश्लेषा, 5. हस्त तथा 6. मूल / ये छहों नक्षत्र चन्द्रसम्बन्धी पन्द्रह मण्डलों के बाहर से ही योग करते हैं। अट्ठाईस नक्षत्रों में जो नक्षत्र सदा चन्द्रमा के उत्तर में अवस्थित होते हुए योग करते हैं, वे बारह हैं-~ 1. अभिजित्, 2. श्रवण, 3. धनिष्ठा, 4. शतभिषक्, 5. पूर्वभाद्रपदा, 6. उत्तरभाद्रपदा, 7. रेवती, 8. अश्विनी, 6. भरणी, 10. पूर्वाफाल्गुनी 11. उत्तराफाल्गुनी तथा 12. स्वाति / अट्ठाईस नक्षत्रों में जो नक्षत्र सदा चन्द्रमा के दक्षिण में भी, उत्तर में भी, नक्षत्र-विमानों को चीरकर भी योग करते हैं, वे सात हैं 1. कृत्तिका, 2. रोहिणी, 3. पुनर्वसु, 4. मघा, 5. चित्रा, 6. विशाखा तथा 7. अनुराधा / अट्ठाईस नक्षत्रों में जो नक्षत्र सदा चन्द्रमा के दक्षिण में भी, नक्षत्र-विमानों को चीरकर भी योग करते हैं, वे दो हैं 1. पूर्वाषाढा तथा 2. उत्तराषाढा / ये दोनों नक्षत्र सदा सर्वबाह्य मण्डल में अवस्थित होते हुए चन्द्रमा के साथ योग करते हैं। अट्ठाईस नक्षत्रों में जो सदा नक्षत्र-विमानों को चीरकर चन्द्रमा के साथ योग करता है, ऐसा एक ज्येष्ठा नक्षत्र है। - नक्षत्रदेवता 160. एतेसि णं भंते ! अट्ठावीसाए णक्खत्ताणं अभिई णक्खत्ते किदेवयाए पण्णते? गोयमा ! बम्हदेवया पण्णत्ते, सवणे णक्खत्ते विण्हुदेवयाए पण्णत्ते, धणिट्ठा वसुदेवया पण्णता, एए णं कमेणं अव्वा अणुपरिवाडी इमानो देवयानो-बम्हा विष्णु, वसू, वरुणे, अय, अभिवद्धी, पूसे, पासे, जमे, अग्गी, पयावई, सोमे, रुद्दे, अदिती, वहस्सई, सप्पे, पिउ, भगे, अज्जम, सवित्रा, तद्वा, वाउ, इंदग्गी, मित्तो, इंदे, निरई, पाउ, विस्सा य, एवं णक्खत्ताणं एमा परिवाडी अब्बा जाव उत्तरासाढा किदेवया पण्णत्ता ? गोयमा ! विस्सदेवया पण्णत्ता। [160] भगवन् ! इन अट्ठाईस नक्षत्रों में अभिजित् आदि नक्षत्रों के कौन कौन देवता बतलाये गये हैं ? गौतम ! अभिजित् नक्षत्र का देवता ब्रह्मा बतलाया गया है। श्रवण नक्षत्र का देवता विष्णु बतलाया गया है / धनिष्ठा का देवता वसु बतलाया गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003486
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages480
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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