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________________ सप्तम वक्षस्कार] पूर्णिमा-अमावस्या-कितनी पूर्णिमाएँ-कितनी अमावस्याएँ, सन्निपात-पूर्णिमाओं तथा अमावस्याओं की अपेक्षा से नक्षत्रों का सम्बन्ध तथा नेता-मास का परिसमापक नक्षत्रगण-ये यहाँ विवक्षित हैं। भगवन् ! नक्षत्र कितने बतलाये गये हैं ? गौतम ! नक्षत्र अट्ठाईस बतलाये गये हैं, जैसे--१. अभिजित्, 2. श्रवण, 3. धनिष्ठा, 4. शतभिषक्, 5. पूर्वभाद्रपदा, 6. उत्तरभाद्रपदा, 7. रेवती, 8. अश्विनी, 9. भरणी, 10. कृत्तिका, 11. रोहिणी, 12. मृगशिर, 13. आर्द्रा, 14. पुनर्वसु, 15. पुष्य, 16. अश्लेषा, 17. मघा, 18. पूर्वाफाल्गुनी, 19. उत्तराफाल्गुनी, 20. हस्त, 21. चित्रा, 22. स्वाति, 23. विशाखा, 24. अनुराधा, 25. ज्येष्ठा, 26. मूल, 27. पूर्वाषाढा तथा 28. उत्तराषाढा / नक्षत्रयोग 189. एतेसि णं भंते ! अट्ठावीसाए णक्खत्ताणं कयरे णक्खत्ता जे णं सया चन्दस्स दाहिणणं जोगं जोएंति ? कयरे णक्खता जे णं सया चंदस्स उत्तरेणं जो जोएंति ? कयरे गक्खत्ता जे णं चंदस्स दाहिणणवि उत्तरेणवि पमइंपि जोगं जोएंति ? कयरे गक्खत्ता जे णं चंदस्स दाहिणणंपि उत्तरेणवि पमपि जोनं जोएंति ? कयरे णक्खत्ता जे णं सया चंदस्स पमई जो जोएंति ? गोयमा ! एतेसि णं अट्ठावीसाए णक्खत्ताणं तत्थ जे ते णक्खत्ता जे णं सया चंदस्स दाहिणणं जो जोएंति ते णं छ, तं जहा मियसिरं 1 अद्द 2 पुस्सो 3 ऽसिलेस 4 हत्थो 5 तहेव मूलो अ६ / बाहिरो बाहिरमंडलस्स छप्पेते गक्खत्ता // 1 // तस्थ णं जे ते णवत्ता जे णं सया चंदस्स उत्तरेणं जोगं जोएंति ते णं बारस, तं जहाअभिई, सवणो, गिट्ठा, सयभिसया, पुठवभवया, उत्तरभद्दवया, रेवई, अस्सिणी, भरणी, पुव्वाफग्गुणी, उत्तराफग्गुणी साई। तत्थ णं जे ते नक्खत्ता जे णं सया चंदस्स दाहिणोवि उत्तरमोवि पमईपि जोगं जोएंति ते णं सत्त, तं जहा—कत्तिा , रोहिणी, पुणव्वस, मघा, चित्ता, विसाहा, अणुराहा / तत्थ गं जे ते णक्खत्ता जे णं सया चंदस्स दाहिणओवि पमपि जोगं जोएंति, तानो णं दुवे प्रासाढाओ। सव्वबाहिरए मंडले जोगं जोमंसु वा 3 / तत्थ गं जे से णक्खत्ते जे गं सया चंदस्स यमदं जोएइ, सा णं एगा जेट्ठा इति / [186] भगवन् ! इन अट्ठाईस नक्षत्रों में कितने नक्षत्र ऐसे हैं, जो सदा चन्द्र के दक्षिण में-- दक्षिण दिशा में अवस्थित होते हुए योग करते हैं. चन्द्रमा के साथ सम्बन्ध करते हैं ? कितने नक्षत्र ऐसे हैं, जो सदा चन्द्रमा के उत्तर में अवस्थित होते हुए योग करते हैं ? कितने नक्षत्र ऐसे हैं, जो चन्द्रमा के दक्षिण में भी, उत्तर में भी, नक्षत्र-विमानों को चीरकर भी योग करते हैं ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003486
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages480
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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