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________________ 360] [जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र पंचसंवच्छरिए णं भंते ! जुगे केवइया अयणा, केवइआ उऊ, एवं मासा, पक्खा, अहोरत्ता, केवइया मुहत्ता पण्णत्ता ? गोयमा ! पंचसंवच्छरिए णं जुगे दस अयणा, तीसं उऊ, सट्ठी मासा, एगे वीसुत्तरे पक्खसए, अट्ठारसतीसा अहोरत्तसया, चउप्पण्णं मुहत्तसहस्सा णव सया पण्णत्ता। नक्षत्र [187] भगवन् ! संवत्सरों में ग्रादि--प्रथम संवत्सर कौनसा' है ? अयनों में प्रथम अयन कौनसा है ? ऋतुओं में प्रथम ऋतु कौनसी है ? महीनों में प्रथम महीना कौनसा है ? पक्षों में प्रथम पक्ष कौनसा है ? अहोरात्र-दिवस-रात में आदि-प्रथम कौन है ? मुहूर्तों में प्रथम मुहूर्त कौनसा है ? करणों में प्रथम करण कौनसा है ? नक्षत्रों में प्रथम नक्षत्र कौनसा है ? / आयुष्मन् श्रमण गौतम ! संवत्सरों में आदि-प्रथम चन्द्र-संवत्सर है। अयनों में प्रथम दक्षिणायन है / ऋतुओं में प्रथम प्रावृट-आषाढ-श्रावणरूप पावस ऋतु है / महीनों में प्रथम श्रावण है / पक्षों में प्रथम कृष्ण पक्ष है / अहोरात्र में-दिवस-रात में प्रथम दिवस है / मुहूर्तों में प्रथम रुद्र मुहूर्त है / करणों में प्रथम बालवकरण है / नक्षत्रों में प्रथम अभिजित् नक्षत्र है। ऐसा बतलाया गया है। भगवन् ! पञ्च संवत्सरिक युग में अयन, ऋतु, मास, पक्ष, अहोरात्र तथा मुहूर्त कितने कितने बतलाये गये हैं ? गौतम ! पञ्च संवत्सरिक युग में अयन 10, ऋतुएँ 30, मास 60, पक्ष 120, अहोरात्र 1830 तथा मुहूर्त 54900 बतलाये गये हैं। 188. जोगो 1 देव य 2 तारग्ग 3 गोत्त 4 संठाण 5 चंद-रवि-जोगा 6 / कुल 7 पुण्णिम अवमंसा य 8 सण्णिवाए 6 प्रणेता य 10 // 1 // कति गं भंते ! णक्खत्ता पण्णत्ता ? गोयमा ! अट्ठावीसं णक्खत्ता पण्णत्ता, तं जहा-अभिई 1 सवणो 2 धणिट्ठा 3 सयभिसया 4 पुश्वभद्दवया 5 उत्तरभद्दवया 6 रेवई 7 अस्सिणी 8 भरणी 6 कत्तिमा 10 रोहिणी 11 मिसिर 12 प्रद्दा 13 पुणन्वसू 14 पूसो 15 अस्सेसा 16 मघा 17 पुष्वफग्गुणी 18 उत्तरफग्गुणी 16 हत्थो 20 चित्ता 21 साई 22 विसाहा 23 अणुराहा 24 जिट्ठा 25 मूलं 26 पुव्वासाढा 27 उत्तरासाढा 28 इति। [188] योग-प्रदाईस नक्षत्रों में कौनसा नक्षत्र चन्द्रमा के साथ दक्षिणयोगी है, कौनसा नक्षत्र उत्तरयोगी है इत्यादि दिशायोग, देवता--नक्षत्रदेवता, तारान-नक्षत्रों का तारा-परिमाण, गोत्र-नक्षत्रों के गोत्र, संस्थान--नक्षत्रों के आकार, चन्द्र-रवि-योग-नक्षत्रों का चन्द्रमा और सूर्य के साथ योग, कुल-कुलसंज्ञक नक्षत्र, उपलक्षण से उपकुलसंज्ञक तथा कुलोपकुलसंज्ञक नक्षत्र, 1. ज्ञातव्य है कि यह प्रश्नोत्तरक्रम चन्द्रादि संवत्सरापेक्षा से है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003486
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages480
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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