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________________ वष्ठ वक्षस्कार] [317 महानदी पश्चिमी लवण समुद्र में मिलती है। ऐरावत क्षेत्र में रक्ता महानदी पूर्वी लवण समुद्र में तथा रक्तवती महानदी पश्चिमी लवण समुद्र में मिलती है। यों जम्बूद्वीप के अन्तर्गत भरत तथा ऐरावत क्षेत्र में कुल 14000 x 4 -- 56000 छप्पन हजार नदियाँ होती हैं। 12. भगवन् ! जम्बूद्वीप के अन्तर्गत हैमवत एवं हैरण्यवत क्षेत्र में कितनी महानदियाँ बतलाई गई हैं ? गौतम ! चार महानदियाँ बतलाई गई हैं१. रोहिता, 2. रोहितांशा, 3. सुवर्णकला तथा 4. रूप्यकूला। वहाँ इनमें से प्रत्येक महानदी में अट्ठाईस-अट्ठाईस हजार नदियाँ मिलती हैं / वे उनसे आपूर्ण होकर पूर्वी एवं पश्चिमी लवण समुद्र में मिलती हैं। हैमवत में रोहिता पूर्वी लवण समुद्र में तथा रोहितांशा पश्चिमी लवण समुद्र में मिलती है / हैरण्यवत में सुवर्णकूला पूर्वी लवण समुद्र में तथा रूप्यकूला पश्चिमी लवण समुद्र में मिलती है। इस प्रकार जम्बूद्वीप के अन्तर्गत हैमवत तथा हैरण्यवत क्षेत्र में कुल 28000x4112000 एक लाख बारह हजार नदियाँ हैं, ऐसा बतलाया गया है / 13. भगवन् ! जम्बूद्वीप के अन्तर्गत हरिवर्ष तथा रम्यकवर्ष में कितनी महानदियां बतलाई गई हैं ? गौतम ! चार महानदियाँ बतलाई गई हैं.... 1. हरि या हरिसलिला, 2. हरिकान्ता, 3. नरकान्ता तथा 4. नारीकान्ता। वहाँ इनमें से प्रत्येक महानदी में छप्पन छप्पन हजार नदियाँ मिलती हैं। उनसे पापूर्ण होकर वे पूर्वी तथा पश्चिमी लवण समुद्र में मिल जाती हैं / हरिवर्ष में हरिसलिला पूर्वी लवण समुद्र में तथा हरिकान्ता पश्चिमी लवण समुद्र में मिलती है। रम्यकवर्ष में नरकान्ता पूर्वी लवण समुद्र में तथा नारीकान्ता पश्चिमी लवण समुद्र में मिलती है। यों जम्बूद्वीप के अन्तर्गत हरिवर्ष तथा रम्यकवर्ष में कुल 56000 x 4= 224000 दो लाख चौबीस हजार नदियाँ हैं, ऐसा बतलाया गया है। 14. भगवन् ! जम्बूद्वीप के अन्तर्गत महाविदेह क्षेत्र में कितनी महानदियाँ बतलाई गई हैं ? गौतम ! दो महानदियाँ बतलाई गई हैं 1. शीता एवं 2. शीतोदा। __ वहाँ उनमें से प्रत्येक महानदी में पाँच लाख बत्तीस हजार नदियाँ मिलती हैं। उनसे प्रापूर्ण होकर वे पूर्वी तथा पश्चिमी लवण समुद्र में मिल जाती हैं / शीता पूर्वी लवण समुद्र में तथा शीतोदा पश्चिमी लवण समुद्र में मिलती है / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003486
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages480
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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