SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 372
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पञ्चम वक्षस्कार] [311 तदनन्तर देवेन्द्र देवराज शक्र वैश्रमण देव को बुलाता है। बुलाकर उसे कहता है---- देवानुप्रिय ! शीघ्र ही बत्तीस करोड़ रौप्य-मुद्राएँ, बत्तीस करोड़ स्वर्ण-मुद्राएं, सुभग आकार, शोभा एवं सौन्दयंयुक्त बत्तीस वर्तुलाकार लोहासन, बत्तीस भद्रासन भगवान् तीर्थंकर के जन्म-भवन में लाओ / लाकर मुझे सूचित करो। वैश्रमण देव (देवेन्द्र देवराज) शक के आदेश को विनयपूर्वक स्वीकार करता है / स्वीकार कर वह जम्भक देवों को बुलाता है। बुलाकर उन्हें कहता है—देवानप्रियो ! शीघ्र ही बत्तीस करोड रौप्य-मुद्राएँ (बत्तीस करोड़ स्वर्ण-मुद्राएँ, सुभग आकार, शोभा एवं सौन्दर्ययुक्त बत्तीस वर्तुलाकार लोहासन, बत्तीस भद्रासन) भगवान् तीर्थकर के जन्म-भवन में लायो / लाकर मुझे अवगत करायो / वैश्रमण देव द्वारा यों कहे गये जृम्भक देव हर्षित एवं परितुष्ट होते हैं / वे शीघ्र ही बत्तीस करोड़ रौप्य-मुद्राएँ आदि भगवान् तीर्थकर के जन्म-भवन में ले आते हैं। लाकर वैश्रमण देव को सूचित करते हैं कि उनके आदेश के अनुसार वे कर चुके हैं / तब वैश्रमण देव जहाँ देवेन्द्र देवराज शक्र होता है, वहाँ पाता है, कृत कार्य से उन्हें अवगत कराता है। __ तत्पश्चात् देवेन्द्र, देवराज शक्र अपने आभियोगिक देवों को बुलाता है और उन्हें कहता हैदेवानुप्रियो ! शीघ्र ही भगवान् तीर्थंकर के जन्म-नगर के तिकोने स्थानों, तिराहों, चौराहों एवं विशाल मार्गों में जोर-जोर से उद्घोषित करते हुए कहो--'बहुत से भवनपति, वानव्यन्तर, ज्योतिष्क तथा वैमानिक देव-देवियो ! आप सुनें--आप में से जो कोई तीर्थंकर या उनकी माता के प्रति अपने मन में अशुभ भाव लायेगा-दुष्ट संकल्प करेगा, आर्यक--वनस्पति-विशेष-'पाजनो' की मंजरी की ज्यों उसके मस्तक के सौ टुकड़े हो जायेंगे।' यह घोषित कर अवगत कराओ कि वैसा कर चुके हैं। (देवेन्द्र देवराज शक्र द्वारा यों कहे जाने पर) वे अाभियोगिक देव 'जो आज्ञा' यों कहकर देवेन्द्र देवराज शक्र का आदेश स्वीकार करते हैं। स्वीकार कर वहाँ से प्रतिनिष्क्रान्त होते हैंचले जाते हैं। वे शीघ्र ही भगवान् तीर्थकर के जन्म-नगर में आते हैं। वहाँ तिकोने स्थानों, तिराहों, चौराहों और विशाल मार्गों में यों बोलते हैं-घोषित करते हैं-बहुत से भवनपति (वानव्यन्तर, ज्योतिष्क एवं वैमानिक) देवो! देवियो! आप में से जो कोई तीर्थंकर या उनकी माता के प्रति अपने मन में अशुभ भाव लायेगा-दुष्ट संकल्प करेगा, आर्यक-मंजरी की ज्यों उसके मस्तक के सौ टुकड़े हो जायेंगे। ऐसी घोषणा कर वे पाभियोगिक देव देवराज शक्र को, उनके आदेश का पालन किया जा चुका है, ऐसा अवगत कराते हैं / ___ तदनन्तर बहुत से भवनपति, वानव्यन्तर, ज्योतिष्क तथा वैमानिक देव भगवान् तीर्थकर का जन्मोत्सव मनाते हैं / तत्पश्चात् जहाँ नन्दीश्वर द्वीप है, वहाँ पाते हैं / वहाँ पाकर अष्टदिवसीय विराट जन्म-महोत्सव आयोजित करते हैं। बैसा करके जिस दिशा से आये थे, उसी दिशा में चले जाते हैं। 00 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003486
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages480
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy