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________________ 100 [जम्बूद्वीपप्राप्तिसूत्र चउसट्ठी सट्ठी खलु छच्च, सहस्सा उ असुर-वज्जाणं / सामाणिश्रा उ एए, चउग्गुणा पायरक्खा उ॥१॥ दाहिणिल्लाणं पायत्ताणीग्राहिवई भद्दसेणो, उत्तरिल्लाणं दक्खोत्ति / वाणमन्तरजोइसिआ अव्वा एवं चेव, णवरं चत्तारि सामाणिप्रसाहस्सीओ चत्तारि अग्गहिसीओ, सोलस पायरक्खसहस्सा, विमाणा सहस्सं, महिन्दझया पणवीसं जोमण-सयं, घण्टा दाहिणाणं मंजुस्सरा, उत्तराणं मंजुघोसा, पायत्ताणीवाहिवई विमाणकारी अभिलोगा देवा। जोइसिप्राणं सुस्सरा सुस्सर-णिग्धोसानो घण्टाम्रो मन्दरे समोसरणं जाव' पज्जुवासंतित्ति / 152] उस काल, उस समय चमरचंचा राजधानी में, सुधर्मा सभा में, चमर नामक सिंहासन पर स्थित असुरेन्द्र, असुरराज चमर अपने चौसठ हजार सामानिक देवों, तेतीस त्रास्त्रिश देवों. चार लोकपालों, सपरिवार पाँच अग्रमहिषियों, तीन परिषदों, सात सेनाओं, सात सेनापति देवों, चारों ओर चौसठ चौसठ हजार अंगरक्षक देवों तथा अन्य देवों से संपरिवृत होता हुआ सौधर्मेन्द्र शक्र की तरह पाता है / इतना अन्तर है-उसके पदातिसेनाधिपति का नाम द्रुम है, उसकी घण्टा प्रोधस्वरा नामक है, विमान पचास हजार योजन विस्तीर्ण है, महेन्द्रध्वज पांच सौ योजन विस्तीर्ण है, विमानकारी आभियोगिक देव है / विशेष नाम नहीं / बाकी का वर्णन पूर्वानुरूप है / वह मन्दर-पर्वत पर समवसृत होता है... पर्युपासना करता है / उस काल, उस समय असुरेन्द्र, असुरराज बलि उसी तरह मन्दर पर्वत पर समवसृत होता है। इतना अन्तर हैउसके सामानिक देव साठ हजार हैं, उनसे चार गुने प्रात्मरक्षक-अंगरक्षक देव हैं, महाद्म नामक पदाति-सेनाधिपति है, महौघस्वरा घण्टा है। शेष परिषद् आदि का वर्णन जीवाभिगम के अनुसार समझ लेना चाहिए / इसी प्रकार धरणेन्द्र के आने का प्रसंग है। इतना अन्तर है---उसके सामानिक देव छह हजार हैं, अग्रमहिषियाँ छह हैं, सामानिक देवों से चार गुने अंगरक्षक देव हैं, मेधस्वरा घण्टा है, भद्रसेन पदाति-सेनाधिपति है। उसका विमान पच्चीस हजार योजन विस्तीर्ण है। उसके महेन्द्रध्वज का विस्तार अढाई सौ योजन है / असुरेन्द्र वजित सभी भवनवासी इन्द्रों का ऐसा ही वर्णन है / इतना अन्तर है-असुरकुमारों के प्रोघस्वरा, नागकुमारों के मेघस्वरा, सुपर्णकुमारों-गरुडकुमारों के हंसस्वरा, विद्युत्कुमारों के क्रौञ्चस्वरा, अग्निकुमारों के मंजुस्वरा, दिक्कुमारों के मंजुघोषा, उदधिकुमारों के सुस्वरा, द्वीपकुमारों के मधुरस्वरा, वायुकुमारों के नन्दिस्वरा तथा स्तनितकुमारों के नन्दिघोषा नामक घण्टाएँ हैं / चमरेन्द्र के चौसठ एवं बलीन्द्र के साठ हजार सामानिक देव हैं। असुरेन्द्रों को छोड़कर धरणेन्द्र आदि अठारह भवनवासी इन्द्रों के छह-छह हजार सामानिक देव हैं / सामानिक देवों से चारचार गुने अंगरक्षक देव हैं। चमरेन्द्र को छोड़कर दाक्षिणात्य भवनपति इन्द्रों के भद्रसेन नामक पदाति-सेनाधिपति है। बलीन्द्र को छोड़कर उत्तरीय भवनपति इन्द्रों के दक्ष नामक पदाति-सेनाधिपति है। इसी प्रकार 1. देखें सूत्र संख्या 151 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003486
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages480
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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