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________________ पञ्चम वक्षस्कार [299 पालक, पुष्पक, सौमनस, श्रीवत्स, नन्दावर्त, कामगम, प्रीतिगम, मनोरम, विमल तथा सर्वतोभद्र ये यान-विमानों की विकुर्वणा करनेवाले देवों के अनुक्रम से नाम हैं / सौधर्मेन्द्र, सनत्कुमारेन्द्र, ब्रह्मलोकेन्द्र, महाशुक्रेन्द्र तथा प्राणतेन्द्र की सुघोषा घण्टा, हरिनिगमेषी पदाति-सेनाधिपति, उत्तरवर्ती निर्याण-मार्ग, दक्षिण-पूर्ववर्ती रतिकर पर्वत है / इन चार बातों में इनकी पारस्परिक समानता है / / ईशानेन्द्र, माहेन्द्र, लान्तकेन्द्र, सहस्रारेन्द्र तथा अच्युतेन्द्र की महाघोषा घण्टा, लघुपराक्रम पदातिसेनाधिपति, दक्षिणवर्ती निर्याण-मार्ग तथा उत्तर-पूर्ववर्ती रतिकर पर्वत है। इन चार बातों में इनकी पारस्परिक समानता है। इन इन्द्रों की परिषदों के सम्बन्ध में जैसा जीवाभिगम सूत्र में बतलाया गया है, वैसा ही यहाँ समझना चाहिए।' इन्द्रों के जितने जितने सामानिक देव होते हैं, अंगरक्षक देव उनसे चार गुने होते हैं / सबके यात-विमान एक-एक लाख योजन विस्तीर्ण होते हैं तथा उनकी ऊँचाई स्व-स्व-विमान-प्रमाण होती है। सबके महेन्द्रध्वज एक-एक हजार योजन विस्तीर्ण होते हैं। शक्र के अतिरिक्त सब मन्दर पर्वत पर समवसृत होते हैं, भगवान् तीर्थंकर को बन्दन-नमन करते हैं, पर्युपासना करते हैं / चमरेन्द्र आदि का आगमन 152. तेणं कालेणं तेणं समएणं चमरे असुरिन्दे, असुरराया चमरचञ्चाए रायहाणीए, सभाए सुहम्माए, चमरंसि सीहासणंसि, चउसट्ठीए सामाणिप्रसाहस्सीहि, तायत्तीसाए तायत्तीसेहि, चाहि लोगपालेहि, पञ्चहि अग्गमहिसोहिं सपरिवाराहि, तिहि परिसाहि, सतहिं अणिएहि सहि अणियाहिवईहिं चहिं चउसट्ठीहिं आयरक्खसाहस्सोहि अण्णेहि अ जहा सक्के, णवरं इमं णाणतंदुमो पायत्ताणोआहिवई, ओघस्सरा घण्टा, विमाणं पण्णासं जोअणसहस्साई, महिन्दज्झनो पञ्चजोअणसयाई, विमाणकारी प्राभिनोगियो देवो अवसिट्टतं चेव जाव मन्दरे समोसरइ पज्जुवासइत्ति। तेणं कालेणं तेणं समएणं बली असुरिन्दे, असुरराया एवमेव णवरं सट्ठी सामाणिअसाहस्सीलो, चउग्गुणा पायरक्खा, महादुमो पायत्ताणीआहिवई, महामोहस्सरा घण्टा सेसं तं चेव परिसायो जहा जीवाभिगमे इति। तेणं कालेणं तेणं समएणं धरणे तहेव, णाणतं छ सामाणिअसाहस्सीओ छ अग्गमहिसीओ, चउग्गुणा पायरक्खा मेघस्सरा घण्टा भद्दसेणो पायत्ताणीयाहिवई, विमाणं पणवीसं जोअणसहस्साई, महिन्दझनो प्रद्धाइज्जाइं जोअणसयाई, एवमसुरिन्दवज्जिआणं भवणवासिइंदाणं, णवरं असुराणं प्रोघस्सरा घण्टा, गागाणं मेघस्सरा, सुवण्णाणं हंसस्सरा, विज्जूणं कोंचस्सरा, अग्गीणं मंजुस्सरा, दिसाणं मंजुधोसा, उदहीणं सुस्सरा, दीवाणं महुरस्सरा, वाऊणं णंदिस्सरा, थणियाणं णंदिघोसा। 1. देखिए जीवाभिगमप्रतिपत्ति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003486
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages480
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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