________________ [जम्बूद्वीपप्राप्तिसूत्र से केणठेणं भन्ते एवं वुच्चइ रुप्पी वासहरपन्वए 2? गोयमा! रुप्पीणामवासहरपन्दए रुप्पी रुष्पपट्टे, रुप्पोभासे सव्वरुप्पामए, रुप्पी प्र इत्थ वेचे पलिश्रोवमदिईए परिवसइ, से एएणठेणं गोयमा ! एवं बुच्चइत्ति। [141] भगवन् ! जम्बूद्वीप में रुक्मी नामक वर्षधर पर्वत कहाँ बतलाया गया है ? गौतम ! रम्यक वर्ष के उत्तर में, हैरण्यवत वर्ष के दक्षिण में, पूर्वी लवणसमुद्र के पश्चिम में, पश्चिमी लवणसमुद्र के पूर्व में जम्बूद्वीप के अन्तर्गत रुक्मी नामक वर्षधर पर्वत बतलाया गया है। वह पूर्व-पश्चिम लम्बा तथा उत्तर-दक्षिण चौड़ा है। वह महाहिमवान् वर्षधर पर्वत के सदृश है। इतना अन्तर है-उसकी जीवा दक्षिण में है। उसका धनुपृष्ठभाग उत्तर में है। बाकी का सारा वर्णन महाहिमवान् जैसा है। वहाँ महापुण्डरीक नामक द्रह है। उसके दक्षिणी तोरण से नरकान्ता नामक नदी निकलती है। वह रोहिता नदी की ज्यों पूर्वी लवणसमुद्र में मिल जाती है / नरकान्ता नदी का और वर्णन रोहिता नदी के सदृश है। रूप्यकूला नामक नदी महापुण्डरीक द्रह के उत्तरी तोरण से निकलती है / वह हरिकान्ता नदी की ज्यों पश्चिमी लवणसमुद्र में मिल जाती है / बाकी का वर्णन तदनुरूप है। भगवन् ! रुक्मी वर्षधर पर्वत के कितने कट बतलाये गये हैं ? गौतम ! उसके आठ कूट बतलाये गये हैं--१. सिद्धायतनकूट, 2. रुक्मीकूट, 3. रम्यककूट, 4. नरकान्ताकूट, 5. बुद्धिकूट, 6. रूप्य कलाकूट, 7. हैरण्यवतकूट तथा 8. मणिकांचनकूट / ये सभी कूट पाँच-पाँच सौ योजन ऊँचे हैं। उत्तर में इनकी राजधानियां हैं। भगवन् ! वह रुक्मी वर्षधर पर्वत क्यों कहा जाता है ? गौतम ! रुक्मी वर्षधर पर्वत रजत-निष्पन्न रजत की ज्यों आभामय एवं सर्वथा रजतमय है। वहाँ पल्योपमस्थितिक रुक्मी नामक देव निवास करता है, इसलिए वह रुक्मी वर्षधर पर्वत कहा जाता है। हैरण्यवत वर्ष 142. कहि णं भन्ते ! जम्बुद्दीवे 2 हेरण्णवए णामं वासे पण्णते? गोयमा ! रुप्पिस्स उत्तरेणं, सिहरिस्स दक्खिणेणं, पुरथिमलवणसमुदस्स पच्चत्थिमेणं, पच्चत्थिमलवणसमुहस्स पुरथिमेणं एत्थ णं जम्बुद्दीवे दीवे हिरण्णवए वासे पण्णत्ते, एवं जह चेव हेमवयं तह चेव हेरण्णवयंपि भाणिग्रव्वं, गवरं जीवा दाहिणणं, उत्तरेणं धणु अवसिडें तं वत्ति / कहि णं भन्ते ! हेरण्णवए वासे मालवन्तपरिवाए णामं वट्टवेअद्धपव्वए पण्णते ? गोयमा ! सुवण्णकूलाए पच्चत्थिमेणं, रुप्पकलाए पुरथिमेणं एत्थ णं हेरण्णवयस्स वासस्स बहुमज्झदेसभाए मालवन्तपरिमाए णामं वट्टवेअड्डे पणत्ते / जह चेव सद्दावई तह चेव मालवन्तपरिआएवि, अट्ठो उप्पलाइं पउमाइं मालवन्तप्पभाई मालवन्तवण्णाई मालवन्तवण्णाभाई पभासे प्र इत्थ देवे महिड्डीए जाव पलिग्रोवमट्टिईए परिवसइ, से एएण?णं०, रायहाणी उत्तरेणंति / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org