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________________ चतुर्थ वक्षस्कार] .. से केणठेणं भन्ते ! एवं वृच्चइ रम्मए वासे 2 ? गोयमा ! रम्मगवासे णं रम्मे रम्मए रमणिज्जे, रम्मए प्र इत्थ देवे जाव' परिवसइ, से तेणठेणं। [140] भगवन् ! जम्बूद्वीप के अन्तगत रम्यक नामक क्षेत्र कहाँ बसलाया गया है ? गौतम ! नीलवान् वर्षधर पर्वत के उत्तर में, रुवमी पर्वत के दक्षिण में, पूर्वी लवणसमुद्र के पश्चिम में, पश्चिमी लवणसमुद्र के पूर्व में रम्यक नामक क्षेत्र बतलाया गया है। उसका वर्णन हरिवर्ष क्षेत्र जैसा है। इतना अन्तर है-उसकी जीवा दक्षिण में है, धनुपृष्ठभाग उत्तर में है। बाकी का वर्णन उसी (हरिवर्ष) के सदृश है। भगवन् ! रम्यक क्षेत्र में गन्धापाती नामक वृत्तवैताढय पर्वत कहाँ बतलाया गया है ? गौतम ! नरकान्ता नदी के पश्चिम में, नारीकान्ता नदी के पूर्व में रम्यक क्षेत्र के बीचों बोच गन्धापाती नामक वृत्तवैताढय पर्वत बतलाया गया है / विकटापाती वृत्तवैताढय का जैसा वर्णन है, वैसा ही इसका है। गन्धापाती वृत्तवैताढय पर्वत पर उसी के सदृश वर्णयुक्त, आभायुक्त अनेक उत्पल, पद्म आदि हैं। वहाँ परम ऋद्धिशाली पल्योपम आयुष्य युक्त पद्म नामक देव निवास करता है। उसकी राजधानी उत्तर में है। भगवन् ! वह (उपर्युक्त) क्षेत्र रम्यकवर्ष नाम से क्यों पुकारा जाता है ? गौतम ! रम्यकवर्ष सुन्दर, रमणीय है एवं उसमें रम्यक नामक देव निवास करता है, अतः वह रम्यकवर्ष कहा जाता है / रुक्मी वर्षधर पर्वत 141. कहि णं भन्ते ! जम्बुद्दीवे 2 रुप्पी णाम बासहरपव्वए पण्णते ? गोयमा ! रम्मगवासस्स उत्सरेणं, हेरण्णवयवासस्स दक्खिणेणं, पुरथिमलवणसमुदस्स पच्चत्थिमेणं, पच्चत्थिमलवणसमुदस्स पुरथिमेणं एल्थ णं जम्बुद्दीवे दीवे रुप्पी गाम वासहरपव्वए पण्णत्ते / पाईणपडीणायए, उदोणवाहिणवित्थिण्णे, एवं जाव चेव महाहिमवन्तवत्तव्यया सा चेव रुप्पिस्सवि, णवरं दाहिणेणं जीवा उत्तरेणं धणु अवसेसं तं चेव।। __ महापुण्डरीए दहे, परकन्ता णदी दक्खिणेणं णेअव्वा जहा रोहिना पुरस्थिमेणं गच्छा। रुप्पकूला उत्तरेणं णेशव्वा जहा हरिकन्ता पच्चत्थिमेणं गच्छइ, प्रवसेसं तं चेवत्ति। रुप्पिमि णं भन्ते ! वासहरपव्वए कइ कडा पण्णत्ता ? गोयमा ! अट्ठ कूडा पण्णता, तं जहा सिद्ध 1, रुप्पी 2, रम्मग 3, परकन्ता 4, बुद्धि 5, रुप्पकला य 6 / हेरण्णवय 7, मणिकंचण 8, अट्ठ य रुप्पिमि कूडाई // 1 // सव्वेवि एए पंचसइया रायहाणीनो उत्तरेणं / 1. देखें सूत्र संख्या 14 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003486
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages480
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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