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________________ चतुर्थ वक्षस्कार] [249 बप्पे सुवप्पे महावप्पे, चउत्थे वप्पयावई। वग्गू अ सुवग्गू अ, गन्धिले गन्धिलावई // 1 // रायहाणीओ इमाओ, तं जहा विजया वेजयन्ती, जयन्ती अपराजिना। चक्कपुरा खग्गपुरा, हवइ अवज्झा अउज्झा य // 2 // इमे वक्खारा, तं जहा–चन्दपन्वए 1, सूरपब्वए 2, नागपव्वए 3, देवपन्वए 4 / इमानो णईनो सीप्रोप्राए महाणईए दाहिणिल्ले कूले खोरोआ सोहसोबा अंतरवाहिणीसो गईओ 3, उम्मिमालिणी 1, फेणमालिणी 2, गंभीरमालिणी 3, उत्तरिल्ल विजयाणन्तराउत्ति / इत्थ परिवाडीए दो दो कूडा विजयसरिसणामया भाणिअन्वा, इमे दो दो कूडा अवद्विश्रा, तं जहा-सिद्धाययणकडे पव्वयसरिसणामकूडे / [131] पक्ष्म विजय है, अश्वपुरी राजधानी है, अंकावती वक्षस्कार पर्वत है। सुपक्ष्म विजय है, सिंहपुरी राजधानी है, क्षीरोदा महानदी है। महापक्ष्म विजय है, महापुरी राजधानी है, पक्ष्मावती वक्षस्कार पर्वत है / पक्ष्मकावती विजय है, विजयपुरी राजधानी है, शीतस्रोता महानदी है / शंख विजय है, अपराजिता राजधानी है, आशीविष वक्षस्कार पर्वत है। कुमुद विजय है, अरजा राजधानी है, अन्तर्वाहिनी महानदी है। नलिन विजय है, अशोका राजधानी है, सुखावह वक्षस्कार पर्वत है। नलिनावती (सलिलावती) विजय है, वीताशोका राजधानी है। दाक्षिणात्य शीतोदामुख वनखण्ड है। इसी की ज्यों उत्तरी शोतोदामुख वनखण्ड है। उत्तरी शीतोदामुख बनखण्ड में वप्र विजय है, विजया राजधानी है, चन्द्र वक्षस्कार पर्वत है / सुवप्र विजय है, वैजयन्ती राजधानी है, ऊमिमालिनी नदी है / महावप्र विजय है, जयन्ती राजधानी है, सुर वक्षस्कार पर्वत है / वप्रावती विजय है, अपराजिता राजधानी है, फेनमालिनी नदी है / वल्गु विजय है, चक्रपुरी राजधानी है, नाग वक्षस्कार पर्वत है / सुवल्गु विजय है, खड्गपुरी राजधानी है, गम्भीरमालिनी -अन्तरनदी है। गन्धिल विजय है, अवध्या राजधानी है, देव वक्षस्कार पर्वत है। गन्धिलावती विजय है, अयोध्या राजधानी है। इसी प्रकार मन्दर पर्वत के दक्षिणी पार्श्व का-भाग का कथन कर लेना चाहिए / वह वैसा ही है। वहाँ शीतोदा नदी के दक्षिणी तट पर ये विजय हैं 1. पक्ष्म, 2. सुपक्ष्म, 3. महापक्ष्म, 4. पक्ष्मकावती, 5. शंख, 6. कुमुद, 7. नलिन तथा 8. नलिनावती। राजधानियां इस प्रकार हैं---- 1. अश्वपुरी, 2. सिंहपुरी, 3. महापुरी, 4. विजयपुरी, 5. अपराजिता, 6. अरजा, 7. अशोका तथा 8. वीतशोका। वक्षस्कार पर्वत इस प्रकार हैं१. अंक, 2. पक्ष्म, 3. आशीविष तथा 4. सुखावह / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003486
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages480
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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