________________ 250] [जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र इस क्रमानुरूप कूट सदृश नामयुक्त दो-दो विजय, दिशा-विदिशाएँ, शीतोदा का दक्षिणवर्ती मुखवन तथा उत्तरवर्ती मुखवन-ये सब समझ लिये जाने चाहिए। शीतोदा के उत्तरी पार्श्व में ये विजय हैं 1. वप्र, 2. सुवप्र, 3. महावप्र, 4. वप्रकावती (वप्रावती), 5. वल्गु, 6. सुवल्गु, 7. गन्धिल तथा 8. गन्धिलावती / राजधानियां इस प्रकार हैं 1. विजया, 2. वैजयन्ती, 3. जयन्ती, 4. अपराजिता, 5. चक्रपुरी, 6. खड्गपुरी, 7. अवध्या तथा 8. अयोध्या। वक्षस्कार पर्वत इस प्रकार हैं१. चन्द्र पर्वत, 2. सूर पर्वत, 3. नाग पर्वत तथा 4. देव पर्वत / क्षीरोदा तथा शीतस्रोता नामक नदियां शीतोदा महानदी के दक्षिणी तट पर अन्तरवाहिनी नदियां हैं। मिमालिनी, फेनमालिनी तथा गम्भीरमालिनी शीतोदा महानदी के उत्तर दिग्वर्ती विजयों की अन्तरवाहिनी नदियां हैं। इस क्रम में दो-दो कूट-पर्वत-शिखर अपने-अपने विजय के अनुरूप कथनीय हैं / वे अवस्थित-स्थिर हैं, जैसे--सिद्धायतन कूट तथा वक्षस्कार पर्वत-सदृश नाभयुक्त कूट / मन्दर पर्वत 132. कहि गं भन्ते ! जम्बुद्दीवे 2 महाविदेहे वासे मन्दरे णामं पम्वए पण्णत्ते ? गोयमा ! उत्तरकुराए दक्षिणेणं, देवकुराए उत्तरेणं, पुवविदेहस्स वासस्स पच्चत्थिमेणं, अवरविदेहस्स वासस्स पुरस्थिमेणं, जम्बुद्दीवस्स बहुमज्झदेसभाए एत्थ णं जम्बुद्दीवे दीवे मन्दरे णामं पव्वए पण्णत्ते। णवणउतिजोअणसहस्साई उद्धं उच्चत्तेणं, एगं जोअणसहस्सं उन्वेहेणं, मूले दसजोअणसहस्साई णवइंच जोअणाई दस य एगारसभाए जोअणस्स विक्खम्भेणं, धरणिअले दस जोअणसहस्साई विक्खम्भेणं, तयणन्तरं च णं मायाए 2 परिहायमाणे परिहायमाणे उवरितले एगं जोअणसहस्सं विक्खंभेणं / मूले इक्कत्तीसं जोअणसहस्साई णव य दसुत्तरे जोअणसए तिणि अ एगारसभाए जोअणस्स परिक्खेवेणं, धरणिप्रले एकत्तीसं जोअणसहस्साई छच्च तेवीसे जोअणसए परिक्खेवेणं, उवरितले तिणि जोपणसहस्साई एमं च बावटें जोअणसयं किंचिविसेसाहिअं परिक्खेवेणं / मूले वित्थिण्णे, मज्झे संखित्ते, उरि तणए, गोपुच्छसंठाणसंठिए, सव्वरयणामए, अच्छे, सण्हेत्ति / से णं एगाए पउमवरवेइमाए एगेण य वणसंडेणं सव्वओ समन्ता संपरिक्खित्ते वण्णप्रोत्ति / मन्दरे णं भन्ते ! पव्वए कई वणा पण्णत्ता? गोयमा ! चत्तारि वणा पण्णता, तं जहा-भहसालवणे 1, णन्दणवणे 2, सोमणसवणे 3, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org