SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 309
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 248] [जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूब क्षेत्रपल्योपम भी दो प्रकार का है-व्यावहारिक एवं सूक्ष्म / उपर्युक्त विवेचन व्यावहारिक क्षेत्रपल्योपम का है। सूक्ष्म क्षेत्रपल्योपम इस प्रकार है-- कुए में भरे यौगलिक के केश-खंडों से स्पृष्ट तथा अस्पृष्ट सभी आकाश-प्रदेशों में से एकएक समय में एक-एक प्रदेश निकालने की यदि कल्पना की जाए तथा यों निकालते-निकालते जितने काल में वह कुत्रा समग्र आकाश-प्रदेशों से रिक्त हो जाए, वह काल-प्रमाण सूक्ष्म क्षेत्रपल्योपम है। इसका भी काल-परिमाण असंख्यात उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी है। व्यावहारिक क्षेत्रपल्योपम से इसका काल असंख्यात गुना अधिक है। __ अनुयोगद्वार सूत्र 138-140 तथा प्रवचनसारोद्धार 158 में पल्योपम का विस्तार से विवेचन है। पक्ष्मादि विजय 131. एवं पम्हे विजए, अस्सपुरा रायहाणी, अंकावई वखारपन्वए 1, सुपम्हे विजए, सोहपुरा रायहाणी, खीरोदा महाणई 2, महापम्हे विजए, महापुरा रायहाणी, पम्हावई वक्खारपव्वए 3, पम्हगावई विजए, विजयपुरा रायहाणी, सोपसोआ महाणई 4, संखे विजए, प्रवराइआ रायहाणी, आसीविसे वक्खारपब्वए 5, कुमुदे विजए अरजा रायहाणी अंतोवाहिणी महाणई 6, लिणे विजए, असोगा रायहाणी, सुहावहे वक्खारपव्वए 7, गलिणावई विजए, वीयसोगा रायहाणी 8, दाहिणिल्ले सीनोआमुहवणसंडे, उत्तरिल्ले वि एवमेव भाणिअन्वे जहा सीमाए। वप्पे विजए, विजया रायहाणी, चन्दे वक्खारपव्वए 1, सुवप्पे विजए, वेजयन्ती रायहाणी प्रोम्मिमालिणी गई 2, महावप्पे विजए, जयन्ती रायहाणी, सूरे वक्खारपटवए 3, वघ्यावई विजए, अपराइमा रायहाणी, फेणमालिणी गई 4, वग्गू विजए चक्कपुरा रायहाणी, णागे वक्खारपव्यए 5, सुवग्गू विजए, खग्गपुरा रायहाणी, गंभीरमालिणी अंतरणई 6, गन्धिले विजए अवज्झा रायहाणी, देवे धक्वारपव्वए 7, गन्धिलावई विजए अनोज्झा रायहाणी 8 / एवं मन्दरस्स पव्वयस्स पच्चथिमिल्लं पासं भाणिअव्वं, तत्थ ताव सीओपाए गईए दक्खिणिल्ले णं कूले इमे विजया, तंजहा-- पम्हे सुपम्हे महापम्हे, चउत्थे पम्हगावई / संखे कुमुए णलिणे, अट्ठमे णलिणावई // 1 // इमानो रायहाणीओ, तंजहा प्रासपुरा सोहपुरा, महापुरा चेव हवइ विजयपुरा। प्रवराइआ य अरया, असोग तह वोअसोगा य // 2 // इमे वक्खारा, तंजहा--अंके, पम्हे, आसोविसे, सुहावहे, एवं इत्थ परिवाडीए दो दो विजया कसरिस-णामया भाणिअव्वा, दिसा विदिसाओ अ भाणिअव्वानो, सीओश्रा-मुहवणं च भाणिअन्वं सोनोग्राए दाहिणिल्लं उत्तरिल्लं च / सीओआए उत्तरिल्ले पासे इमे विजया, तं जहा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003486
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages480
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy