________________ चतुर्थ वमस्कार [247 प्रद्धापल्योपम-अद्धा देशी शब्द है, जिसका अर्थ काल या समय है। आगम के प्रस्तुत प्रसंग में जो पल्योपम का जिक्र आया है, उसका आशय इसी पल्योपम से है। इसकी गणना का क्रम इस प्रकार है यौगलिक के बालों के टुकड़ों से भरे हुए कए में से सौ-सौ वर्ष में एक-एक टुकड़ा निकाला जाए / इस प्रकार निकालते-निकालते जितने में वह कुआ बिलकुल खाली हो जाए, उस कालावधि को अद्धापल्योपम कहा जाता है / इसका परिमाण संख्यात-वर्ष-कोटि है। अद्धापल्योपम भी दो प्रकार का होता है-सूक्ष्म और व्यावहारिक / यहाँ जो वर्णन किया गया है, वह व्यावहारिक अद्धापल्योषम का है / जिस प्रकार सूक्ष्म उद्धारपल्योपम में यौगलिक शिशु के बालों के टुकड़ों के असंख्यात अदृश्य खंड किये जाने की बात है, तत्सदृश यहाँ भी वैसे ही असंख्यात अदृश्य केश-खंडों से वह कग्रा भरा जाए। प्रति सौ वर्ष में एक-एक खंड निकाला जाए। यों निकालते निकालते जब कुआ बिलकुल खाली हो जाए, वैसा होने में जितना काल लगे, वह सूक्ष्म अद्धापल्योपम, कोटि में आता है / इसका काल-परिमाण असंख्यात वर्ष कोटि माना जाता है / क्षेत्रपल्योपम-ऊपर जिस कुए या धान के विशाल गड्ढे की चर्चा की गई है, यौगलिक के बालखंडों से उसे उपयुक्त रूप में दबा-दबा कर भर दिये जाने पर भी उन खंडों के बीच-बीच में आकाश-प्रदेश-रिक्त स्थान रह जाते हैं। वे खंड चाहे कितने ही छोटे हों, आखिर वे रूपी या मूर्त हैं, अाकाश अरूपी या अमूर्त है / स्थूल रूप में उन खंडों के बीच में रहे आकाश-प्रदेशों की कल्पना नहीं की जा सकती पर सूक्ष्मता से सोचने पर वैसा नहीं है। इसे एक स्थूल उदाहरण से समझा जा सकता है-- कल्पना करें, अनाज के एक बहत बडे कोठे को कष्माण्डों-कम्हडों से भर दिया जाए। सामान्यतः देखने में लगता है, वह कोठा भरा हा है, उसमें कोई स्थान खाली नहीं है, पर यदि उसमें नीबू भरे जाएं तो वे अच्छी तरह समा सकते हैं, क्योंकि सटे हुए कुम्हड़ों के बीच-बीच में नीबूत्रों के समा सकने जितने स्थान खाली रहते ही हैं। यों नीबुओं से भरे जाने पर भी सूक्ष्म रूप में और खाली स्थान रह जाते हैं, यद्यपि बाहर से वैसा लगता नहीं। यदि उस कोठे में सरसों भरना चाहें तो वे भी समा जायेंगे। सरसों भरने पर भी सूक्ष्म रूप में और स्थान खाली रहते हैं। यदि शुष्क नदी के बारीक रज-कण उसमें भरे जाएं, तो वे भी समा सकते हैं। दूसरा उदाहरण दीवाल का है / चुनी हुई दीवाल में हमें कोई खाली स्थान प्रतीत नहीं होता, पर उसमें हम अनेक खूटियां, कीलें गाड़ सकते हैं। यदि वास्तव में दीवाल में स्थान खाली नहीं होता तो यह कभी संभव नहीं था। दीवाल में स्थान खाली है, मोटे रूप में हमें यह मालम नहीं पड़ता। क्षेत्रपल्योपम की चर्चा के अन्तर्गत यौगलिक के बालों के खण्डों के बीच-बीच में जो प्राकाश प्रदेश होने की बात है, उसे इसी दृष्टि से समझा जा सकता है। यौगलिक के बालों के खंडों को संस्पृष्ट करने वाले आकाश-प्रदेशों में से प्रत्येक को प्रति समय निकालने की कल्पना की जाए / यों निकालते-निकालते जब सभी आकाश-प्रदेश निकाल लिये जाएं, कुप्रा बिलकुल खाली हो जाए, वैसा होने में जितना काल लगे, उसे क्षेत्रपल्योपम कहा जाता है। इसका काल-परिमाण असंख्यात उर्पिणी-अवसर्पिणी है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org