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________________ [जम्बूद्वीपप्राप्तिसूत्र हरिकूट हरिस्सहकूट सदृश है। जैसे दक्षिण में चमरचञ्चा राजधानी है, वैसे ही दक्षिण में इसकी राजधानी है। ___ कनककूट तथा सौवत्सिककूट में वारिषेणा एवं बलाहका नामक दो देवियां-दिक्कुमारिकाएँ निवास करती हैं। बाकी के कूटों में कट-सदृश नामयुक्त देव निवास करते हैं। उनकी राजधानियां मेरु के दक्षिण में हैं। भगवन् ! वह विद्युत्प्रभ वक्षस्कार पर्वत क्यों कहा जाता है ? गौतम ! विद्युत्प्रभ वक्षस्कार पर्वत विद्युत की ज्यों-बिजली की तरह सब ओर से अवभासित होता है, उद्योतित होता है, प्रभासित होता है वैसी आभा, उद्योत एवं प्रभा लिये हुए है-बिजली की ज्यों चमकता है। वहाँ पल्योपमपरिमित आयुष्य-स्थिति युक्त विद्युत्प्रभ नामक देव निवास करता है, अतः वह पर्वत विद्युत्प्रभ कहलाता है / अथवा गौतम ! उसका यह नाम नित्य-शाश्वत है। विवेचन-यहाँ प्रयुक्त 'पल्योपम' शब्द एक विशेष, अति दीर्घकाल का द्योतक है। जैन वाङमय में इसका बहुलता से प्रयोग हुआ है। पल्य या पल्ल का अर्थ कुआ या अनाज का बहुत बड़ा गड्ढा है। उसके आधार पर या उसकी उपमा से काल-गणना किये जाने के कारण यह कालावधि 'पल्योपम' कही जाती है / पल्योपम के तीन भेद हैं--१. उद्धारपल्योपम, 2. अद्धापल्योपम तथा 3. क्षेत्रपल्योपम / उद्धारपल्योपम-कल्पना करें, एक ऐसा अनाज का बड़ा गड्ढा या कुना हो, जो एक योजन (चार कोश) लम्बा, एक योजन चौड़ा और एक योजन गहरा हो। एक दिन से सात दिन तक की पायुवाले नवजात यौगलिक शिशु के बालों के अत्यन्त छोटे-छोटे टुकड़े किये जाएँ, उनसे लूंस-ठूस कर उस गड्ढे या कुए को अच्छी तरह दबा-दबाकर भरा जाए। भराव इतना सघन हो कि अग्नि उन्हें जला न सके, चक्रवर्ती की सेना उन पर से निकल जाए तो एक भी कण इधर से उधर न हो, गंगा का प्रवाह बह जाए तो उन पर कुछ असर न हो / यों भरे हुए कुए में से एक-एक समय में एकएक बालखण्ड निकाला जाए। यों निकालते-निकालते जितने काल में वह कुआ खाली हो, उस कालपरिमाण को उद्धारपल्योपम कहा जाता है। उद्धार का अर्थ निकालना है। बालों के उद्धार या निकाले जाने के आधार पर इसकी संज्ञा उद्धारपल्योपम है। उद्धारपल्योपम के दो भेद हैं--सूक्ष्म एवं व्यावहारिक / उपर्युक्त वर्णन व्यावहारिक उद्धारपल्योपम का है। सूक्ष्म उद्धारपल्योपम इस प्रकार है व्यावहारिक उद्धारपल्योपम में कुए को भरने के लिए यौगलिक शिशु के बालों के टुकड़ों की जो चर्चा आई है, उनमें से प्रत्येक टुकड़े के असंख्यात अदृश्य खंड किये जाएं। उन सूक्ष्म खंडों से पूर्ववणित कुरा ठूस-ठूस कर भरा जाए। वैसा कर लिये जाने पर प्रतिसमय एक-एक केशखण्ड कुए में से निकाला जाए। यों करते-करते जितने काल में वह कुआ बिलकुल खाली हो जाए, उस काल-अवधि को सूक्ष्म उद्धारपल्योपम कहा जाता है। इसमें संख्यात-वर्ष-कोटि-परिमाण काल माना जाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003486
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages480
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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