________________ [245 चतुर्थ बक्षस्कार] देवकुराए पच्चत्थिमेणं, पम्हस्स विजयस्स पुरथिमेणं, एत्थ णं जम्बुद्दीवे 2 महाविदेहे वासे विज्जुप्पमे वक्खारपव्वए पण्णत्ते / उत्तरदाहिणायए एवं जहा मालवन्ते णवरि सव्वतबणिज्जमए अच्छे जाव' देवा प्रासयन्ति। विज्जुप्पमे णं भन्ते ! वक्खारपस्वए कइ कूडा पण्णत्ता ? गोयमा ! नव कूडा पण्णत्ता, तंजहा-सिद्धाययणकूडे 1, विज्जुप्पभकूडे 2, देवकुरुकडे 3, पम्हकूडे 4, कणगकूडे 5, सोवस्थिअकूडे 6, सीओआकडे 7, सयज्जलकूडे 8, हरिफूडे / सिद्ध अ विज्जुणामे, देवकुरू पम्हकणगसोबत्थी। सीपोया य सयज्जलहरिकुडे चेव बोद्धब्वे // 1 // एए हरिकुडवज्जा पञ्चसइया अटवा। एएसि कूडाणं पुच्छा दिसिविदिसानो णेप्रवामो जहा मालवन्तस्स / हरिस्सहकूडे तह चेव हरिकूडे रायहाणी जह चेव दाहिणणं चमरचंचा रायहाणी तह अव्वा, कणगसोवस्थिअकूडेसु वारिसेण-बलाहयाओ दो देवयानो, अवसिठेसु कूडेसु कूडसरिसणामया देवा रायहाणीओ दाहिणणं / से केणठेणं भन्ते ! एवं वुच्चइ-विज्जुप्पभे वक्खारपव्वए 2 ? गोयमा ! विज्जुप्पो णं वक्खारपब्वए विज्जुमिव सव्वश्रो समन्ता प्रोभासेइ, उज्जोवेइ, पभासइ, विज्जुप्पभे य इत्थ देवे पलिग्रोवमट्टिइए जाव' परिवसइ, से एएणद्वेणं गोयमा! एवं बच्चइ विज्जुप्पभे 2, अदुत्तरं च णं जाव णिच्चे। [130] भगवन् ! जम्बूद्वीप के अन्तर्गत महाविदेह क्षेत्र में विद्युत्प्रभ नामक वक्षस्कार पर्वत कहाँ बतलाया गया है ? गौतम ! निषध वर्षधर पर्वत के उत्तर में, मन्दर पर्वत के दक्षिण-पश्चिम में, देवकुरु के पश्चिम में तथा पद्म विजय के पूर्व में जम्बूद्वीप के अन्तर्गत महाविदेह क्षेत्र में विद्युत्प्रभ नामक वक्षस्कार पर्वत बतलाया गया है। वह उत्तर-दक्षिण में लम्बा है। उसका शेष वर्णन माल्यवान् पर्वत जैसा है। इतनी विशेषता है-वह सर्वथा तपनीय-स्वर्णमय है। वह स्वच्छ है-देदीप्यमान है, सुन्दर है / देव-देवियां पाश्रय लेते हैं, विश्राम करते हैं। भगवन् ! विद्यत्प्रभ वक्षस्कार पर्वत के कितने कूट बतलाये गये हैं ? गौतम ! उसके नौ कूट बतलाये गये हैं-१. सिद्धायतनकूट, 2. विद्युत्प्रभकूट, 3. देवकुरुकूट, 4. पक्ष्मकूट, 5. कनककूट, 6. सौवत्सिककूट. 7. शीतोदाकूट, 8. शतज्वलकूट 9. हरिकूट / हरिकूट के अतिरिक्त सभी कूट पांच-पांच सौ योजन ऊँचे हैं। इनकी दिशा-विदिशाओं में अवस्थिति इत्यादि सारा वर्णन माल्यवान् जैसा है। 1. देखें सूत्र संख्या 4 2. देखें सूत्र संख्या 14 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org