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________________ 244] [जन्मदीपप्राप्तिसूत्र गोयमा ! तेसि चित्तविचित्तकूडाणं पश्ययाणं उत्तरिल्लानो चरिमन्तानो प्रदुचोतीसे जोप्रणसए चत्तारि अ सत्तभाए जोअणस्स अबाहाए सीओआए महाणईए बहमज्झदेसभाए एत्थ णं णिसहहहै णामं दहे पण्णत्ते। ___ एवं जच्चेव नीलवंतउत्तरकुरुचन्देरावयमालवंताणं वत्तस्वया, सच्चेव णिसहदेवकुरुसूरसुलसविज्जुष्पभाणं णेश्रव्या, रायहाणीनो दक्षिणेणंति / [128] भगवन् ! देवकुरु में निषध द्रह नामक द्रह कहाँ बतलाया गया है ? गौतम ! चित्र-विचित्र कूट नामक पर्वतों के उत्तरी चरमान्त से 8344 योजन की दूरी पर शीतोदा महानदी के ठीक मध्य भाग में निषध द्रह नामक द्रह बतलाया गया है / नीलवान, उत्तरकुरु, चन्द्र, ऐरावत तथा माल्यवान्-इन द्रहों की जो वक्तव्यता है, वही निषध, देवकुरु, सूर, सुलस तथा विद्युत्प्रभ नामक द्रहों की समझनी चाहिए। उनके अधिष्ठातृ-देवों की राजधानियां मेरु के दक्षिण में हैं। कूटशाल्मलीपीठ 126. कहि णं भन्ते ! देवकुराए 2 कूडसामलिपेढे णामं पेढे पण्णते ? गोयमा ! मन्दरस्स पव्ययस्स दाहिणपच्चत्थिमेणं, णिसहस्स वासहरपध्ययस्स उत्तरेणं, विज्जुप्पभस्स वक्खारपव्वयस्स पुरस्थिमेणं, सोप्रोआए महाणईए पच्चस्थिमेणं देवकुरुपच्चस्थिमस्स बहुमज्झदेसभाए एस्थ णं देवकुराए कुराए कूडसामलीपेढे णामं पेढे पण्णते। ___ एवं जच्चेव जम्बूए सुदंसणाए वत्तव्वया सच्चेव सामलीए वि भाणिवा णामविहूणा, गरुलदेवे, रायहाणी दक्खिणेणं, अवसिळं तं चेव जाव देवकुरूप। इत्थ देवे पलिओवमदिइए परिवसइ, से तेणठेणं गोयमा ! एवं बुच्चइ देवकुरा 2, प्रदुत्तरं च णं देवकुराए / [126] भगवन् ! देवकुरु में कूटशाल्मलीपीठ--शाल्मली या सेमल वृक्ष के आकार में शिखर रूप पीठ कहाँ बतलाया गया है ? गौतम ! मन्दर पर्वत के दक्षिण-पश्चिम में--नैऋत्य कोण में, निषध वर्षधर पर्वत के उत्तर में, विद्युत्प्रभ वक्षस्कार पर्वत के पूर्व में, शीतोदा महानदी के पश्चिम में देवकुरु के पश्चिमार्ध के ठीक बीच में कूटशाल्मलीपीठ नामक पीठ बतलाया गया है। जम्बू सुदर्शना की जैसी वक्तव्यता है, वैसी ही कूटशाल्मलीपीठ की समझनी चाहिए। जम्बू सुदर्शना के नाम यहाँ नहीं लेने होंगे। गरुड इसका अधिष्ठातृ-देव है। राजधानी मेरु के दक्षिण में है / बाकी का वर्णन जम्बू सुदर्शना जैसा है। यहाँ एक पल्योपमस्थितिक देव निवास करता है / अतः गौतम ! यह देवकुरु कहा जाता है / अथवा देवकुरु नाम शाश्वत है / विद्युत्प्रभ वक्षस्कार पर्वत 130. कहिं णं भन्ते ! जम्बुद्दीवे 2 महाविदेहे वासे विज्जुप्पभे णामं वक्खारपन्चए पण्णते? गोयमा ! णिसहस्स वासहरपन्वयस्स उत्तरेणं, मन्दरस्स पव्वयस्स दाहिण-पच्चत्थिमेणं, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003486
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages480
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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