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________________ चतुर्थ वक्षस्कार] [243 कटों पर, कूटों के जो-जो नाम हैं, उन-उन नामों के देव निवास करते हैं। मेरु के दक्षिण में उनकी राजधानियां हैं। देवकुरु 126. कहि णं भन्ते ! महाविदेहे वासे देवकुरा णामं कुरा पण्णता ? गोयमा ! मन्दरस्स पब्वयस्स दाहिणणं, णिसहस्स वासहर-पन्वयस्स उत्तरेणं, विज्जुप्पहस्स वक्खार-पन्वयस्स पुरथिमेणं, सोमणस-वक्खार-पवयस्स पच्चत्थिमेणं, एत्थ णं महाविदेहे वासे देवकुरा णामं कुरा पण्णत्ता। पाईण-पडीणायया, उदीण-दाहिण-वित्थिण्णा / इक्कारस जोअणसहस्साई अट्ट य बायाले जोअण-सए दुण्णि अ एगूणवीसइ-भाए जोअणस्स विक्खम्भेणं जहा उत्तरकुराए वत्तव्वया जाव अणुसज्जमाणा पम्हगन्धा, मिअगन्धा, अममा, सहा, तेतली, सणिचारोति / [126] भगवन् ! महाविदेह क्षेत्र में देवकुरु नामक कुरु कहाँ बतलाया गया है ? गौतम ! मन्दर पर्वत के दक्षिण में, निषध वर्षधर पर्वत के उत्तर में, विद्युत्प्रभ वक्षस्कार पर्वत के पूर्व में, सौमनस वक्षस्कार पर्वत के पश्चिम में महाविदेह क्षेत्र के अन्तर्गत देवकुरु नामक कुरु बतलाया गया है / वह पूर्व-पश्चिम लम्बा तथा उत्तर-दक्षिण चौड़ा है। वह 1184211 योजन विस्तीर्ण है। उसका और वर्णन उत्तरकुरु सदृश है। वहाँ पद्मगन्ध-कमलसदृश सुगन्ध युक्त, मृगगन्ध-कस्तूरी मृग सदृश सुगन्धयुक्त, अमम ममता रहित, सह–कार्यक्षम, तेतली-विशिष्ट पुण्यशाली तथा शनैश्चारी-मन्द गतियुक्तधीरे-धीरे चलने वाले छह प्रकार के मनुष्य होते हैं, जिनकी वंश-परंपरा-सन्तति-परंपरा उत्तरोत्तर चलती है। चित्र-विचित्र कट पर्वत 127. कहि णं भन्ते ! देवकुराए चित्तविचित्त-कडा णामं दुवे पव्वया पण्णत्ता ? गोयमा ! णिसहस्स वासहरपन्वयस्स उत्तरिल्लानो चरिमंताओ अढचोत्तीसे जोअणसए चत्तारि अ सत्तभाए जोपणस्स अबाहाए सीओआए महाणईए पुरथिमपच्चत्थिमेणं उभनो कूले एत्थ णं चित्त-विचित्त-कडा गाम दुवे पव्वया पण्णता। एवं जच्चेव जमगपब्वयाणं सच्चेव, एएसि रयहाणीनो दक्षिणेणंति / / [127] भगवन् ! देवकुरु में चित्र-विचित्र कूट नामक दो पर्वत कहाँ बतलाये गये हैं ? गौतम ! निषध वर्षधर पर्वत के उत्तरी चरमान्त से--अन्तिम छोर से 8344 योजन की दूरी पर शीतोदा महानदी के पूर्व-पश्चिम के अन्तराल में उसके दोनों तटों पर चित्र-विचित्र कूट नामक दो पर्वत बतलाये गये हैं। यमक पर्वतों का जैसा वर्णन है, वैसा ही उनका है। उनके अधिष्ठातृ-देवों की राजधानियां मेरु के दक्षिण में हैं। निषध द्रह 128. कहि णं भन्ते ! देवकुराए 2 णिसढदहे णामं दहे पण्णते ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003486
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages480
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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