________________ 242] [जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र वक्खारपवए तहा णवरं सव्वरययामये अच्छे जाव' पडिरूवे। णिसहवासहरपव्ययंतेणं चत्तारि जोअणसयाई उद्ध उच्चत्तेणं, चत्तारि गाऊसयाई उठवेहेणं, सेसं तहेव सव्वं गवरं अट्ठो से, गोयमा ! सोमणसे णं वक्खारपव्वए। बहवे देवा य देवोत्रो अ, सोमा, सुमणा, सोमणसे अ इत्थ देवे महिड्डीए जाव परिवसइ, से एएणठेणं गोयमा ! जाव णिच्चे। सोमणसे अ बक्खारपध्वए कइ कूडा पण्णत्ता ? गोयमा ! सत्त कूडा पण्णत्ता, तं.जहा सिद्ध 1 सोमणसे 2 वि अ, बोद्धब्वे मंगलावई कूडे 3 / देवकुरु 4 विमल 5 कंचण 6, वसिटकूडे 7 अ बोद्धव्वे // 1 // एवं सम्वे पञ्चसइआ कूडा, एएसि पुच्छा दिसिविदिसाए भाणिअन्वा जहा गन्धमायणस्स, विमलकञ्चणकूडेसु गरि देवयाओ सुवच्छा बच्छमित्ता य अवसिठेसु कूडेसु सरिस-णामया देवा रायहाणीयो दक्खिणेणंति / [125] भगवन् ! जम्बूद्वीप के अन्तर्गत महाविदेह क्षेत्र में सौमनस नामक वक्षस्कार पर्वत कहाँ बतलाया गया है ? गौतम ! निषध वर्षधर पर्वत के उत्तर में, मन्दर पर्वत के दक्षिण-पूर्व में-आग्नेय कोण में, मंगलावती विजय के पश्चिम में, देवकुरु के पूर्व में जम्बूद्वीप के अन्तर्गत महाविदेह क्षेत्र में सौमनस नामक वक्षस्कार पर्वत बतलाया गया है। वह उत्तर-दक्षिण लम्बा तथा पूर्व-पश्चिम चौड़ा है / जैसा माल्यवान् वक्षस्कार पर्वत है, वैसा ही वह है। इतनी विशेषता है-वह सर्वथा रजतमय है, उज्ज्वल है, सुन्दर है। वह निषध वर्षधर पर्वत के पास 400 योजन ऊँचा है। वह 400 कोश जमीन में गहरा है / बाकी सारा वर्णन माल्यवान् वक्षस्कार पर्वत की ज्यों है। गौतम ! सौमनस वक्षस्कार पर्वत पर बहुत से सौम्य -- सरल-मधुर स्वभावयुक्त, कायकुचेष्टारहित, सुमनस्क—उत्तम भावना युक्त, मनःकालुष्य रहित देव-देवियां आश्रय लेते हैं, विश्राम करते हैं। तदधिष्ठायक परम ऋद्धिशाली सौमनस नामक देव वहाँ निवास करता है / इस कारण वह सौमनस वक्षस्कार पर्वत कहलाता है / अथवा गौतम ! उसका यह नाम नित्य है-सदा से चला आ रहा है। भगवन् ! सौमनस वक्षस्कार पर्वत के कितने कूट बतलाये गये हैं ? गौतम ! उसके सात कूट बतलाये गये हैं—१. सिद्धायतन कूट, 2. सोमनस कूट, 3. मंगलावती कूट. 4. देवकुरु कूट, 5. विमल कूट, 6. कंचन कूट तथा 7. वशिष्ठ कूट / ये सब कुट 500 योजन ऊँचे हैं / इनका वर्णन गन्धमादन के कुटों के सदृश है। इतना अन्तर है-विमल कूट तथा कंचन कूट पर सुवत्सा एवं वत्समित्रा नामक देवियाँ रहती हैं / बाको के 1. देखें सूत्र संख्या 4 2. देखें सूत्र संख्या 14 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org